सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: AIBE पास कर लेने मात्र से अधिवक्ता को स्वतः वकालतनामा दाखिल करने का अधिकार नहीं – BCI की भूमिका और पेशेवर मानकों पर पुनर्विचार की आवश्यकता
परिचय:
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने एक महत्त्वपूर्ण सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की कि All India Bar Examination (AIBE) पास कर लेने मात्र से कोई अधिवक्ता (Advocate) स्वतः यह दावा नहीं कर सकता कि वह मुकदमे में वकालतनामा (Vakalatnama) दाखिल करने या अदालत में पक्षकार की ओर से पेश होने का पूर्ण अधिकार रखता है। इस अवलोकन के माध्यम से न्यायालय ने Bar Council of India (BCI) की अधिवक्ताओं की योग्यता निर्धारण प्रक्रिया, पेशेवर आचरण और न्यायिक प्रणाली में भूमिका पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं।
मामले की पृष्ठभूमि:
सुनवाई के दौरान एक पक्षकार की ओर से ऐसा वकील प्रस्तुत हुआ जिसने AIBE उत्तीर्ण किया था, किंतु न्यायालय ने पाया कि उस अधिवक्ता की वकालतनामा दाखिल करने की प्रक्रिया विधिवत नहीं थी। इस संदर्भ में न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल AIBE पास करना यह सिद्ध नहीं करता कि अधिवक्ता पेशेवर रूप से मुकदमे में योग्य ढंग से पक्ष की प्रतिनिधि कर सकता है। इसने न्यायालय को BCI की जिम्मेदारी और अधिवक्ता अधिनियम की व्याख्या पर विचार करने को प्रेरित किया।
AIBE की प्रकृति और उद्देश्य:
- AIBE (All India Bar Examination) को Bar Council of India द्वारा आयोजित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कानून की डिग्री प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों में न्यूनतम विधिक ज्ञान और पेशेवर क्षमता हो।
- AIBE पास करने पर अधिवक्ता को भारत के किसी भी न्यायालय में प्रैक्टिस करने का Certificate of Practice प्रदान किया जाता है।
- यह परीक्षा वस्तुतः एक प्रवेश परीक्षा (qualifying test) है, न कि पेशेवर दक्षता की अंतिम पुष्टि।
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- AIBE केवल एक प्रारंभिक योग्यता परीक्षा है – यह अधिवक्ता की व्यावसायिक दक्षता, अनुभव और पेशेवर आचरण का पूर्ण प्रमाण नहीं है।
- वकालतनामा दाखिल करने और मुकदमे में पेश होने के लिए न केवल AIBE पास होना आवश्यक है, बल्कि प्रॉपर ऑथरिटी, वैध दस्तावेज और बार में नियमित पंजीकरण भी आवश्यक हैं।
- न्यायालय ने BCI से अपेक्षा की कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी अधिवक्ता जो अदालत में प्रैक्टिस कर रहे हैं, उनके पास वैध अभ्यास प्रमाणपत्र (Valid Certificate of Practice) हो और वे नैतिक व पेशेवर मानकों का पालन करें।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिवक्ताओं के अनुशासन, प्रशिक्षण और व्यवहार को लेकर BCI को अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
BCI की भूमिका पर पुनरावलोकन:
इस टिप्पणी ने Bar Council of India की उन जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला है जिनमें सुधार की आवश्यकता है:
- अधिवक्ताओं का निरंतर प्रशिक्षण (Continuous Legal Education)
- प्रमाणपत्रों की नवीनता की पुष्टि (Renewal & Verification)
- AIBE के पाठ्यक्रम को और अधिक व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता
- अनुशासनहीनता पर सख्त कार्यवाही और निगरानी
- अदालतों और बार काउंसिलों के बीच बेहतर समन्वय
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह अवलोकन एक सतर्क चेतावनी है कि अधिवक्ता पेशे में सिर्फ प्रवेश परीक्षा पास करना ही पर्याप्त नहीं है। वकालतनामा दाखिल करना और अदालत में पक्ष की पेशी के लिए व्यावसायिक जिम्मेदारी, नैतिक आचरण और वैध प्रक्रियाओं का पालन अत्यावश्यक है। यह मामला न केवल अधिवक्ताओं की जवाबदेही को रेखांकित करता है, बल्कि BCI की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और सुधार की आवश्यकता को भी उजागर करता है।