“हाफ-इयरली टैक्स डाइजेस्ट 2025: सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम टैक्स रुझान व महत्वपूर्ण निर्णय”
प्रस्तावना
वित्तीय वर्ष 2025 की पहली छमाही में टैक्स कानून (Income Tax, GST, Luxury/Entertainment Tax, Customs, Service Tax आदि) के क्षेत्र में न्यायिक प्रवृत्तियों ने अनेक महत्वपूर्ण नए मोड़ दिखाए हैं। इस अवधि में सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ धारा-80 IA/IB, 80-HHC आदि के अंतर्गत कटौतियों के विषय में स्पष्टीकरण दिए, बल्कि टैक्स-लीवीनिगेसन, विधायी अधिकार क्षेत्र, राज्य एवं केंद्र के लेवी बाओं के बीच विभाजन, तथा वस्तु एवं सेवा कर के संचालन-प्रशासन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण निर्देश पारित किए। यह डाइजेस्ट उन्हीं प्रमुख प्रवृत्तियों और निर्णयों का संकलन है — ताकि टैक्स सलाहकार, करदाताओं और विधि-अध्येताओं को इन नवोन्मेषों की व्यापक समझ मिल सके।
भाग 1: विधायी अधिकार क्षेत्र एवं संघ-राज्य विभाजन
इस छमाही में एक बड़ी प्रवृत्ति रही है कि राज्य सरकारों द्वारा लगाये गए करों की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक गौर किया है। विशेष रूप से देखिये:
- Kerala High Court से सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला: Asianet Satellite Communications Ltd. तथा अन्य बनाम State of Kerala — जहाँ केरल में केबल टीवी सेवाओं पर लगाये गए लग्ज़री टैक्स पर विवाद था। सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया कि केबल टीवी सेवाएँ “लक्ष्य-वर्ग” (luxury) की श्रेणी में आ सकती हैं एवं लेख 62, सूची-II (राज्य सूची) के अंतर्गत राज्य कराधिकार सक्षम है। इस प्रकार यह स्पष्ट हुआ कि इस मामले में राज्य का टैक्स केंद्र के ब्रॉडकास्टिंग टैक्स से टकराता नहीं है — क्योंकि केंद्र की सेवा कर व्यवस्था लेख 97 सूची-I (केंद्रीय सूची) के अंतर्गत है।
- इस निर्णय में यह भी उल्लेखनीय है कि शुरू में केबल ऑपरेटरों के लिए छूट दी गयी थी (जिनके 7,500 से कम कनेक्शन थे) जिसे उच्च न्यायालय ने आर्टिकल 14 के उल्लंघन के आधार पर खारिज किया था, पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भाग खारिज करते हुए नया फ्रेमवर्क वैध माना।
- इस प्रकार यह प्रवृत्ति उभरी है कि राज्य-केंद्र विभाजन (federal division of taxing power) को ‘aspect theory’ के आधार पर देखा जा रहा है — अर्थात् यह नहीं कि कौन-से कर लगाने का अधिकार है, बल्कि कर लगाने की क्रिया (taxable event) किस “पहलू” (aspect) से संबंधित है — किस सूची-इकाई के अंतर्गत आता है — इस पर निर्णय किया जा रहा है।
यह श्रेणी कराधिकार की दृष्टि से अहम है क्योंकि टैक्स विवादों में अक्सर यह पूछा जाता है कि क्या राज्य ने केंद्रीय सूची के अंतर्गत आने वाले “सेवा” को टैक्स किया है या केंद्र ने राज्य सूची के अंतर्गत आने वाले “उपभोक्ता वस्त्र/सेवा” को किया है। यह निर्णय इस प्रकार की चुनौतियों के लिए एक मार्गदर्शक संकेतक बन गया है।
भाग 2: धारा 80-IA(9) तथा कटौतियों की गणना (Income Tax)
अतिरिक्त प्रवृत्ति रही है कि सूचनाकारी कटौतियों (deductions) के उपयोग एवं उनकी गणना-प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है — विशेषकर Income‑tax Act, 1961 की धारा 80-IA(9) के संदर्भ में।
- मामले: Shital Fibers Ltd. बनाम कमिश्नर ऑफ Income Tax — सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि धारा 80-IA(9) कटौती की गणना (computation) को प्रभावित नहीं करती कि पहले 80-IA/80-IB की कटौती निकालो फिर 80-HHC आदि की कटौती निकालो; बल्कि यह सिर्फ यह देखती है कि कुल लाभ (eligible business profits) से कटौती की कुल राशि अधिक न हो जाएँ। इस तरह से, 80-IA/80-IB तथा 80-HHC के तहत अलग-अलग कटौतियों की गणना स्वतंत्र रूप से हो सकती है, लेकिन यदि दोनों मिलकर उस वर्ष के व्यापार-लाभ (profits) को पार कर रही हों, तो धारा 80-IA(9) द्वारा उन्हें सीमित किया जाएगा।
- उदाहरण के तौर पर यदि व्यापार-लाभ = 100 रुपये हैं, 80-IA के अंतर्गत रो = 30 रुपये कटौती हुई हो, और 80-HHC के अंतर्गत 80 रुपये कटौती की गणना हो सकती है — फिर भी 80-IA(9) के आधार पर कटौती की कुल राशि 100 रुपये से अधिक नहीं हो सकती; अतः 80-HHC के अंतर्गत कटौती 80 रोक देने की बजाय 70 रुपये तक सीमित होगी।
इस निर्णय से टैक्स-अभियुक्तों तथा टैक्स सलाहकारों को यह स्पष्ट संकेत मिला है कि कटौतियों की “क्लैसिक” गणना-क्रम (प्री-रेडक्शन मॉडल) जरूरी नहीं है; घटिया फैसले (split verdicts) को यह निर्णय समाप्त करता है।
भाग 3: GST एवं जीएसटी प्रक्रियात्मक और कर संचालन संबंधी रुझान
GST (Goods & Services Tax) के संचालन-प्रक्रिया (compliance, rectification of returns, ledger blocking/unblocking आदि) पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महत्वपूर्ण निर्देश दिये हैं:
- एक निर्णय में Central Board of Indirect Taxes and Customs (CBIC) की ओर से प्रस्तुत याचिका खारिज हुई जिसमें कहा गया था कि — व्यवसायी समय-सीमा के बाद GST रिटर्न्स में त्रुटियाँ (bonafide errors) सुधार नहीं सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसा करने में केंद्रीय राजस्व को कोई वास्तविक हानि नहीं हुई है, तो व्यवसायियों को कटौती-मूलक सुधार की अनुमति मिल सकती है।
- एक अन्य मामला: State of Karnataka बनाम K‑9 Enterprises में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के उस निर्देश को पुष्ट किया जिसमें जीएसटी ई-क्रेडिट लेजर (ECRL) ब्लॉक करने से पहले पूर्व-निर्णय सुनवाई (pre-decisional hearing) की अनिवार्यता बताई गई थी।
- इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि टैक्स प्रशासन को अब “डिफॉल्ट-आधारित” (automatic) ब्लॉकिंग या लेजर रोकने-की प्रवृत्ति से हटकर अधिक न्यायसंगत (fair) तथा प्रक्रिया-परक (procedural) दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा।
- जीएसटी-वस्तुकरण (classification) और कर दर संबंधी विवादों में भी … उदाहरण के तौर पर, Girish Pravinbhai Rathod (Jay Ambey) & Anr. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 225 दिन के विलंब से विशेष अनुमति पत्र दायर किये जाने तथा उच्च न्यायालय के निर्णय में “गुणवत्ता-वयस्कता” (merit) की कमी देखी और उसे खारिज कर दिया — इस प्रकार से यह संकेत मिला कि कर प्राधिकरणों को उच्च न्यायालय/सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचने से पहले अपने कर निर्धारण में सावधानी बरतनी होगी।
इन प्रवृत्तियों से यह तस्वीर उभरती है कि GST प्रशासन में “सख्ती” (rigour) के साथ-साथ “न्याय” (fairness) और “प्रक्रिया-अनुपालन” (procedural compliance) की अपेक्षा बढ़ रही है।
भाग 4: शुल्क/रिफंड/आयात-निर्यात एवं सीमाशुल्क (Customs) मामलों में प्रवृत्तियाँ
टैक्स कानून सिर्फ घरेलू आयकर और GST तक सीमित नहीं रहा; इस छमाही में आयात-निर्यात, बैंक गारंटी, बैंकिंग लेन-देनों, तथा कस्टम्स-रिफंड के मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं:
- उदाहरण: Patanjali Foods Ltd. (पूर्व में Ruchi Soya) बनाम Union of India & अन्य, जिसमें 23 वर्ष पुराने कस्टम्स कर्तव्य-रिफंड विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त किया और बैंक गारंटी के माध्यम से हस्तग्रहित कस्टम्स शुल्क को वापस करने का आदेश दिया गया।
- ऐसे निर्णय यह दर्शाते हैं कि लंबित वर्षों से चले आ रहे टैक्स/दावा-मुकदमों को न्यायाधीश लंबित लटका मामला नहीं रहने देना चाहते, विशेषकर जहाँ तथ्य स्पष्ट हों और राजस्व को वास्तविक हानि नहीं हुई हो।
- यह प्रवृत्ति करदाताओं को यह संदेश देती है कि टैक्स प्रशासन और करदाताओं दोनों को लंबित विवादों के समाधान-प्रति अग्रसर होना चाहिए — और न्यायालय भी “सुधारात्मक” (remedial) rather than “सजा-उन्मुख” (punitive) दृष्टिकोण अपनाने लगा है।
भाग 5: अनुपालन (Compliance) व दंड-प्रवर्तन (Penalties)
टैक्स कानूनों में अनुपालन की अनिवार्यता एवं दंड-प्रवर्तन की सक्रियता भी इस छमाही में अधिक स्पष्ट हुई है:
- एक निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने यह पुष्टि की कि यदि व्यवसायी ने जीएसटी-रिटर्न दाखिल नहीं किया या कर राशि का भुगतान नहीं किया, तो दंड लगाना वैध है। (मामला: SRIBA Nirman Company बनाम कमिश्नर (अपील) …)
- साथ ही, टैक्स प्रशासन को व्यवसायियों को “सुनवाई (hearing) का अवसर” देने और प्रक्रिया का अनुपालन करने की जिम्मेदारी दी गयी है — जैसे कि लेजर ब्लॉकिंग से पहले पूर्व-सुनवाई देना। यह दंड-प्रवर्तन में ‘विपक्ष-सुनवाई’ (opportunity to be heard) का एक बुनियादी सिद्धांत सुनिश्चित करता है।
- इस प्रवृत्ति से यह स्पष्ट है कि टैक्स सलाह-कारों एवं करदाताओं को सिर्फ कर-दायित्व से नहीं बल्कि अनुपालन-प्रक्रिया (compliance process) और सुनवाई-विधि (procedural fairness) पर भी बराबर ध्यान देना होगा।
भाग 6: परीक्षा-दृष्टि से मुख्य बिंदु संक्षिप्त
परीक्षा-तैयारी हेतु नीचे कुछ मुख्य बिंदु दिए जा रहे हैं:
- राज्य और केंद्र की कराधिकार-प्रभुता (taxing competence) में ‘aspect theory’ का महत्व बढ़ा है। उदाहरण: केरल-केबल टीवी लग्ज़री टैक्स मामला।
- धारा 80-IA(9) की व्याख्या : कटौतियों की गणना में स्वतंत्रता, लेकिन कुल लाभ से अधिक कटौती नहीं।
- जीएसटी-रिटर्न सुधार (rectification) में समय-सीमा के बाद भी अवसर मिल सकता है यदि राजस्व को हानि नहीं हुई हो।
- जीएसटी-लेजर ब्लॉकिंग/अनब्लॉकिंग में प्रक्रिया-अनुपालन व पूर्व-सुनवाई की अनिवार्यता।
- लंबित कस्टम्स/टैक्स विवादों में न्यायाधिकरणों द्वारा त्वरित और नीतिगत हस्तक्षेप।
- अनुपालन-दायित्वों (return filing, payment) में लचीलापन कम हुआ है — दंड-प्रवर्तन सक्रिय हुआ है।
- टैक्स-सलाह-कारों एवं करदाताओं के लिए रणनीति: कर नियोजन (tax planning) के साथ-साथ अनुपालन-रणनीति (compliance strategy) और विवाद-रोधी (litigation-avoidance) दृष्टिकोण आवश्यक है।
- प्रत्येक निर्णय में तथ्य-परिस्थिति (facts of case) महत्व रखती है — ‘समान’ स्थिति में भी परिणाम भिन्न हो सकते हैं यदि प्रक्रिया-विधि भिन्न हो।
- न्यायालय द्वारा करदाताओं को अनुपालन-मुहैया कराने हेतु दिशा-निर्देश (directions) जारी किए जा रहे हैं — इसलिए टैक्स प्रशासन तथा करदाताओं को उन निर्देशों से परिचित रहना आवश्यक है।
- परीक्षा-दृष्टि से महत्वपूर्ण: साक्ष्य के रूप में व्यवहार, निर्णयों में प्रयुक्त शब्दावली (judgment language) तथा लिंक-प्रोविजन (प्रावधान + निर्णय) की समझ।
निष्कर्ष
इस प्रकार, 2025 की पहली छमाही टैक्स-कानून के क्षेत्र में न्यायिक गतिविधियों की दृष्टि से बेहद प्रासंगिक रही है। सुप्रीम कोर्ट ने जहाँ एक ओर कटौती-प्रावधानों और जीएसटी-अनुपालन प्रक्रिया पर स्पष्ट दिशानिर्देश दिए, वहीं राज्य-केंद्र विभाजन, निर्वहन (refunds) व दंड-प्रवर्तन में भी आधुनिक प्रवृत्तियों को दर्शाया। करदाताओं, टैक्स सलाह-कारों तथा विधि-विद्वानों के लिए यह समय सिर्फ कर नियोजन का नहीं, बल्कि नियम-अनुपालन, प्रक्रिया-अधिकार और विवाद-निवारण रणनीति स्थापित करने का है।
आगे की छमाही में आने वाले मामलों का विश्लेषण करना भी महत्वपूर्ण होगा — किन्हीं निर्णयों का प्रभाव आगामी वित्तीय वर्ष तथा बजट-प्रावधानों पर पड़ सकता है। परीक्षा-तैयारी हेतु, इस प्रकार के डायजेस्ट्स को नियमित रूप से अध्ययन करना लाभदायक होगा क्योंकि इनमें नवीनतम प्रवृत्तियाँ और प्रसंग-अनुसार व्याख्या मिलती है।