सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाने पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा: लोकतंत्र की पारदर्शिता पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाने पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा: लोकतंत्र की पारदर्शिता पर सवाल

प्रस्तावना:

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मताधिकार प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। यह अधिकार केवल चुनाव में भाग लेने तक सीमित नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रणाली की आत्मा को जीवित रखने का माध्यम भी है। ऐसे में यदि करोड़ों लोगों के नाम मतदाता सूची से बिना पारदर्शी प्रक्रिया के हटा दिए जाएं, तो यह गंभीर चिंता का विषय बन जाता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया है और आयोग से जवाब तलब किया है।


घटना का विवरण:

1 अगस्त 2025 को भारत निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची का नवीनतम मसौदा प्रकाशित किया, जिसमें लगभग 65 लाख ऐसे मतदाताओं की सूची भी जारी की गई जिनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं। यह सूची विभिन्न राज्यों से संबंधित है और इसे “डुप्लिकेट”, “स्थान परिवर्तन” या “मृत” मतदाताओं के आधार पर तैयार किया गया बताया गया।

हालांकि, इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और विधिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने यह आरोप लगाया है कि बड़ी संख्या में नाम हटाने की प्रक्रिया पूर्व सूचना, जांच और पुनः पुष्टि के बिना की गई है, जिससे वैध मतदाता चुनाव प्रक्रिया से वंचित हो सकते हैं।


सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और निर्वाचन आयोग से यह स्पष्ट करने को कहा कि —

  • किन मापदंडों पर मतदाताओं के नाम हटाए गए?
  • क्या हटाए गए प्रत्येक व्यक्ति को पूर्व सूचना दी गई?
  • क्या सूची में नाम हटाने से पहले उन्हें अपनी बात रखने का अवसर दिया गया?
  • यह सुनिश्चित कैसे किया गया कि कोई वैध मतदाता प्रभावित न हो?

न्यायालय ने कहा कि यदि निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया तो यह नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन माना जाएगा।


लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर प्रभाव:

मतदाता सूची से इस प्रकार बड़े पैमाने पर नाम हटाया जाना कई स्तरों पर चिंताजनक है:

  1. विश्वास में कमी: जब नागरिकों को लगता है कि उनके वोट देने के अधिकार पर कुठाराघात हो रहा है, तो लोकतांत्रिक प्रणाली में उनका विश्वास डगमगाने लगता है।
  2. राजनीतिक पक्षपात का आरोप: यदि हटाने की प्रक्रिया में निष्पक्षता नहीं रही, तो यह आरोप लग सकते हैं कि राजनीतिक लाभ के लिए विशिष्ट वर्गों को निशाना बनाया गया।
  3. प्रशासनिक पारदर्शिता: किसी भी संवैधानिक संस्था से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखे।

चुनाव आयोग की भूमिका और जिम्मेदारी:

भारत निर्वाचन आयोग को संविधान द्वारा एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था के रूप में स्थापित किया गया है, जिसका मुख्य कार्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना है। अतः यह आवश्यक है कि —

  • मतदाता सूची को अपडेट करते समय निष्पक्ष और वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाए।
  • प्रत्येक मतदाता को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाए।
  • अपील और शिकायत की पारदर्शी प्रणाली उपलब्ध कराई जाए।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप न केवल 65 लाख संभावित मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक सार्थक कदम है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की भी पुष्टि करता है। मतदाता सूची का निष्पक्ष और पारदर्शी अद्यतन एक संवेदनशील प्रक्रिया है, जिसमें हर नागरिक की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। यह मामला भारत के लोकतंत्र के स्वास्थ्य की परीक्षा है — और इस परीक्षा में चुनाव आयोग की पारदर्शिता ही देश की लोकतांत्रिक प्रतिष्ठा को सुदृढ़ करेगी।


संदेश:

हर नागरिक को चाहिए कि वह समय-समय पर अपनी मतदाता जानकारी की जांच करे, निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर सूची में अपने नाम की पुष्टि करे और यदि कोई गड़बड़ी हो तो समय रहते शिकायत दर्ज कराए। केवल सजग नागरिक ही एक सशक्त लोकतंत्र की नींव रख सकते हैं।