लेख शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट में अदाणी समूह की जांच के लिए एसआईटी गठन की याचिका – विशाल तिवारी बनाम भारत संघ
महत्वपूर्ण आदेश और निर्णय:
मामला: विशाल तिवारी बनाम भारत संघ
वाद संख्या: W.P.(C) No. 162/2023
न्यायालय: भारत का सर्वोच्च न्यायालय
मुख्य विषय: अदाणी समूह की कंपनियों में निवेश के संदर्भ में SEBI की जांच की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न और विशेष जांच दल (SIT) के गठन की मांग।
पृष्ठभूमि:
2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अदाणी समूह पर लगाए गए गंभीर वित्तीय अनियमितताओं और शेयर बाजार में हेराफेरी के आरोपों के बाद देशभर में हलचल मच गई। इस रिपोर्ट के पश्चात अदाणी समूह के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली और देश के निवेशकों का विश्वास डगमगाने लगा।
इस पृष्ठभूमि में एडवोकेट विशाल तिवारी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई जिसमें उन्होंने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की जांच को अपर्याप्त बताते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने की मांग की।
मुख्य प्रार्थनाएं (Reliefs prayed for):
- अदाणी समूह से संबंधित वित्तीय लेन-देन, शेयर बाजार में हेराफेरी और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) की भूमिका की जांच SIT से कराना।
- हिंडनबर्ग रिपोर्ट और उससे उत्पन्न प्रभावों की व्यापक जांच।
- निवेशकों के हितों की रक्षा हेतु एक विशेष निगरानी तंत्र बनाना।
- SEBI को निर्देश देना कि वह पारदर्शी और समयबद्ध जांच करे।
उत्तरदाता पक्ष (Respondents):
- भारत संघ (Union of India)
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)
- अदाणी समूह की कंपनियां
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और निर्णय (Judgment and Directions):
तारीख: 2 मार्च 2023
मुख्य बेंच: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली पीठ
मुख्य आदेश बिंदु:
- सुप्रीम कोर्ट ने SIT गठन की मांग को अस्वीकार कर दिया।
- न्यायालय ने SEBI को निर्देशित किया कि वह अपनी जांच निर्धारित समयावधि (जून 2023) के भीतर पूरी करे और रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे।
- कोर्ट ने एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति ए. एम. सप्रे (सेवानिवृत्त) करेंगे।
- समिति को निम्नलिखित प्रश्नों पर रिपोर्ट देनी थी:
- क्या अदाणी समूह में निवेशकों के हितों की रक्षा पर्याप्त रूप से की गई?
- क्या नियामक व्यवस्था मजबूत है?
- क्या कोई चूक हुई है जिससे निवेशकों को नुकसान हुआ?
विशेष समिति के सदस्य:
- जस्टिस ए. एम. सप्रे (अध्यक्ष)
- के. वी. कामथ (पूर्व बैंकर)
- ओ. पी. भट्ट (पूर्व SBI अध्यक्ष)
- नंदन नीलेकणी (Infosys सह-संस्थापक)
- सोमशेखर सुंदरसन (विधि विशेषज्ञ)
- पी. के. महापात्रा (पूर्व IAS अधिकारी)
न्यायालय की टिप्पणी:
“वित्तीय बाजार की पारदर्शिता और निवेशकों का विश्वास बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है, परंतु इस स्तर पर SIT का गठन तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता। SEBI को अपनी भूमिका सही ढंग से निभाने का अवसर दिया जाना चाहिए।”
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- यह मामला भारत में कॉर्पोरेट जवाबदेही, नियामक पारदर्शिता और निवेशकों की सुरक्षा के लिए मील का पत्थर माना गया।
- सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र निगरानी और विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति से यह संकेत दिया कि न्यायपालिका वित्तीय प्रणाली की निगरानी में सक्रिय भूमिका निभा सकती है।
निष्कर्ष:
विशाल तिवारी बनाम भारत संघ मामला केवल अदाणी समूह तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस, वित्तीय पारदर्शिता और नियामक संस्थाओं की जवाबदेही पर गहरा प्रभाव डालता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न्यायिक संतुलन और संस्थागत जांच की शक्ति का आदर्श उदाहरण बन गया है।