“सुप्रीम कोर्ट ने होमबायर्स को दी राहत: शांतिपूर्ण विरोध और उपभोक्ता शिकायतों की अभिव्यक्ति को माना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा”
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट:
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में उपभोक्ताओं के अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूती प्रदान करते हुए Shahed Kamal और अन्य होमबायर्स के खिलाफ M/S. A. Surti Developers Pvt. Ltd. द्वारा दर्ज आपराधिक मानहानि (Criminal Defamation) की कार्यवाही को रद्द कर दिया है। यह मामला तब उठा जब कुछ खरीदारों ने बिल्डर की निर्माण गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए एक गैर-अपमानजनक (non-abusive) बैनर इमारत के बाहर लगाकर विरोध जताया।
मामले की पृष्ठभूमि:
कुछ होमबायर्स ने डेवलपर के खिलाफ शिकायत जताते हुए एक बैनर लगाया था जिसमें निर्माण की गुणवत्ता, वादों के पालन में असफलता, और ग्राहक सेवा में कमी को इंगित किया गया था। डेवलपर ने इसे मानहानि बताते हुए आपराधिक कार्यवाही की मांग की। मामले को लेकर निचली अदालत में शिकायत दर्ज की गई और होमबायर्स के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्न और न्यायमूर्ति संजय करोल की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि:
“शांतिपूर्ण विरोध और उपभोक्ता शिकायतों की सार्वजनिक अभिव्यक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत संरक्षित मौलिक अधिकार है। जब तक विरोध अशोभनीय, अपमानजनक या झूठा नहीं है, तब तक उसे मानहानि नहीं माना जा सकता।”
पीठ ने यह भी कहा कि कोई भी उपभोक्ता यदि किसी उत्पाद या सेवा की गुणवत्ता से असंतुष्ट है, तो वह अपनी नाराजगी सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर सकता है, बशर्ते वह मर्यादित हो।
फैसले का महत्व:
इस निर्णय से उपभोक्ता अधिकारों को महत्वपूर्ण समर्थन मिला है। यह स्पष्ट किया गया है कि केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति किसी कंपनी के खिलाफ सार्वजनिक रूप से शिकायत करता है, उसे आपराधिक मानहानि का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि कंपनियां अपने ब्रांड की रक्षा कर सकती हैं, लेकिन उपभोक्ताओं की आवाज को दबाने के लिए कानून का दुरुपयोग नहीं कर सकतीं।
उपसंहार:
इस ऐतिहासिक निर्णय ने उन लाखों उपभोक्ताओं को आवाज दी है जो अक्सर अपने अधिकारों की रक्षा करते हुए कानूनी डर से चुप हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने लोकतंत्र में “शांतिपूर्ण असहमति और आलोचना की संस्कृति” को मजबूती दी है और यह सुनिश्चित किया है कि “उपभोक्ताओं की आवाज दबाई नहीं जा सकती।”