सुप्रीम कोर्ट का मार्गदर्शक निर्णय: “Rathi Vasudeva Rao बनाम PVRM Patnaik” — धारा 138 एन.आई. एक्ट के तहत लोक अदालत के पुरस्कार की देयता नागरिक न्यायालय द्वारा निष्पाद्य
🧾 केस शीर्षक:
Rathi Vasudeva Rao Versus PVRM Patnaik
न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
मूल निर्णय: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय
प्रमुख विधिक प्रावधान:
- धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881
- लोक अदालत अधिनियम, 1987 की धारा 21
- सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908
🧩 निर्णय का सारांश:
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने दोहराया कि लोक अदालत द्वारा धारा 138, एन.आई. एक्ट के अंतर्गत पारित पुरस्कार (Award) को सिविल न्यायालय द्वारा निष्पादित किया जा सकता है।
यह स्पष्ट किया गया कि जब चेक अनादरण के मामलों में लोक अदालत समझौते के आधार पर कोई निर्णय देती है, तो वह निर्णय “डिक्री” (Decree) के समान होता है और उसकी निष्पादन (Execution) नागरिक न्यायालय (Civil Court) द्वारा की जा सकती है।
⚖️ विधिक आधार:
🔹 धारा 138, एन.आई. एक्ट, 1881:
यह धारा चेक अनादरण (Cheque Dishonour) को दंडनीय अपराध बनाती है और इसके अंतर्गत अभियोजन की प्रक्रिया निर्धारित करती है।
🔹 लोक अदालत अधिनियम, 1987 की धारा 21:
यदि कोई विवाद लोक अदालत में सुलझाया जाता है, और उसका पुरस्कार पारित किया जाता है, तो वह “सिविल न्यायालय की डिक्री” के समान माना जाता है, और उसे उसी प्रकार निष्पादित किया जा सकता है जैसे कोई डिक्री।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के दृष्टिकोण को समर्थन दिया और यह कहा कि:
“The award of the Lok Adalat in a Section 138 NI Act case is final, binding, and deemed to be a civil court decree under Section 21 of the Legal Services Authorities Act, 1987. Therefore, it is executable before a civil court.”
📌 निर्णय का महत्व:
✅ यह निर्णय स्पष्ट करता है कि लोक अदालत द्वारा पारित समझौता आधारित निर्णय केवल ‘नैतिक’ नहीं बल्कि विधिक रूप से बाध्यकारी और निष्पाद्य (Legally Enforceable) है।
✅ इससे यह सुनिश्चित होता है कि शिकायतकर्ता को राहत प्राप्त करने के लिए पुनः आपराधिक या दीवानी मुकदमेबाज़ी में नहीं उलझना पड़ता, बल्कि प्रत्यक्ष निष्पादन आवेदन (Execution Petition) दायर कर सकता है।
✅ इससे न्यायिक प्रणाली पर बोझ भी कम होता है क्योंकि लोक अदालतें समयबद्ध निपटारा करती हैं और उनके निर्णय को पूर्ण कानूनी बल प्राप्त होता है।
📚 निष्कर्ष:
इस निर्णय ने यह स्थापित कर दिया कि:
- लोक अदालत का समझौता पुरस्कार = सिविल कोर्ट की डिक्री
- इसे निष्पादित करने के लिए नया मुकदमा दायर करने की आवश्यकता नहीं है।
- Cheque bounce मामले में लोक अदालत का पुरस्कार वैध, बाध्यकारी और निष्पाद्य है।