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सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को आदेश दिया: जिन क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालयों की कमी है, वहाँ अनिवार्य रूप से स्कूल स्थापित किए जाएँ

सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को आदेश दिया: जिन क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालयों की कमी है, वहाँ अनिवार्य रूप से स्कूल स्थापित किए जाएँ

— I किमी के भीतर LP स्कूल और 2 किमी के भीतर UP स्कूल सुनिश्चित करने का निर्देश

       भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए केरल सरकार को निर्देश दिया है कि प्रदेश के ऐसे सभी क्षेत्रों में प्राथमिक (Lower Primary – LP) एवं उच्च प्राथमिक (Upper Primary – UP) विद्यालय अनिवार्य रूप से स्थापित किए जाएँ, जहाँ वर्तमान में इनकी उपलब्धता नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिक्षा बच्चों का मौलिक और संवैधानिक अधिकार है, जिसे किसी भी प्रकार की प्रशासनिक देरी, नीतिगत अस्पष्टता या वित्तीय कठिनाइयों के आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। यह आदेश शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, संविधान के अनुच्छेद 21A, और राज्य सरकार के संवैधानिक दायित्वों की पुनः पुष्टि करता है।

      इस निर्णय के व्यापक प्रभाव न केवल केरल राज्य तक सीमित हैं, बल्कि यह पूरे देश के लिए शिक्षा के समान अवसरों को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश बच्चों की प्राथमिक शिक्षा को अधिक सुलभ, समान और गुणवत्तापूर्ण बनाने के उद्देश्य से राज्य सरकारों की जवाबदेही को मजबूत करता है।


पृष्ठभूमि: क्यों आवश्यक हुआ सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

      केरल जैसा राज्य—जो सदा से साक्षरता और शिक्षा के क्षेत्र में सबसे अग्रणी माना जाता है—वहाँ भी कुछ ग्रामीण, तटीय और जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालयों की कमी पाई गयी। कई स्कूलों को बंद करने, विलय करने या संसाधनों की कमी के कारण निष्क्रिय करने की शिकायतें सामने आईं।

कई याचिकाएँ दायर की गयीं जिनमें आरोप था कि:

  • कई स्थानों पर 1 किमी के दायरे में एक भी LP School नहीं है।
  • कई क्षेत्रों में 2 किमी के भीतर UP School की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
  • छात्रों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, जिससे ड्रॉपआउट की संख्या बढ़ रही है।
  • स्कूलों की कमी का सीधा असर वंचित तबके और गरीब परिवारों के बच्चों पर पड़ रहा है।

        सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के शिक्षा विभाग से विस्तृत जवाब माँगा। जाँच में पाया गया कि कुछ स्थानों पर भूगोल, परिवहन, और जनसंख्या घनत्व जैसे कारणों से स्कूलों की उचित उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की गयी है।


सुप्रीम कोर्ट का तर्क: शिक्षा का अधिकार राज्य की सर्वोच्च प्राथमिकता

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कई महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट किए:

1. शिक्षा मौलिक अधिकार है—इसके लिए राज्यों को अनिवार्य सुविधाएँ उपलब्ध करानी होंगी

अनुच्छेद 21A के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा भारत का मौलिक अधिकार है। इस अधिकार को लागू करना राज्य का संवैधानिक दायित्व है।

2. LP और UP स्कूलों की दूरी पर निश्चित मानक अनिवार्य है

RTE Act में स्पष्ट दिशानिर्देश हैं:

  • LP School (Lower Primary) — 1 किमी के भीतर
  • UP School (Upper Primary) — 3 किमी, परन्तु केरल मॉडल में 2 किमी निर्धारित किया गया है और कोर्ट ने इसे उचित बताते हुए पालन अनिवार्य किया।

3. भूगोल, जनसंख्या और सुविधाओं की कमी बहाना नहीं हो सकता

कोर्ट ने कहा कि यदि किसी स्थान की जनसंख्या कम है या स्कूल खोलने में प्रशासनिक कठिनाई है, तब भी राज्य को वैकल्पिक व्यवस्था करनी ही होगी—जैसे सैटेलाइट स्कूल, ट्रांजिट स्कूल, या मोबाइल शिक्षण केंद्र।

4. बच्चों को शिक्षा से वंचित रखना सामाजिक न्याय के विरुद्ध है

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि स्कूलों की उपलब्धता न होने के कारण बच्चों का ड्रॉपआउट होना संविधान द्वारा प्रदत्त समान अवसर के मौलिक सिद्धांत का उल्लंघन है।


कोर्ट का आदेश: क्या-क्या करने होंगे राज्य को?

सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को निम्नलिखित ठोस निर्देश दिए:

1. ऐसे सभी क्षेत्रों की पहचान करें जहाँ LP/UP School का अभाव है

इसके लिए सर्वेक्षण, जनसंख्या आंकड़े, भूगोलिक स्थिति और छात्रों की संख्या को ध्यान में रखना होगा।

2. LP स्कूलों को 1 किमी के भीतर और UP स्कूलों को 2 किमी के भीतर अनिवार्य रूप से स्थापित किया जाए

राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए समयबद्ध योजना बनानी होगी कि कोई भी बच्चा निर्धारित दूरी से अधिक चलकर स्कूल न जाए।

3. बंद या विलय किए गए स्कूलों की समीक्षा

केरल में कुछ स्कूलों को “कम संख्या” के आधार पर बंद कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसी सभी बंदियों की समीक्षा की जाए और जहाँ संभव हो पुनः खोला जाए।

4. शिक्षक और स्टाफ की पर्याप्त नियुक्ति

स्कूल स्थापित करने के लिए भवन बनाना पर्याप्त नहीं है—उसे चलाने के लिए प्रशिक्षित शिक्षक और कर्मचारियों की उपलब्धता आवश्यक है।

5. वित्तीय बाधाओं का हवाला न दिया जाए

कोर्ट ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा के लिए बजट में कटौती या देरी संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
राज्य को प्राथमिकता के आधार पर वित्त की व्यवस्था करनी होगी।


फैसले का व्यापक महत्व

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ केरल के लिए नहीं, बल्कि देशभर की शिक्षा प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। इसके कई व्यापक आयाम हैं:

1. शिक्षा के अधिकार को मजबूत बनाता है

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि RTE Act महज एक नीति नहीं, बल्कि एक बाध्यकारी दायित्व है। राज्यों को अब इस अधिकार की पूर्णता सुनिश्चित करनी होगी।

2. ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में शिक्षा का विस्तार

लंबी दूरी तय करने की समस्या ग्रामीण बच्चों के स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण है। यह आदेश इस समस्या को दूर करेगा।

3. स्कूल बंद करने की प्रवृत्ति पर लगाम

कई राज्यों में “कम नामांकन” का हवाला देकर स्कूल बंद किए जाते हैं, जो गरीब व कमजोर वर्गों को प्रभावित करता है। निर्णय इस प्रवृत्ति को रोकेगा।

4. शिक्षा में समानता के सिद्धांत को मजबूत करता है

धनी क्षेत्रों में पर्याप्त स्कूल जबकि गरीब क्षेत्रों में कमी—यह असंतुलन अब दूर करने की दिशा में मजबूती से कदम उठाया जाएगा।

5. मॉडल के रूप में अन्य राज्यों द्वारा अपनाया जा सकता है

केरल का शिक्षा मॉडल पहले से ही सराहनीय है, अब यह नई व्यवस्था देशभर के लिए एक मानक स्थापित करेगी।


क्या कहती है RTE अधिनियम—संक्षिप्त विश्लेषण

Right to Education Act, 2009 के तहत:

  • हर बच्चे को पास के स्कूल में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है।
  • प्राथमिक शिक्षा की दूरी के मानक निर्धारित हैं।
  • स्कूलों में बुनियादी सुविधाएँ (शौचालय, पानी, पुस्तकालय, खेल का मैदान) अनिवार्य हैं।
  • निजी स्कूलों में 25% सीटें गरीब वर्ग के लिए आरक्षित हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा का अधिकार केवल स्कूल के अस्तित्व तक सीमित नहीं माना, बल्कि उसे सुलभ, उपलब्ध और पहुँच योग्य माना है।


निर्णय का सामाजिक और संवैधानिक महत्व

1. सामाजिक न्याय

शिक्षा गरीब और पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ाने का सबसे मजबूत माध्यम है। कोर्ट का आदेश समाज के सबसे कमजोर वर्गों को सीधा लाभ पहुँचाएगा।

2. बच्चों की सुरक्षा

छोटे बच्चों को लंबी दूरी तय कर स्कूल जाने से सुरक्षा जोखिम बढ़ते हैं। समीपस्थ स्कूल इस खतरे को कम करेंगे।

3. बाल श्रम और ड्रॉपआउट रोकने में मदद

घर से दूर स्कूल होने के कारण बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं और बाल श्रम में लग जाते हैं। समीपस्थ स्कूल उनके भविष्य को सुरक्षित बनाएंगे।

4. महिला शिक्षा को बढ़ावा

लड़कियाँ दूर के स्कूलों में जाने से परहेज़ करती हैं या परिवार उन्हें रोक देता है। यह आदेश लड़कियों की शिक्षा के लिए विशेष रूप से लाभकारी होगा।


केरल सरकार की जिम्मेदारी: क्या करना होगा आगे?

राज्य सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:

  • समग्र मैपिंग: ऐसे सभी गांवों/स्थानों की सूची बनाना जहाँ स्कूलों की कमी है।
  • योजना निर्माण: 6 माह के भीतर निर्माण/स्थापना योजना तैयार करना।
  • संसाधन आवंटन: बजट सुनिश्चित करना और प्राथमिक शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना।
  • समन्वय: लोक निर्माण विभाग, पंचायतों और शिक्षा विभाग के बीच समन्वय स्थापित करना।
  • प्रगति रिपोर्ट: सुप्रीम कोर्ट को समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करना।

निष्कर्ष: शिक्षा का अधिकार केवल कागजों में नहीं, ज़मीन पर भी लागू होना चाहिए

       सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए एक मजबूत धक्का है—एक याद दिलाने वाला संदेश कि बच्चों का शिक्षा का अधिकार किसी भी कीमत पर समझौते के योग्य नहीं है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना ही होगा कि हर बच्चे को उसके घर के पास गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा मिले, चाहे वह किसी भी आर्थिक, सामाजिक या भौगोलिक स्थिति में क्यों न हो।

      यह आदेश न केवल बच्चों को शिक्षा के बेहतर अवसर प्रदान करेगा, बल्कि भारत के भविष्य को अधिक मजबूत, सक्षम और समानता पर आधारित बनाने में अहम भूमिका निभाएगा।