सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: नीट-पीजी में सीट ब्लॉकिंग पर चिंता, सभी निजी और डीम्ड यूनिवर्सिटीज को काउंसलिंग से पूर्व फीस का खुलासा करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने नीट पीजी (NEET-PG) काउंसलिंग प्रक्रिया में व्यापक स्तर पर पाई जाने वाली सीट ब्लॉकिंग की प्रवृत्ति पर कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने इसे न केवल पारदर्शिता की कमी का प्रतीक बताया, बल्कि इसे व्यवस्था की कमजोरियों और असमानता को बढ़ावा देने वाला कृत्य करार दिया।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने 29 अप्रैल 2025 को दिए गए अपने आदेश में कहा:
“सीट को रोकना सिर्फ एक गलत प्रथा नहीं है, बल्कि यह नीति प्रवर्तन में ढिलाई, पारदर्शिता की कमी और समन्वयहीन प्रणाली की ओर इशारा करता है।”
क्या है सीट ब्लॉकिंग?
सीट ब्लॉकिंग वह प्रक्रिया है जिसमें उम्मीदवार प्रवेश के इरादे से किसी सीट को आरक्षित करा लेते हैं, परंतु अंतिम रूप से उसमें प्रवेश नहीं लेते। इसका परिणाम यह होता है कि अन्य पात्र अभ्यर्थियों को उस सीट के उपलब्ध होने की सटीक जानकारी नहीं मिलती, जिससे चयन की प्रक्रिया संयोग आधारित हो जाती है, न कि योग्यता आधारित।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इस अव्यवस्था को रोकने के लिए निम्नलिखित स्पष्ट निर्देश दिए:
- सभी निजी और मानद (Deemed) विश्वविद्यालयों को अब अनिवार्य रूप से काउंसलिंग शुरू होने से पहले अपनी समस्त फीस संरचना का खुलासा करना होगा।
- इसमें ट्यूशन फीस, हॉस्टल शुल्क, कॉशन डिपॉजिट और अन्य विविध शुल्क शामिल हैं।
- नीति स्तर पर सुधारों के साथ-साथ संरचनात्मक समन्वय और तकनीकी आधुनिकीकरण की आवश्यकता बताई गई है।
- राज्य और केंद्र सरकारों को मजबूत नियामक व्यवस्था स्थापित करने की सलाह दी गई है ताकि सभी संस्थान एकरूपता और पारदर्शिता बनाए रखें।
पीठ की टिप्पणी
पीठ ने कहा:
“सीट की ब्लॉकिंग की यह कुप्रथा वास्तविक सीटों की उपलब्धता को विकृत कर देती है और योग्य छात्रों को नुकसान पहुंचाती है। इससे चिकित्सा शिक्षा की प्रक्रिया अनिश्चित और असमान हो जाती है।”
साथ ही यह भी स्वीकार किया गया कि यद्यपि नियामक निकायों (जैसे – NMC और MCC) ने तकनीकी उपाय लागू किए हैं, फिर भी यह समस्या नीति, क्रियान्वयन और पारदर्शिता के त्रिकोण में अटकी हुई है।
इस निर्णय का व्यापक प्रभाव
यह निर्णय मेडिकल शिक्षा प्रणाली को सुसंगठित और न्यायसंगत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे अभ्यर्थियों को:
- पारदर्शी और स्पष्ट जानकारी मिलेगी
- अनावश्यक भ्रम और भेदभाव से राहत मिलेगी
- प्रक्रिया में योग्यता को प्राथमिकता दी जा सकेगी
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सिर्फ प्रशासनिक दिशा नहीं है, बल्कि यह देश की चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था के लिए एक सिद्धांतात्मक मार्गदर्शन भी है। यह निर्णय न केवल नीति-निर्माताओं के लिए चेतावनी है, बल्कि यह सभी शैक्षणिक संस्थानों को जवाबदेह बनाने की दिशा में एक साहसिक कदम भी है।