“सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: बिना कानूनी प्रक्रिया के घर तोड़ना असंवैधानिक, सरकार न न्यायाधीश बन सकती है, न जल्लाद”

“सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: बिना कानूनी प्रक्रिया के घर तोड़ना असंवैधानिक, सरकार न न्यायाधीश बन सकती है, न जल्लाद”


नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट
देश की सर्वोच्च अदालत ने एक ऐतिहासिक टिप्पणी में स्पष्ट किया है कि बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए किसी भी व्यक्ति के घर को तोड़ना संविधान और कानून दोनों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी.आर. गवई ने दो टूक शब्दों में कहा:

“सरकार न तो जज बन सकती है, न जूरी, और न ही एक्जीक्यूशनर (क्रियान्वयनकर्ता)।”

यह टिप्पणी हाल ही में देश के विभिन्न राज्यों में बिना पूर्व सूचना, सुनवाई या प्रक्रिया के बुलडोजर कार्रवाई में नागरिकों के घरों को गिराने के मामलों के संदर्भ में दी गई।


⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:

हाल के वर्षों में कई राज्यों में कानून व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर बिना नोटिस दिए घरों को गिराने की घटनाएं सामने आई हैं। इन कार्रवाइयों के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं, जिनमें यह तर्क दिया गया था कि:

  • प्रभावित व्यक्तियों को न तो सुनवाई का अवसर दिया गया,
  • न ही कानूनी नोटिस,
  • और अभियोजन का कोई औपचारिक आदेश भी नहीं था

🏛️ सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां:

मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा:

“एक आम आदमी के लिए घर सिर्फ ईंट-पत्थर की संपत्ति नहीं होता, बल्कि यह उसके पूरे परिवार की उम्मीदों, सुरक्षा और भविष्य का सपना होता है।”

“सरकार यदि स्वयं न्यायाधीश, अभियोजक और कार्यान्वयनकर्ता बन जाए, तो यह कानून के शासन (Rule of Law) का खुला उल्लंघन है।”

अदालत ने यह भी दोहराया कि:

  • “प्रत्येक नागरिक को उचित प्रक्रिया का अधिकार है” (Article 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार)।
  • “न्याय की प्रक्रिया को दरकिनार करना लोकतंत्र पर आघात है।”

🔍 मुख्य बिंदु संक्षेप में:

  • बिना कानूनी प्रक्रिया के घर गिराना असंवैधानिक
  • सरकार एकतरफा कार्रवाई नहीं कर सकती — उसे न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना होगा।
  • CJI गवई ने घर को ‘परिवार की उम्मीदों का प्रतीक’ बताया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने की बात कहते हुए राज्य सरकारों को चेतावनी दी।

📌 न्यायिक महत्व और संदेश:

यह फैसला “Rule of Law” और “Due Process of Law” के सिद्धांतों की पुनः पुष्टि करता है। साथ ही यह सरकारों को मनमानी और प्रतिशोधात्मक कार्रवाइयों से रोकता है, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।