लेख शीर्षक:
“सुप्रीम कोर्ट में कोर्टरूम के सामने से हटाए गए ग्लास पैनल: न्यायालय की मूल भव्यता और पारदर्शिता की बहाली की पहल”
भूमिका:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय को न्याय का मंदिर कहा जाता है, जहां संविधान और कानून के प्रति आस्था सर्वोपरि होती है। हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक निर्णय के तहत सुप्रीम कोर्ट ने अपने कुछ कोर्टरूम के सामने लगाए गए ग्लास पैनल (कांच की दीवारें) हटवा दिए हैं। इस फैसले के पीछे जो दृष्टिकोण है, वह न केवल स्थापत्य सौंदर्य से जुड़ा है, बल्कि न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता, गरिमा और ऐतिहासिक मूल्यों की पुनर्स्थापना से भी गहराई से संबंधित है।
🔹 क्या था ग्लास पैनल का उद्देश्य?
पिछले कुछ वर्षों में सुप्रीम कोर्ट परिसर में कुछ कोर्टरूम के बाहर ग्लास पैनल या कांच की दीवारें लगा दी गई थीं। इनका उद्देश्य था:
- कोर्ट की कार्यवाही में शांति बनाए रखना
- भीड़ नियंत्रण
- अंदर-बाहर आवाज के नियंत्रण के लिए ध्वनि अवरोधक (soundproofing)
लेकिन समय के साथ इन पैनलों की मौजूदगी पर कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं, न्यायाधीशों और न्यायिक इतिहासकारों ने आपत्ति जताई, यह कहते हुए कि इससे न केवल कोर्टरूम की भव्यता ढकी रह जाती है, बल्कि यह पारदर्शिता और जनता की निगरानी के अधिकार के भी विरुद्ध है।
🔹 सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: मूल स्वरूप की ओर वापसी
2024-25 में सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने यह निर्णय लिया कि मुख्य कोर्टरूम सहित कुछ विशेष कोर्टरूम से ग्लास पैनल हटाए जाएंगे। इसका प्रमुख उद्देश्य यह बताया गया:
- कोर्टरूम की ऐतिहासिक भव्यता और वास्तुकला को मूल रूप में बहाल करना
- सार्वजनिक दृष्टिगोचरता को बढ़ाना और न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखना
- न्यायालय की गरिमा और खुलापन पुनर्स्थापित करना
🔹 मुख्य न्यायाधीश का दृष्टिकोण
मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने इस विषय में कहा:
“सुप्रीम कोर्ट केवल एक न्यायिक संस्थान नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक विरासत है। इसकी भव्यता और पारदर्शिता संविधान के मूल मूल्यों को दर्शाती है।”
उनके अनुसार, न्यायिक कार्यवाही में भागीदारी और खुलापन न केवल एक संवैधानिक मूल्य है, बल्कि नागरिकों का अधिकार भी है।
🔹 इस कदम का व्यापक महत्व
✅ 1. स्थापत्य और विरासत की रक्षा:
पुराने कोर्टरूम की ऊंची छतें, लकड़ी की नक्काशी और पारंपरिक वास्तुशिल्प न्यायिक गरिमा का प्रतीक हैं, जिन्हें अब खुलकर देखा जा सकेगा।
✅ 2. पारदर्शिता का संदेश:
ग्लास पैनलों की अनुपस्थिति से अब आम व्यक्ति और मीडिया कोर्ट कार्यवाही की प्रक्रिया को बिना बाधा देख सकते हैं।
✅ 3. न्यायिक अनुभव में सुधार:
कोर्ट के भीतर और बाहर संवाद और भागीदारी का वातावरण बेहतर होगा।
🔹 विरोध या चिंताएं
कुछ अधिकारियों ने यह चिंता जताई कि ग्लास पैनल हटाने से:
- भीड़ और अव्यवस्था बढ़ सकती है
- ध्वनि व्यवधान हो सकते हैं
- सुरक्षा संबंधी मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं
लेकिन कोर्ट प्रशासन का मत है कि अन्य आधुनिक व्यवस्थाओं (जैसे CCTV, ध्वनि नियंत्रण प्रणाली, अनुशासन निगरानी) से यह समस्याएं नियंत्रित की जा सकती हैं।
🔹 अन्य न्यायालयों के लिए प्रेरणा
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम अन्य उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों के लिए भी एक अनुकरणीय उदाहरण बन सकता है, जहां न्यायालयों को आधुनिक सुविधाओं के साथ पारदर्शिता और सांस्कृतिक मूल्यों के बीच संतुलन साधना आवश्यक है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोर्टरूम के सामने से ग्लास पैनल हटाने का निर्णय केवल भौतिक बदलाव नहीं, बल्कि न्यायिक सोच में पारदर्शिता, विरासत और संविधान के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह कदम बताता है कि एक आधुनिक न्यायपालिका भी अपनी ऐतिहासिक गरिमा को महत्व देती है और न्याय केवल “होता” नहीं, बल्कि “दिखता” भी है — यही लोकतंत्र की असली शक्ति है।