सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: 55 वर्षों बाद दायर बंटवारे के मुकदमे को बार ऑफ लिमिटेशन के तहत खारिज करने का निर्देश
मुकदमा खारिज करने की प्रक्रिया, सीपीसी की धारा 0.7 नियम 11 और ट्रायल कोर्ट के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
प्रस्तावना
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने LAWS(SC)-2025-4-11 में एक महत्वपूर्ण निर्णय पारित किया, जिसमें 55 वर्षों की अत्यधिक देरी के बाद दायर एक वाद को बार ऑफ लिमिटेशन (Limitation Act) के तहत खारिज कर दिया गया। यह फैसला दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 0.7 नियम 11 और 0.41 नियम 1 तथा संपत्ति अंतरण अधिनियम (T.P. Act) की धारा 3 की व्याख्या से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब रिकॉर्ड से ही यह सिद्ध हो जाए कि मुकदमा समयबद्ध नहीं है, तो ऐसे मामलों में न्यायालय को मुकदमा खारिज करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
मामला संक्षेप में
मूल वादक (Plaintiffs) ने अपने दावे में यह कहा था कि उनका पूर्वजों की संपत्ति में अधिकार है, जिसे गलत तरीके से नकार दिया गया है। उनका तर्क था कि उनके हिस्से का बंटवारा अभी तक नहीं हुआ है। लेकिन रिकॉर्ड से यह तथ्य सामने आया कि पारिवारिक बंटवारा दशकों पहले ही हो चुका था और विभिन्न परिवारजनों ने अपने-अपने हिस्से की जमीन पंजीकृत विक्रय विलेखों (Registered Sale Deeds) के माध्यम से अन्य को हस्तांतरित भी कर दी थी।
इस स्थिति में मुकदमा 55 वर्षों की अत्यधिक देरी के बाद दाखिल किया गया और वादियों के पूर्ववर्तियों (Predecessors) को इन विक्रय विलेखों की कानूनी सूचना (Notice) मानी गई, क्योंकि वे दस्तावेज पंजीकृत थे।
ट्रायल कोर्ट का फैसला
ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड में न तो कोई ठोस कारण पाया जिससे वादियों का दावा पुनर्जीवित हो सके और न ही ऐसा कोई तथ्य पाया जिससे देरी को न्यायसंगत ठहराया जा सके। अतः ट्रायल कोर्ट ने CPC की धारा 0.7 नियम 11 के तहत मुकदमा खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा कि इस मामले में “त्रायबल इश्यूज” (Triable Issues) मौजूद हैं और मुकदमे की सुनवाई होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को ज्यूरिडिक्शनल एरर (Jurisdictional Error) बताते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
- जब रिकॉर्ड पर ही यह स्पष्ट हो कि मुकदमा समयबद्ध नहीं है, तो मुकदमा खारिज करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं होनी चाहिए।
- ऐसे मामलों में जहां वर्षों से कब्जा बदल चुका हो और पंजीकृत दस्तावेजों के आधार पर पक्षकारों ने अपने-अपने अधिकार स्पष्ट रूप से व्यक्त कर दिए हों, वहां पुनः अधिकार स्थापित करने का दावा केवल न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।
- Limitation Act के स्पष्ट प्रावधानों को दरकिनार कर मुकदमा चलाना अदालत के अधिकारों का दुरुपयोग होगा।
- CPC की धारा 0.7 नियम 11 मुकदमा खारिज करने के लिए पर्याप्त प्रावधान प्रदान करती है।
न्यायालय का तर्क
- जब वादियों के पूर्वज ही पंजीकृत विक्रय विलेखों के पक्षकार या उसके प्रिवी (Privies) रहे हैं, तब उन्हें Constructive Notice माना जाएगा।
- न्यायालय को तथ्यों की पुनः जांच करने की आवश्यकता नहीं है, जब रिकॉर्ड से ही यह स्पष्ट हो कि मुकदमा Limitation Act के प्रावधानों के अधीन समयबद्ध नहीं है।
- मुकदमा केवल सुनवाई के नाम पर वर्षों तक खींचने से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
निष्कर्ष
इस निर्णय ने यह साफ कर दिया कि जहां रिकॉर्ड से स्पष्ट हो कि मुकदमा देरी और समयबद्धता के कारण खारिज होने योग्य है, वहां अदालतों को मुकदमा खारिज करने में संकोच नहीं करना चाहिए। यह फैसला न केवल CPC की धारा 0.7 नियम 11 को मज़बूती देता है, बल्कि न्यायालयों को ऐसे मामलों में मुकदमा खारिज करने की शक्ति को भी स्पष्ट करता है, जहां मुकदमे का उद्देश्य केवल कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करना हो।