सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: “Sudesh Kumar बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य” — चेक अनादरण मामले में धारा 142(1)(b) एन.आई. एक्ट के तहत कारण उत्पत्ति की स्पष्ट व्याख्या
🧾 केस शीर्षक:
Sudesh Kumar Versus State of UP and Another
न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
मूल निर्णय: इलाहाबाद हाई कोर्ट
मुख्य विधि प्रावधान:
- धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881)
- धारा 142(1)(b), परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881
🧩 निर्णय का सारांश:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 142(1)(b) के अंतर्गत आपराधिक कार्यवाही का “कारण उत्पत्ति” (Cause of Action) तभी माना जाएगा जब धारा 138(c) के अंतर्गत नोटिस दिए जाने के 15 दिन बीत जाने के बावजूद भुगतान नहीं किया जाता है।
इसका अर्थ यह है कि जब चेक बाउंस हो जाता है और प्राप्तकर्ता (Payee) धारा 138 के अंतर्गत एक विधिक नोटिस जारी करता है, तो आरोपी (Drawer) को भुगतान के लिए 15 दिनों की अवधि दी जाती है। यदि वह 15 दिनों में राशि का भुगतान नहीं करता, तभी ‘कारण उत्पत्ति’ माना जाएगा और उसी तिथि से शिकायत दर्ज करने की वैध समयसीमा (Limitation) की गणना प्रारंभ होगी।
⚖️ संबंधित विधिक प्रावधानों की व्याख्या:
🔹 धारा 138(c), एन.आई. एक्ट:
चेक अनादरण के मामले में, चेक धारक को ड्रॉअर को नोटिस भेजना होता है, जिसमें 15 दिन की समय-सीमा के भीतर राशि का भुगतान करने की मांग की जाती है।
🔹 धारा 142(1)(b), एन.आई. एक्ट:
यह प्रावधान यह निर्धारित करता है कि चेक बाउंस की शिकायत कारण उत्पत्ति से एक महीने के भीतर दायर की जानी चाहिए।
🔸 इसलिए: यदि शिकायतकर्ता 15 दिनों की नोटिस अवधि समाप्त होने के तुरंत बाद शिकायत दर्ज करता है, तो वह कानून के अनुरूप होगी। लेकिन यदि 15 दिन की प्रतीक्षा नहीं की जाती, तो यह शिकायत समय-पूर्व (premature) मानी जाएगी और खारिज की जा सकती है।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस निष्कर्ष को सही ठहराया और दोहराया कि:
“Section 142(1)(b) of the NI Act mandates that the cause of action for filing a complaint arises only after the expiry of 15 days from the date of receipt of notice under Section 138(c).”
📌 निर्णय का प्रभाव:
✅ यह निर्णय चेक अनादरण मामलों में शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।
✅ यह सुनिश्चित करता है कि ड्रॉअर को भुगतान का अवसर दिया जाए।
✅ समय-सीमा की सही गणना के लिए यह निर्णय दिशा-निर्देशक बनता है।