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सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी : यूपी बार काउंसिल द्वारा ‘मौखिक इंटरव्यू’ और प्रति उम्मीदवार ₹2500 शुल्क वसूलने पर गहरा आक्रोश

सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी : यूपी बार काउंसिल द्वारा ‘मौखिक इंटरव्यू’ और प्रति उम्मीदवार ₹2500 शुल्क वसूलने पर गहरा आक्रोश

        भारत के विधिक पेशे की पवित्रता, स्वतंत्रता और पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य है। लेकिन जब वही संस्था, जो वकीलों के पंजीकरण और आचार-संहिता के संरक्षण की जिम्मेदार है, अपने अधिकारों का दुरुपयोग करती दिखाई देती है, तो न्यायपालिका की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल द्वारा अधिवक्ताओं के नामांकन (Enrollment) में ‘मौखिक साक्षात्कार’ लेने और प्रत्येक उम्मीदवार से ₹2500 इंटरव्यू फीस लेने की प्रथा पर गंभीर नाराज़गी और आश्चर्य व्यक्त किया। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह व्यवस्था न केवल अवैध है बल्कि अत्यंत आपत्तिजनक और अस्वीकार्य भी है।

        इस लेख में हम सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, यूपी बार काउंसिल की प्रथा, एडवोकेट्स एक्ट के प्रावधान, न्यायपालिका की चिंताओं, और भविष्य में इस निर्णय के संभावित प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।


पृष्ठभूमि : नामांकन प्रक्रिया और विवाद का जन्म

      अधिवक्ताओं का नामांकन भारत में राज्य बार काउंसिलों द्वारा एडवोकेट्स एक्ट, 1961 तथा संबंधित नियमों के अनुसार किया जाता है। नामांकन प्रक्रिया सामान्यतः दस्तावेज़ सत्यापन, आवश्यक फीस, योग्यता की जांच और पंजीकरण संख्या जारी करने से जुड़ी होती है।

        लेकिन उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने एक नया नियम लागू किया, जिसके तहत उम्मीदवारों को वकील बनने की योग्यता प्राप्त करने के लिए ‘मौखिक साक्षात्कार’ देना अनिवार्य कर दिया गया।

        इसके साथ ही, प्रत्येक उम्मीदवार से ₹2500 शुल्क वसूला जाने लगा—जो किसी भी वैधानिक प्रावधान में शामिल नहीं है।

        कुछ उम्मीदवारों और अधिवक्ता संगठनों ने इसे पूर्णतः मनमाना, अवैध और शोषणकारी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद यह मुद्दा राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया।


सुप्रीम कोर्ट की कड़ी प्रतिक्रिया : “यह बिल्कुल अस्वीकार्य”

        सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशीय पीठ ने यूपी बार काउंसिल की इस प्रथा पर गहरी नाराज़गी व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि—

  • वकीलों के नामांकन के लिए मौखिक साक्षात्कार लेना पूरी तरह अवैधानिक है।
  • एडवोकेट्स एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो इस प्रकार के इंटरव्यू की अनुमति देता हो।
  • उम्मीदवारों से ₹2500 इंटरव्यू फीस वसूलना शोषण है।
  • पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का घोर अभाव है।

       सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य बार काउंसिलें अपने अधिकारों का विस्तार स्वयं नहीं कर सकतीं और न ही अपने निर्णयों से उम्मीदवारों पर अनुचित आर्थिक बोझ डाल सकती हैं।

एक जज ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:
“क्या यह वकालत का लाइसेंस है या नौकरी का इंटरव्यू?”


कानूनी ढांचा : क्या कहता है एडवोकेट्स एक्ट?

एडवोकेट्स एक्ट, 1961 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) नियम स्पष्ट करते हैं कि—

  • नामांकन प्रक्रिया केवल दस्तावेज़ों की जांच और आवश्यक शर्तों की पुष्टि पर आधारित हो सकती है।
  • बार काउंसिल्स किसी अतिरिक्त परीक्षा या इंटरव्यू का प्रावधान नहीं कर सकतीं (AIBE के अलावा)।
  • फीस केवल वही ली जा सकती है जो BCI द्वारा अनुमोदित हो।
  • मौखिक साक्षात्कार जैसी प्रक्रियाएं उम्मीदवारों को अनावश्यक रूप से परेशान करने और भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ाने वाली मानी जाती हैं।

इस प्रकार यूपी बार काउंसिल का मौखिक इंटरव्यू और ₹2500 शुल्क स्पष्ट रूप से कानून के खिलाफ है।


यूपी बार काउंसिल का पक्ष : “यह क्वालिटी कंट्रोल का हिस्सा है”

यूपी बार काउंसिल ने अपना बचाव करते हुए तर्क दिया कि—

  • मौखिक इंटरव्यू का उद्देश्य पेशे की गुणवत्ता को नियंत्रित करना था।
  • उम्मीदवारों की व्यवहारिक समझ, भाषा कौशल और कानूनी मूलभूत ज्ञान का आकलन आवश्यक है।
  • शुल्क प्रशासनिक खर्चों के लिए लगाया गया।

हालांकि कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि गुणवत्ता नियंत्रण का काम बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा होने वाली AIBE परीक्षा करती है, न कि राज्य बार काउंसिलें।


न्यायालय की प्राथमिक चिंताएँ

सुप्रीम कोर्ट ने इंटरव्यू प्रथा को बंद करने के पीछे कई गंभीर चिंताएँ व्यक्त कीं—

1. भ्रष्टाचार की संभावना

इंटरव्यू आधारित पद्धतियाँ भ्रष्टाचार, पक्षपात और अनुचित लाभ की संभावना बढ़ाती हैं।

2. योग्यता का गलत मापदंड

कोर्ट ने कहा कि वकील बनने की योग्यता काग़ज़ी और शैक्षिक मानदंड से तय होती है, न कि मौखिक बातचीत से।

3. वंचित वर्गों पर वित्तीय बोझ

₹2500 की फीस सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर उम्मीदवारों के लिए बड़ा बोझ है।

4. कानून की अवमानना

जब किसी संस्था को कानून द्वारा ऐसा अधिकार नहीं दिया गया है, तो स्वयं नियम बनाकर लागू करना ‘अल्ट्रा वायर्स’ है।


बार काउंसिल्स की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट का व्यापक दृष्टिकोण

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि—

  • राज्य बार काउंसिलें केवल नामांकन, आचार-संहिता और अधिवक्ताओं की कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित हैं।
  • वे ‘प्रवेश परीक्षा’ जैसी नई बाधाएँ नहीं बना सकतीं।
  • वकीलों के पेशे में प्रवेश के लिए आवश्यक योग्यताएँ संसद और BCI तय करते हैं।

कोर्ट ने इस प्रथा को ‘संविधानिक सिद्धांतों’ के भी विरुद्ध बताया।


आदेश : इंटरव्यू तुरंत बंद करें

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया—

  • मौखिक इंटरव्यू प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से बंद की जाए।
  • उम्मीदवारों से वसूले गए ₹2500 शुल्क के उचित उपयोग और वैधता की जांच हो।
  • यदि शुल्क अवैध पाया गया, तो उम्मीदवारों को रिफंड दिया जाए।
  • भविष्य में कोई भी नई प्रक्रिया अपनाने से पहले BCI की स्पष्ट अनुमति आवश्यक होगी।

कोर्ट ने यूपी बार काउंसिल से विस्तृत जवाब भी मांगा है।


इस फैसले का संभावित प्रभाव : पूरे देश पर असर

यह निर्णय सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर भी निम्न प्रभाव होंगे—

1. अन्य राज्यों की बार काउंसिलें भी सतर्क होंगी

कई राज्यों में नामांकन प्रक्रिया में अनियमितताओं की शिकायतें आती रही हैं। अब वे भी अपने नियमों की समीक्षा करेंगे।

2. उम्मीदवारों पर अनावश्यक बोझ खत्म होगा

देशभर के उम्मीदवारों को राहत मिलेगी और नामांकन प्रक्रिया और भी पारदर्शी होगी।

3. बार काउंसिल्स पर न्यायिक निगरानी बढ़ेगी

अब वे मनमाने ढंग से नई फीस या प्रक्रियाएँ लागू नहीं कर पाएँगी।

4. कानूनी पेशे की प्रतिष्ठा और भरोसा मजबूत होगा

जब न्यायपालिका पारदर्शिता सुनिश्चित करती है, तो आम नागरिकों का विश्वास बढ़ता है।


विश्लेषण : क्या यह न्यायपालिका का ‘सिस्टमिक रिफॉर्म’ की ओर कदम है?

     कानूनी विश्लेषकों के अनुसार यह निर्णय न्यायपालिका की उन चिंताओं को दोहराता है जो वर्षों से बार काउंसिलों के कामकाज को लेकर उठती रही हैं।

        बार काउंसिलों को पेशे की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और वकीलों की सुरक्षा एवं कल्याण के लिए बनाया गया था, लेकिन कई बार उन पर—

  • राजनीति,
  • पक्षपात,
  • भ्रष्टाचार,
  • और पारदर्शिता की कमी

जैसी गंभीर आरोप लगते रहे हैं।

      सुप्रीम कोर्ट का यह रुख दर्शाता है कि न्यायपालिका अब वकीलों के पेशे में प्रवेश को एक गंभीर सार्वजनिक महत्व का मुद्दा मान रही है, और किसी भी अवैध प्रथा को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है।


निष्कर्ष : न्यायपालिका का स्पष्ट संदेश

       सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश के कानूनी ढांचे को प्रभावित करने वाला है।

  • वकील बनने की प्रक्रिया अब और अधिक पारदर्शी होगी।
  • उम्मीदवारों से अवैध शुल्क या मनमानी प्रक्रियाएँ लागू नहीं की जा सकेंगी।
  • बार काउंसिल्स को reminded किया गया है कि वे कानून से ऊपर नहीं हैं।

       यह फैसला न्यायपालिका की इस दृढ़ प्रतिबद्धता को परिलक्षित करता है कि—
“विधिक पेशा जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए उच्चतम स्तर की पारदर्शिता और नैतिकता का पालन करे।”