सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: दीर्घकालिक सेवा देने वाले अनुबंधित कर्मचारियों की सेवा समाप्ति पर डाली लगाम — प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की रक्षा में ऐतिहासिक निर्णय

शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: दीर्घकालिक सेवा देने वाले अनुबंधित कर्मचारियों की सेवा समाप्ति पर डाली लगाम — प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की रक्षा में ऐतिहासिक निर्णय

परिचय:

भारत में श्रम अधिकारों और कर्मचारियों की सुरक्षा को संविधान के मौलिक सिद्धांतों के अंतर्गत अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। विशेष रूप से जब कोई कर्मचारी वर्षों तक निष्ठा के साथ कार्य करता है, भले ही उसकी नियुक्ति प्रारंभ में अनुबंध या अंशकालिक आधार पर हुई हो, तब भी उसके साथ न्यायपूर्ण और सम्मानजनक व्यवहार अपेक्षित होता है। इस सिद्धांत को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में दृढ़ता से रेखांकित किया।

मामले की पृष्ठभूमि:

मूल मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में आया था, जिसमें कुछ दीर्घकालिक कर्मचारियों की सेवाओं को अचानक समाप्त कर दिया गया था, यह कहते हुए कि वे अनुबंध पर नियुक्त थे और किसी भी समय हटाए जा सकते थे। इस तर्क को स्वीकार करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने AIROnline 2023 Del 1694 में सेवा समाप्ति को वैध ठहराया और कर्मचारियों की याचिका खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट की अपील में स्थिति पलटी:

इस आदेश के विरुद्ध कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट पहुँचे, जहाँ AIR 2025 SUPREME COURT 296 में उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय को न केवल अस्वीकार किया, बल्कि कड़ी आलोचना करते हुए पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि:

“किसी भी कर्मचारी, भले ही उसकी नियुक्ति प्रारंभ में अनुबंध पर हुई हो, यदि उसने वर्षों तक लगातार सेवा दी है, तो उसे उचित कारण बताए बिना और सेवा अभिलेख (Service Record) पर विचार किए बिना हटाया जाना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।”

प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की पुनः पुष्टि:

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में प्राकृतिक न्याय के दो मूलभूत सिद्धांतों को रेखांकित किया:

  1. Audi Alteram Partem (दूसरे पक्ष को सुनना): सेवा समाप्ति से पहले कर्मचारी को अपनी बात कहने का अवसर दिया जाना चाहिए।
  2. निष्पक्षता और पूर्व सूचना: बिना स्पष्ट कारण और पूर्व सूचना के अचानक सेवा समाप्त करना मनमाना (arbitrary) है और असंवैधानिक भी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्देश:

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह निर्देश दिया कि:

  • ऐसे कर्मचारियों की सेवा समाप्त करने से पहले उन्हें नोटिस, कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) तथा व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया जाए।
  • दीर्घकालिक सेवा एक महत्वपूर्ण कारक है, जो स्थायित्व (Regularisation) की मांग का आधार बन सकता है।
  • मनमानी कार्रवाई कर्मचारी के आत्म-सम्मान और जीविकोपार्जन के अधिकार का उल्लंघन है, जो अनुच्छेद 14 और 21 के तहत संरक्षित हैं।

न्यायिक महत्व:

यह निर्णय न केवल प्रभावित कर्मचारियों के लिए राहत लाया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि न्यायालय केवल नियुक्ति के तकनीकी स्वरूप को देखकर निर्णय नहीं करेगा, बल्कि सेवा की वास्तविक प्रकृति, अवधि और निष्ठा को ध्यान में रखेगा।

निष्कर्ष:

AIR 2025 SUPREME COURT 296 के तहत दिया गया यह निर्णय न्यायपालिका की सामाजिक और संवेदनशील भूमिका को दर्शाता है। यह उन लाखों अनुबंध और अंशकालिक कर्मचारियों के लिए आशा की किरण है, जिनकी सेवाएँ वर्षों की मेहनत के बाद भी असुरक्षित बनी रहती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा और प्राकृतिक न्याय का पालन भारत के विधिक तंत्र की मूल आत्मा है।