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सुप्रीम कोर्ट द्वारा आवास के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाला ऐतिहासिक निर्णय

“Mansi Brar Fernandes बनाम Shubha Sharma एवं अन्य: सुप्रीम कोर्ट द्वारा आवास के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाला ऐतिहासिक निर्णय”


प्रस्तावना

भारत के आवासीय क्षेत्र में वर्षों से चल रही आर्थिक मंदी और अधूरी पड़ी रियल एस्टेट परियोजनाओं ने लाखों घर खरीदारों (Homebuyers) को प्रभावित किया है। अनेक लोग जिन्होंने अपने जीवन की पूंजी किसी आवासीय परियोजना में निवेश की, उन्हें वर्षों बाद भी अपने घर नहीं मिल पाए। ऐसे समय में, सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय “Mansi Brar Fernandes बनाम Shubha Sharma एवं अन्य” (2025) एक मील का पत्थर साबित हुआ है।

इस निर्णय में न्यायालय ने न केवल आवास के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना, बल्कि केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह “Revival Fund” या “Stressed Real Estate Fund” की स्थापना करे, जिससे दिवालियापन (Insolvency) की प्रक्रिया में फंसी परियोजनाओं को पुनर्जीवित किया जा सके और खरीदारों को राहत मिले।


मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

मामला तब उठा जब Mansi Brar Fernandes और अन्य गृह खरीदारों ने एक रियल एस्टेट परियोजना में निवेश किया था, जिसे बाद में वित्तीय संकट और कानूनी विवादों के कारण Insolvency and Bankruptcy Code (IBC) के तहत दिवालिया घोषित कर दिया गया।

परियोजना की Insolvency प्रक्रिया शुरू होने के बाद, गृह खरीदारों को न तो अपने घर मिले, न ही उनकी पूंजी की कोई वापसी हुई। Mansi Brar Fernandes ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि हजारों गृह खरीदारों को बेघर और आर्थिक रूप से नष्ट छोड़ देना संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित “जीवन के अधिकार” का उल्लंघन है, क्योंकि “आवास” जीवन का आवश्यक हिस्सा है।


मुख्य कानूनी प्रश्न (Key Legal Issues)

  1. क्या “आवास का अधिकार (Right to Housing)” संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार (Right to Life) का अभिन्न हिस्सा है?
  2. क्या केंद्र सरकार और नियामक निकायों का यह संवैधानिक दायित्व है कि वे Insolvency में फंसी परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने के उपाय करें?
  3. क्या गृह खरीदारों को वित्तीय लेनदार (Financial Creditors) के रूप में प्राथमिकता दी जानी चाहिए?
  4. क्या सुप्रीम कोर्ट को नीति निर्धारण (Policy Recommendation) का अधिकार है ताकि ऐसी समस्याओं का समाधान किया जा सके?

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Judicial Analysis)

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति संजय कौल और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना शामिल थीं, ने विस्तृत रूप से यह कहा कि—

“आवास केवल एक भौतिक संरचना नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के सम्मान, सुरक्षा और गरिमा से जुड़ा अधिकार है। अनुच्छेद 21 में निहित ‘जीवन का अधिकार’ केवल श्वास लेने का अधिकार नहीं बल्कि सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है, जिसमें आवास का अधिकार निहित है।”

न्यायालय ने यह भी माना कि आज के भारत में लाखों मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवार अपने जीवन की पूरी पूंजी किसी फ्लैट या घर में निवेश करते हैं। यदि उन्हें यह आवास नहीं मिलता, तो यह न केवल आर्थिक हानि है बल्कि संवैधानिक अन्याय भी है।


सुप्रीम कोर्ट के निर्देश (Directions of the Supreme Court)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने विस्तृत निर्णय में केंद्र सरकार और संबंधित संस्थाओं को निम्नलिखित महत्वपूर्ण निर्देश दिए—

  1. Revival Fund का गठन:
    केंद्र सरकार को “Stressed Real Estate Revival Fund” के रूप में एक विशेष कोष बनाने का निर्देश दिया गया है। इस कोष का उद्देश्य Insolvency में फंसी परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना है ताकि निर्माण पूरा किया जा सके और खरीदारों को उनका घर मिल सके।
  2. NCLT और NCLAT को विशेष शक्तियां:
    न्यायालय ने कहा कि National Company Law Tribunal (NCLT) और Appellate Tribunal (NCLAT) को गृह खरीदारों की याचिकाओं पर प्राथमिकता से सुनवाई करनी चाहिए, विशेषकर तब जब परियोजना आंशिक रूप से पूरी हो चुकी हो।
  3. RERA की सक्रिय भूमिका:
    न्यायालय ने Real Estate Regulatory Authority (RERA) को निर्देश दिया कि वह Insolvency में फंसी परियोजनाओं की निगरानी करे और खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए विशेष रिपोर्ट केंद्र सरकार को दे।
  4. गृह खरीदारों की प्राथमिकता:
    कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि गृह खरीदार अब केवल “Financial Creditors” नहीं, बल्कि “Priority Stakeholders” माने जाएंगे, जिनका हित किसी भी Insolvency Resolution Plan में सर्वोपरि रहेगा।

संविधानिक दृष्टिकोण (Constitutional Perspective)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की व्याख्या करते हुए कहा कि—

“Right to Shelter is not merely a roof over one’s head but includes access to safe and secure housing, basic amenities, and a dignified standard of living.”

कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 38, 39, और 46 सामाजिक न्याय, समानता और आर्थिक सुरक्षा को बढ़ावा देने की बात करते हैं। इन अनुच्छेदों को ध्यान में रखते हुए, सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को आवास जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित न रहने दे।


पूर्ववर्ती निर्णयों का उल्लेख (Reference to Earlier Judgments)

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में कुछ महत्वपूर्ण पुराने मामलों का भी उल्लेख किया, जैसे—

  1. Olga Tellis v. Bombay Municipal Corporation (1985):
    जिसमें यह कहा गया था कि “Right to Livelihood” अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है।
  2. Chameli Singh v. State of Uttar Pradesh (1996):
    इस मामले में कहा गया था कि “Right to Shelter” भी “Right to Life” का हिस्सा है।
  3. Delhi Development Authority v. Joint Action Committee (2008):
    न्यायालय ने कहा था कि राज्य का कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों को आवासीय सुविधा प्रदान करे।

इन निर्णयों के आलोक में, “Mansi Brar Fernandes बनाम Shubha Sharma” केस को एक सैद्धांतिक निरंतरता के रूप में देखा जा सकता है, जिसने अब इस अधिकार को व्यवहारिक रूप में लागू करने की दिशा दिखाई है।


आर्थिक और सामाजिक प्रभाव (Socio-Economic Impact)

इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था दोनों पर पड़ेंगे।

  • (1) गृह खरीदारों का भरोसा बहाल होगा:
    अब लोग निवेश करने में अधिक सुरक्षित महसूस करेंगे।
  • (2) रियल एस्टेट सेक्टर को नया जीवन मिलेगा:
    Insolvency में फंसे प्रोजेक्ट्स के लिए Revival Fund बड़ी राहत साबित होगा।
  • (3) बैंकिंग और वित्तीय संस्थाओं की पारदर्शिता बढ़ेगी:
    अब बैंकों को यह ध्यान रखना होगा कि परियोजनाएं खरीदारों के हित में हों।
  • (4) सामाजिक न्याय का विस्तार:
    मध्यम और निम्नवर्गीय नागरिकों के लिए सम्मानजनक जीवन का अवसर बढ़ेगा।

सरकार की भूमिका और संभावित नीतियाँ (Government’s Role and Possible Policies)

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि केंद्र सरकार निम्न उपाय कर सकती है—

  1. Insolvency Code में संशोधन कर गृह खरीदारों को प्राथमिक स्थिति देना।
  2. Revival Fund के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership) का मॉडल बनाना।
  3. अधूरी परियोजनाओं के लिए “Fast Track Completion Mechanism” विकसित करना।
  4. RERA और IBC के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना ताकि प्रक्रिया सुगम बने।

न्यायिक सक्रियता और नीति निर्देश (Judicial Activism and Policy Directive)

यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका के “Judicial Activism” का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट ने केवल कानून की व्याख्या नहीं की बल्कि नीति निर्माण की दिशा में सरकार को ठोस सुझाव भी दिए।
यह कदम न्यायपालिका के उस सक्रिय स्वरूप को दर्शाता है जो समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए आगे बढ़ता है।


आलोचना और सीमाएँ (Criticism and Limitations)

यद्यपि निर्णय ऐतिहासिक है, पर कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि—

  • सुप्रीम कोर्ट नीति निर्माण में अधिक दखल न दे; यह कार्य कार्यपालिका का है।
  • Revival Fund की व्यावहारिकता अभी अस्पष्ट है — फंडिंग का स्रोत, पात्रता, और निगरानी तंत्र पर स्पष्ट दिशा-निर्देश आवश्यक हैं।
  • Insolvency प्रक्रिया में निवेशकों और बैंकों के हितों को भी संतुलित रखना होगा।

निष्कर्ष (Conclusion)

“Mansi Brar Fernandes बनाम Shubha Sharma एवं अन्य” का निर्णय भारतीय न्यायशास्त्र में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। इसने “Right to Housing” को न केवल संवैधानिक स्तर पर मान्यता दी, बल्कि इसे व्यवहारिक रूप में लागू करने की दिशा भी दिखाई।

न्यायालय का यह कहना कि —

“घर केवल ईंटों का ढांचा नहीं, बल्कि व्यक्ति के अस्तित्व और सम्मान की नींव है”
— इस निर्णय की आत्मा को स्पष्ट करता है।

अब केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे इस दिशा में ठोस कदम उठाएं, ताकि हर भारतीय नागरिक को “सम्मानपूर्वक आवास” का संवैधानिक वादा पूरा हो सके।

यह निर्णय न केवल गृह खरीदारों के लिए राहत है, बल्कि यह भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की उस आत्मा का भी प्रतीक है जो कहती है —

“जीवन का अधिकार तब तक अधूरा है, जब तक हर नागरिक के सिर पर छत न हो।”