सुप्रीम कोर्ट में महिला वकील संघ की बड़ी चुनौती — बॉम्बे हाईकोर्ट के POSH अधिनियम पर महत्वपूर्ण फैसले के खिलाफ याचिका
प्रस्तावना
महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और कार्यस्थल पर गरिमा सुनिश्चित करने के लिए POSH Act, 2013 भारत की एक महत्वपूर्ण सामाजिक-न्याय अधिनियम है। लेकिन हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय में बार काउंसिल्स को इस कानून के दायरे से बाहर रखते हुए कहा गया कि वकील पारंपरिक अर्थों में ‘कर्मचारी’ नहीं होते, इसलिए बार काउंसिल को इंटरनल कमेटी (ICC) बनाने की बाध्यता नहीं है। इस फैसले ने देशभर की महिला वकीलों, बार संघों और सामाजिक संगठनों में व्यापक बहस उत्पन्न कर दी है।
इसी पृष्ठभूमि में Women Lawyers Association (महिला वकील संघ) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है, यह कहते हुए कि हाईकोर्ट का निर्णय न्यायसंगत नहीं है और इससे महिला वकीलों के अधिकारों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह लेख इस पूरे विवाद, कानूनी पहलुओं, दोनों पक्षों के तर्कों और सुप्रीम कोर्ट के संभावित दृष्टिकोण को लगभग 1700 शब्दों में विस्तार से समझाता है।
पृष्ठभूमि — POSH Act और बार काउंसिल की भूमिका
POSH (Prevention of Sexual Harassment at Workplace Act, 2013) का उद्देश्य कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकना, पीड़ित को सहायता प्रदान करना और नियोक्ता पर जिम्मेदारी तय करना है।
कानून के अनुसार, प्रत्येक संगठन जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हों, एक Internal Complaints Committee (ICC) गठित करेगा, जो यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच करेगा।
विवाद की जड़ यह है कि—
क्या बार काउंसिल, कोर्ट परिसर, या वकालत का पेशा “कार्यस्थल” की परिभाषा में आता है?
और
क्या वकील, जिन्हें स्वतंत्र पेशेवर (Independent Professionals) कहा जाता है, “कर्मचारी” माने जाएंगे?
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में यह कहा कि बार काउंसिल न तो नियोक्ता है, न ही वकील उसके कर्मचारी हैं। इसलिए POSH Act के तहत उस पर ICC (आंतरिक शिकायत समिति) बनाने की बाध्यता नहीं है।
महिला वकील संघ का सुप्रीम कोर्ट में दृष्टिकोण
Women Lawyers Association ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा है—
हाईकोर्ट का निर्णय POSH Act की मूल भावना के खिलाफ है
POSH Act एक सामाजिक कल्याण कानून है, जिसका उद्देश्य अधिकतम सुरक्षा प्रदान करना है। ऐसे कानूनों की व्याख्या हमेशा व्यापक रूप से की जाती है।
वकील चाहे “कर्मचारी” की श्रेणी में न आते हों, परंतु—
- वे बार काउंसिल के सदस्य हैं,
- कोर्ट परिसर में कार्य करते हैं,
- पेशे से जुड़े प्रशासनिक ढांचे के संपर्क में रहते हैं,
इसलिए उन्हें POSH के संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता।
बार काउंसिल एक वैधानिक संस्था है, इसलिए ‘कार्यस्थल’ के दायरे में आती है
बार काउंसिल्स Advocates Act के तहत बनाई गई वैधानिक संस्थाएँ हैं।
महिला वकीलों का तर्क है कि—
- जहाँ भी पेशेवर कार्य करते हों,
- जहाँ प्रशासनिक कार्यवाही चलती हो,
- जहाँ कोई व्यक्ति अधिकारिक क्षमता में उपस्थित हो,
वह स्थान ‘कार्यस्थल’ माना जाता है।
वकीलों का कार्यस्थल सुरक्षित होना संवैधानिक अधिकार है
याचिकाकर्ताओं ने Article 14, 15 और 21 का हवाला दिया है—
- समानता का अधिकार
- भेदभाव से सुरक्षा
- गरिमा के साथ जीवन
यदि वकीलों को कार्यस्थल पर सुरक्षा नहीं मिलेगी, तो यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
बार काउंसिल्स पर POSH लागू नहीं होगा तो महिला वकीलों के पास कोई मंच नहीं बचेगा
अधिकांश शिकायतें—
- वरिष्ठ वकीलों,
- चैंबर में काम करने वाले स्टाफ,
- कोर्ट परिसर में अन्य अधिकारियों
के खिलाफ होती हैं।
यदि POSH Act लागू नहीं होगा, तो पीड़ितों की शिकायतें अनसुलझी रह जाएँगी।
बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय — मूल बातें
अदालत ने कहा था—
1. बार काउंसिल वकीलों की “नियोक्ता” नहीं है
वकील स्वतंत्र रूप से, अपने निजी चैंबर में कार्य करते हैं।
वे वेतनभोगी नहीं होते।
न ही बार काउंसिल उनके कार्य का प्रत्यक्ष नियंत्रण करती है।
इसलिए बार काउंसिल पर POSH की ICC बनाने की बाध्यता लागू नहीं होती।
2. वकीलों का कार्यालय ‘कार्यस्थल’ हो सकता है, लेकिन बार काउंसिल का नहीं
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि—
- बार काउंसिल केवल नियामक संस्था है,
- यह प्रशासनिक कार्य करती है,
- वकील वहाँ नियमित रूप से काम नहीं करते,
इसलिए उसे POSH Act के तहत ‘कार्यस्थल’ नहीं कहा जा सकता।
3. वकीलों के लिए पहले से शिकायत मंच उपलब्ध हैं
हाईकोर्ट ने कहा कि—
- यदि किसी वरिष्ठ वकील ने उत्पीड़न किया है,
- या चैंबर में अनुचित व्यवहार हुआ है,
तो पीड़िता— - पुलिस में FIR दर्ज करा सकती है,
- Advocates Act की अनुशासनात्मक समिति में जा सकती है।
हाईकोर्ट के अनुसार, POSH Act का ढांचा इस पेशे पर लागू नहीं होता।
महिला वकीलों का तर्क — हाईकोर्ट की यह सोच अधूरी
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हाईकोर्ट ने व्यावहारिक परिस्थितियों को नहीं देखा।
प्रमुख बिंदु:
1. अधिवक्ता-चैंबर में शक्ति असमानता बहुत अधिक है
वरिष्ठ वकील–जूनियर वकील का संबंध
नियोक्ता–कर्मचारी जैसा ही होता है।
जूनियर वकील का करियर, सिफ़ारिशें, काम और मौका सब वरिष्ठ पर निर्भर करता है।
ऐसे में POSH सुरक्षा जरूरी है।
2. Advocates Act की अनुशासनात्मक प्रक्रिया बहुत धीमी है
- शिकायतों का निस्तारण वर्षों तक लंबित रहता है
- पीड़िता को त्वरित राहत नहीं मिलती
POSH Act में 90 दिनों में रिपोर्ट का प्रावधान है, जो महत्वपूर्ण है।
3. बार काउंसिल द्वारा ICC बनाने से पीड़िताओं को भरोसेमंद मंच मिलता है
हाईकोर्ट का निर्णय महिला वकीलों के संरक्षण को कम करता है।
सुप्रीम कोर्ट किन कानूनी प्रश्नों पर विचार करेगा?
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला कई विधिक प्रश्न खड़ा करता है, जिनका निर्धारण न्यायिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होगा।
1. क्या POSH Act का दायरा “कर्मचारी” से आगे बढ़कर पेशेवरों को भी कवर करता है?
कानून की परिभाषा में employee का अर्थ ‘व्यापक’ है, कई निर्णयों में अदालतें विस्तृत व्याख्या कर चुकी हैं।
2. क्या बार काउंसिल का कार्यालय ‘कार्यस्थल’ माना जा सकता है?
यदि कोई महिला वकील वहां नियमित गतिविधियों के कारण जाती है, तो POSH का दायरा बन सकता है।
3. क्या पेशेवर स्वतंत्रता POSH Act के तहत सुरक्षा से ऊपर हो सकती है?
सुप्रीम कोर्ट को तय करना होगा कि—
- पेशेवर स्वतंत्रता
vs - गरिमा, सुरक्षा और समानता
में किसे प्राथमिकता मिलेगी।
4. क्या नियामक निकायों पर POSH लागू किया जा सकता है?
यदि लागू किया गया, तो—
- Medical Council,
- ICAI,
- Institute of Engineers
जैसे निकायों पर भी प्रभाव पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट का संभावित दृष्टिकोण (विश्लेषणात्मक आकलन)
न्यायालय पूर्व में POSH Act की व्याख्या सामाजिक-कल्याण के सिद्धांत के आधार पर करता रहा है।
कई प्रमुख निर्णयों में कहा गया है कि—
“POSH Act को व्यापक रूप से लागू किया जाना चाहिए, ताकि अधिकतम सुरक्षा सुनिश्चित हो।”
इसलिए सम्भावना है कि सुप्रीम कोर्ट—
- बार काउंसिल जैसी वैधानिक निकायों को भी POSH के दायरे में रखने की ओर अधिक झुकेगा,
- या कम से कम “हाइब्रिड नियम” बना सकता है, जैसे:
✔ बार काउंसिल को ICC बनानी पड़े
✔ लेकिन वकीलों को स्वतंत्र पेशेवर माना जाए
इस प्रकार का संतुलित निर्णय संभव है।
निर्णय का पूरे देश में प्रभाव
यह मामला सिर्फ महाराष्ट्र या बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले तक सीमित नहीं है।
इसके दूरगामी प्रभाव होंगे—
1. पूरे भारत की बार काउंसिल्स पर असर
सुप्रीम कोर्ट का जो भी निर्णय आएगा, वह—
- Bar Council of India,
- सभी राज्य बार काउंसिल
पर बाध्यकारी होगा।
2. महिला वकीलों की सुरक्षा पर सीधा प्रभाव
यदि POSH लागू हुआ—
- शिकायतों को अधिक संवेदनशीलता मिलेगी
- समयबद्ध कार्रवाई होगी
- कोर्ट परिसर में सुरक्षित वातावरण बनेगा
3. अन्य पेशेवर निकायों के लिए नज़ीर
यह निर्णय—
- चिकित्सक,
- चार्टर्ड अकाउंटेंट,
- आर्किटेक्ट
जैसे पेशों पर भी प्रभाव डाल सकता है।
निष्कर्ष — सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक होगा
Women Lawyers Association द्वारा की गई यह चुनौती केवल एक तकनीकी कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि महिलाओं की गरिमा, अधिकारों और पेशेवर सुरक्षा का संवैधानिक प्रश्न है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय—
- POSH Act की सीमा,
- कार्यस्थल की परिभाषा,
- स्वतंत्र पेशेवरों की स्थिति,
- और वैधानिक निकायों की जिम्मेदारी
को लेकर व्यापक स्पष्टता लाएगा।
संभावना है कि न्यायालय POSH Act को व्यापक रूप में लागू करने की ओर झुकेगा, ताकि महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित, समावेशी और पेशेवर कार्य वातावरण बनाया जा सके।
यह मामला आने वाले वर्षों में भारत के कानूनी ढांचे और पेशेवर आचरण के मानकों को गहराई से प्रभावित कर सकता है—और इसलिए यह एक ऐतिहासिक मुकदमे की तरह देखा जा रहा है।