शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या: क्या मृत पक्षकार के स्थानापन्न न होने पर अपील का अवसान جزवी (Partial) होता है या पूर्ण (Whole)?
लंबा लेख:
नई दिल्ली, जुलाई 2024:
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि अपील के दौरान किसी पक्षकार (party) की मृत्यु हो जाती है और उसके उत्तराधिकारियों को समय पर प्रतिस्थापित (substitute) नहीं किया जाता, तो ऐसी स्थिति में अपील का अवसान (abatement) पूर्ण (whole) होगा या आंशिक (partial) — यह मामले की प्रकृति, अपील की संरचना और अधिकारों की विभाज्यता (divisibility of rights) पर निर्भर करता है।
यह फैसला भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत दायर एक विशेष अनुमति याचिका में आया, जहां एक पक्षकार की मृत्यु के बाद उसे प्रतिस्थापित नहीं किया गया था और याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अपील का केवल आंशिक अवसान हुआ है, न कि पूर्ण।
⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:
मूल वाद एक संपत्ति विवाद से जुड़ा था, जिसमें कई पक्षकार थे। अपील विचाराधीन थी जब उनमें से एक अपीलकर्ता की मृत्यु हो गई। निर्धारित समयावधि के भीतर मृतक के कानूनी प्रतिनिधियों को प्रतिस्थापित नहीं किया गया। इसके बाद प्रतिवादी पक्ष ने तर्क दिया कि इस कारण पूरी अपील का अवसान हो गया है, जबकि अपीलकर्ता पक्ष ने कहा कि अवसान केवल उस पक्ष तक सीमित है, और अन्य अपीलकर्ता जिनके अधिकार स्वतंत्र हैं, उनकी अपील जारी रहनी चाहिए।
📜 सुप्रीम कोर्ट का विचार:
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस मामले में गहराई से विचार करते हुए कहा कि:
“Whether the abatement is partial or total depends on the nature of the relief claimed, the rights involved, and whether they are severable or joint. If the rights are joint and indivisible, abatement of one party may lead to abatement of the entire appeal.”
🔍 मुख्य तत्वों की न्यायिक व्याख्या:
- संयुक्त (Joint) और अविभाज्य (Indivisible) अधिकारों की स्थिति में:
यदि अपीलकर्ता एक साझा अधिकार के तहत कार्य कर रहे हैं — जैसे कि साझा उत्तराधिकार, संयुक्त स्वामित्व, पारिवारिक संपत्ति विवाद — तो किसी एक पक्षकार की मृत्यु और प्रतिस्थापन न होने पर पूरी अपील का अवसान माना जाएगा। ऐसा इसलिए कि निर्णय किसी एक के अनुपस्थित रहने पर शेष पक्षकारों को प्रभावित करेगा। - स्वतंत्र और पृथक (Severable) अधिकारों की स्थिति में:
यदि प्रत्येक पक्षकार के अधिकार स्वतंत्र और पृथक हैं — उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत अनुबंध या मुआवजे के अलग-अलग दावे — तो मृत पक्षकार की अपील का ही अवसान होगा। अन्य अपीलकर्ता की अपील जारी रह सकती है। - CPC की प्रासंगिक धाराएं:
आदेश 22 रूल 3 और रूल 9, CPC (दीवानी प्रक्रिया संहिता) के अंतर्गत मृतक पक्षकार के कानूनी प्रतिनिधियों को प्रतिस्थापित करने का समयबद्ध प्रावधान है। ऐसा न होने पर “abatement” होता है, परंतु यह “automatic and total” नहीं माना जाएगा जब तक कि अधिकारों की प्रकृति को विश्लेषित न किया जाए।
📌 न्यायालय ने क्या आदेश दिया?
इस मामले में, चूंकि अपील एक संयुक्त संपत्ति से संबंधित थी और अधिकार आपसी रूप से जुड़े हुए थे, सुप्रीम कोर्ट ने यह घोषित किया कि:
“In the absence of substitution of legal heirs of a deceased party who had joint and inseverable interest, the entire appeal abates.”
इस निर्णय के माध्यम से, न्यायालय ने इस भ्रम को भी दूर किया कि किसी एक अपीलकर्ता के प्रतिस्थापन न होने से केवल उसकी अपील प्रभावित होती है।
🧠 इस निर्णय का प्रभाव और महत्त्व:
- विधिक उत्तराधिकार के मामलों में यह निर्णय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- वकीलों और पक्षकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी मृत पक्षकार के प्रतिनिधियों को समय पर प्रतिस्थापित किया जाए, विशेषकर यदि अधिकार संयुक्त या अविभाज्य हों।
- अपील की रणनीति बनाते समय यह विचार करना अनिवार्य होगा कि क्या सभी अपीलकर्ता के अधिकार स्वतंत्र हैं या सम्बद्ध।
🧾 निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अपील के दौरान किसी पक्ष की मृत्यु होने और प्रतिस्थापन न होने पर अपील का अवसान स्वतः पूर्ण (whole) नहीं होता, जब तक यह न सिद्ध हो कि अधिकार संयुक्त और अविभाज्य हैं। यदि ऐसा है, तो पूरी अपील अस्थायी रूप से समाप्त मानी जाएगी, जब तक कि विधिवत पुनर्स्थापन न किया जाए।
यह निर्णय भारत के न्यायिक तंत्र में सिविल अपीलों की प्रक्रिया को सुगठित और न्यायसंगत बनाने की दिशा में एक दिशा-निर्देशात्मक और व्यावहारिक निर्णय है।