🏛️ सुप्रीम कोर्ट की ताज़ा गाइडलाइन: महिला संपत्ति और उत्तराधिकार अधिकार
भूमिका
भारतीय समाज में लंबे समय तक महिलाओं को संपत्ति के अधिकारों से वंचित रखा गया था। पिता की संपत्ति पर पुत्री का अधिकार न के बराबर माना जाता था, और विवाह के बाद महिला को “पराया धन” समझ लिया जाता था। किंतु भारतीय न्यायपालिका, विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट, ने पिछले कुछ दशकों में ऐसे ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं जिन्होंने न केवल महिलाओं के संपत्ति और उत्तराधिकार अधिकारों को मजबूत किया है, बल्कि लैंगिक समानता की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण गाइडलाइन जारी की है, जिसमें कहा गया है कि “पुत्री को भी उसी प्रकार से संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त होंगे जैसे पुत्र को”, चाहे उसका जन्म Hindu Succession (Amendment) Act, 2005 से पहले हुआ हो या बाद में। यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था में लैंगिक न्याय (Gender Justice) का एक नया अध्याय खोलता है।
1. महिला संपत्ति अधिकार का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
प्राचीन भारतीय कानूनों में, विशेष रूप से मनुस्मृति और धर्मशास्त्रों में, महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से वंचित किया गया था। विवाह के बाद महिला अपने पति के घर की सदस्य बन जाती थी और उसे केवल “स्ट्रिधन” (Streedhan) तक सीमित अधिकार प्राप्त था।
स्ट्रिधन का अर्थ वह संपत्ति है जो महिला को विवाह, उपहार या विरासत के रूप में प्राप्त होती है — लेकिन उस पर भी परिवार का नियंत्रण प्रायः पुरुषों के पास रहता था।
1956 में जब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act, 1956) पारित हुआ, तब भी पुत्र और पुत्री के बीच समान अधिकार नहीं थे। केवल पुत्र ही “कॉपार्सनर” (Coparcener) माना जाता था, यानी उसे संयुक्त पारिवारिक संपत्ति में जन्म से अधिकार प्राप्त होता था। पुत्री को यह अधिकार नहीं था।
2. 2005 का ऐतिहासिक संशोधन: समानता की दिशा में क्रांति
Hindu Succession (Amendment) Act, 2005 ने इस असमानता को समाप्त कर दिया।
इस संशोधन के बाद पुत्री को भी संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति में जन्म से ही समान अधिकार प्राप्त हो गया। अब पुत्री भी उसी प्रकार कॉपार्सनर (Coparcener) मानी जाएगी जैसे पुत्र।
इस संशोधन के प्रमुख प्रावधान:
- पुत्री को संपत्ति में जन्मसिद्ध अधिकार मिलेगा।
- विवाह के बाद भी उसका यह अधिकार समाप्त नहीं होगा।
- वह संपत्ति का दावा, विभाजन, और प्रबंधन कर सकती है।
- पुत्री को अपने पिता की संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता।
3. विवाद और अस्पष्टता: जन्म तिथि का प्रश्न
संशोधन के बाद एक बड़ी कानूनी दुविधा यह थी कि क्या यह अधिकार उन पुत्रियों को भी मिलेगा जिनका जन्म 2005 से पहले हुआ था?
कई हाईकोर्ट और निचली अदालतों ने अलग-अलग निर्णय दिए।
उदाहरण के लिए:
- कुछ अदालतों ने कहा कि केवल 2005 के बाद जन्मी पुत्रियों को ही यह अधिकार मिलेगा।
- वहीं कुछ ने कहा कि यह अधिकार सभी पुत्रियों को समान रूप से लागू होता है, चाहे जन्म किसी भी वर्ष में हुआ हो।
4. सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय (Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma, 2020)
इस विवाद को सुलझाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020) मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
🧾 मुख्य निष्कर्ष:
- पुत्री का अधिकार जन्म से होता है, न कि अधिनियम के लागू होने की तिथि से।
- 2005 से पहले जन्मी पुत्री भी संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी की हकदार है।
- पिता जीवित हो या न हो — यह अधिकार प्रभावित नहीं होगा।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा —
“पुत्री को अपने पिता की संपत्ति में समान अधिकार है; यह अधिकार जन्म से प्राप्त होता है और यह अधिनियम के लागू होने पर निर्भर नहीं करता।”
5. सुप्रीम कोर्ट की नवीनतम गाइडलाइन (2023-24): संपत्ति और उत्तराधिकार अधिकारों पर स्पष्टता
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 2023-24 में कुछ नई गाइडलाइन जारी की हैं, जिनमें महिला संपत्ति अधिकारों को और अधिक सुरक्षित और व्यवहारिक बनाने पर बल दिया गया है।
🔹 (i) महिला के नाम पर खरीदी गई संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व
यदि किसी संपत्ति की खरीद में महिला का नाम शामिल है, तो भले ही धन पति या परिवार के किसी सदस्य ने दिया हो —
➡️ संपत्ति का वैधानिक स्वामित्व महिला के पास ही रहेगा।
🔹 (ii) दहेज और उपहार में मिली संपत्ति “स्ट्रिधन” मानी जाएगी
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विवाह के समय या बाद में जो भी उपहार, आभूषण, या संपत्ति महिला को दी जाती है, वह स्ट्रिधन कहलाएगी, और उस पर महिला का पूर्ण स्वामित्व अधिकार होगा।
🔹 (iii) पति या ससुराल पक्ष को स्ट्रिधन पर कोई अधिकार नहीं
किसी भी परिस्थिति में पति या ससुराल पक्ष महिला से स्ट्रिधन की मांग या कब्जा नहीं कर सकता। यदि ऐसा होता है, तो यह दंडनीय अपराध (Section 406 IPC) के अंतर्गत आएगा।
🔹 (iv) तलाक के बाद भी महिला का संपत्ति पर अधिकार सुरक्षित
तलाक के बाद भी महिला अपने हिस्से की संपत्ति या भरण-पोषण (maintenance) की हकदार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा —
“तलाक का अर्थ यह नहीं कि महिला अपने वैधानिक संपत्ति अधिकार से वंचित हो जाए।”
🔹 (v) अविवाहित पुत्री का अधिकार
अविवाहित पुत्री को भी पिता की संपत्ति में पुत्र के समान हिस्सा मिलेगा, चाहे पिता की मृत्यु हो चुकी हो या नहीं।
6. कुछ महत्वपूर्ण केस लॉ (Case Laws)
(1) Vineeta Sharma v. Rakesh Sharma (2020)
📌 न्यायालय ने कहा – पुत्री का अधिकार जन्म से होता है।
(2) Danamma v. Amar (2018)
📌 भले ही पिता की मृत्यु 2005 से पहले हुई हो, पुत्री को समान अधिकार मिलेगा।
(3) Prakash v. Phulavati (2016)
📌 यहाँ अदालत ने कहा था कि पिता जीवित होना आवश्यक है — बाद में यह दृष्टिकोण Vineeta Sharma केस में बदला गया।
(4) Kirpal Kaur v. Union of India (2022)
📌 महिला को पति की संपत्ति में भी समान हिस्सा मिलेगा यदि वह कानूनी उत्तराधिकारी है।
7. मुस्लिम और अन्य कानूनों में महिला उत्तराधिकार
हिंदू कानून के समान ही अन्य धर्मों में भी महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकार अलग-अलग हैं।
(i) मुस्लिम कानून
- महिला को “फरायज” (Quranic shares) के अनुसार संपत्ति में हिस्सा मिलता है।
- पुत्री को पुत्र के हिस्से का आधा हिस्सा मिलता है।
- विधवा को अपने पति की संपत्ति में 1/8 हिस्सा मिलता है यदि बच्चे हों।
(ii) क्रिश्चियन और पारसी कानून
- महिला को समान रूप से संपत्ति में हिस्सा दिया गया है।
- क्रिश्चियन उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत पुत्री और पुत्र समान उत्तराधिकारी हैं।
8. न्यायालयों द्वारा महिला संपत्ति विवादों में अपनाया गया दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया निर्णयों में यह भी कहा है कि अदालतें जब संपत्ति विवादों में महिला का अधिकार तय करेंगी, तो वे निम्न बिंदुओं पर विचार करें —
- कानूनी वैधता: संपत्ति का स्वामित्व किसके नाम पर है।
- स्रोत: संपत्ति की खरीद का धन किसने दिया।
- इरादा (Intention): क्या महिला को जानबूझकर वंचित किया गया था।
- समानता (Equality): पुत्र और पुत्री के अधिकारों का समान मूल्यांकन।
9. सामाजिक और संवैधानिक परिप्रेक्ष्य
महिलाओं को संपत्ति और उत्तराधिकार अधिकार देना केवल कानूनी सुधार नहीं है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध संरक्षण) की भावना को सशक्त करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा —
“संपत्ति में समान अधिकार न देना, महिलाओं के साथ संवैधानिक समानता का उल्लंघन है।”
यह निर्णय सामाजिक न्याय की दिशा में भी बड़ा कदम है, क्योंकि संपत्ति अधिकार आर्थिक स्वतंत्रता का प्रतीक है।
10. निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट की हालिया गाइडलाइन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महिला चाहे विवाहित हो या अविवाहित, पुत्री हो या विधवा —
उसका संपत्ति और उत्तराधिकार अधिकार पूर्ण, स्वतंत्र और समान है।
अब भारतीय समाज और न्याय प्रणाली दोनों इस दिशा में बढ़ रहे हैं कि “महिला अब केवल परिवार की सदस्य नहीं, बल्कि संपत्ति की समान स्वामी भी है।”
यह निर्णय न केवल कानून के क्षेत्र में, बल्कि समाज के मानसिक ढाँचे में भी एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाता है।
आज की महिला अपने अधिकारों को जानती है, और न्यायपालिका ने उसे उसके संवैधानिक हक — “संपत्ति में समान भागीदारी” — दिलाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
📘 निष्कर्षात्मक विचार
“संपत्ति पर समान अधिकार, महिलाओं की स्वतंत्रता और सम्मान का आधार है।”
— सुप्रीम कोर्ट, 2024 गाइडलाइन