सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय शटलर लक्ष्या सेन पर जन्म प्रमाण पत्र फर्जीवाड़ा मामले में अपराधिक कार्यवाही रद्द की

शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय शटलर लक्ष्या सेन पर जन्म प्रमाण पत्र फर्जीवाड़ा मामले में अपराधिक कार्यवाही रद्द की


परिचय:
भारत के प्रतिष्ठित बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्या सेन और उनके परिवार ने एक बड़े कानूनी संकट से राहत पाई है। 28 जुलाई 2025 को, सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने जन्म प्रमाण पत्र फर्जीवाड़ा मामले में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि कोई साक्ष्य नहीं है जो आपराधिक कार्यवाही को समर्थन दे।


🧑‍⚖️ सुनवाई की पृष्ठभूमि:

  • मामला म. जी. नगराज द्वारा नवंबर 2022 में दर्ज निजी शिकायत से शुरू हुआ, जिसमें आरोप था कि लक्ष्या और उनके छोटे भाई चिराग ने अपनी आयु को लगभग दो वर्ष कम दिखाकर U-13 और U-15 प्रतियोगिताओं में भाग लिया था।
  • FIR में आईपीसी की धाराएँ 420 (ठगी), 468 (फर्जीवाड़ा), और 471 (फर्जी दस्तावेज उपयोग) के तहत आरोप लगाए गए, जिसमें लक्ष्या, चिराग, उनके माता-पिता और कोच यू. विमल कुमार नामित थे।
  • शिकायत में 1996 की GPF नामांकन फॉर्म को आधार बनाया गया, लेकिन वह दस्तावेज़ प्रमाणिक सिद्ध नहीं हो सका।

हाई कोर्ट की प्रक्रिया:

  • फरवरी 2025 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने लक्ष्या, चिराग और अन्य की याचिकाएँ खारिज कर दीं, यह कहते हुए कि प्रारंभिक जांच के लिए पर्याप्त संदेह है।
  • इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई।

सुप्रीम कोर्ट के तर्क व निर्णय:

  1. प्रमाण की कमी:
    • अदालत ने कहा कि शिकायत में कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है जिससे अपराध सिद्ध हो सके।
    • SAI द्वारा की गई जांच में मेडिकल परीक्षणों के आधार पर जन्म तिथि की पुष्टि हो चुकी थी।
  2. दस्तावेज़ आधारित आरोप कमजोर:
    • शिकायत में दिए गए दस्तावेज़ किसी ठोस धोखाधड़ी या ठगी का प्रमाण नहीं देते।
  3. न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग:
    • अदालत ने कहा कि बिना साक्ष्य किसी खिलाड़ी को आपराधिक मुकदमे से गुजरने को मजबूर करना न्याय के उद्देश्य के विपरीत है।

“To compel such individuals to undergo the ordeal of a criminal trial in the absence of prima facie material would not subserve the ends of justice. The invocation of criminal law in such circumstances would amount to an abuse of process.”


अंतिम निर्णय:

  • 28 जुलाई 2025 को, न्यायमूर्ति सुदांशु धूलिया और अरविंद कुमार की पीठ ने FIR व आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
  • इससे लक्ष्या सेन को कानूनी राहत मिली और उच्च न्यायालय का आदेश पलट गया।

निष्कर्ष:
यह फैसला स्पष्ट करता है कि न्यायिक प्रक्रिया में सबूतों की अहम भूमिका है। किसी भी खिलाड़ी को बिना ठोस साक्ष्य आपराधिक मुकदमे में घसीटना न्याय नहीं, अन्याय है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कानूनी प्रणाली में विश्वास को मजबूत करता है और बताता है कि न्याय का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।