यहाँ Bar Councils द्वारा अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24 के अंतर्गत नामांकन शुल्क के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले पर एक विस्तृत लेख प्रस्तुत है:
बार काउंसिल नामांकन शुल्क तय सीमा से अधिक नहीं वसूल सकती:
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय — अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24 के अंतर्गत शुल्क सीमा का पालन अनिवार्य
प्रस्तावना
भारतीय विधि व्यवसाय में अधिवक्ताओं के नामांकन की प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक कार्य है, जो अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के अंतर्गत संचालित होती है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी बार काउंसिल अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24(1)(f) में निर्धारित सीमा से अधिक नामांकन शुल्क वसूल नहीं कर सकती। यह फैसला अधिवक्ता समुदाय और न्यायिक प्रशासन में पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
मामला संक्षेप में
मामले के तथ्यों के अनुसार, विभिन्न राज्यों की बार काउंसिल्स ने अधिवक्ताओं के नामांकन (enrollment) के लिए अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24 के तहत निर्धारित राशि से कहीं अधिक शुल्क वसूलना प्रारंभ कर दिया था।
उदाहरणस्वरूप,
- सामान्य श्रेणी के अधिवक्ताओं से 10,000 रुपये या उससे भी अधिक,
- अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के अधिवक्ताओं से 2,500 रुपये या उससे भी अधिक की मांग की जा रही थी।
इसके विरुद्ध अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और बार काउंसिल्स द्वारा वसूले जा रहे इस अतिरिक्त शुल्क को अनुचित ठहराया।
कानूनी प्रावधान: अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24(1)(f)
🔹 अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24(1)(f) में स्पष्ट प्रावधान है कि बार काउंसिल अधिवक्ता नामांकन के समय:
- सामान्य वर्ग (General Category) के अधिवक्ताओं से अधिकतम ₹750
- अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) वर्ग के अधिवक्ताओं से अधिकतम ₹125
ही शुल्क ले सकती है।
🔹 यह सीमा अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए बनाई गई है ताकि नामांकन प्रक्रिया में अनावश्यक आर्थिक बोझ न डाला जाए।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
✅ अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24(1)(f) में नामांकन शुल्क की स्पष्ट सीमा निर्धारित है।
✅ कोई भी बार काउंसिल इस सीमा से अधिक शुल्क वसूलने की अधिकारी नहीं है।
✅ यह प्रावधान अधिवक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है और समानता के अधिकार (Article 14) के तहत भी उचित है।
✅ नामांकन शुल्क वसूली का अधिकार केवल अधिवक्ता अधिनियम के तहत विनियमित होता है, कोई भी बार काउंसिल अपने उपविधियों (Bye-Laws) द्वारा इसकी सीमा नहीं बढ़ा सकती।
न्यायालय की टिप्पणी
“बार काउंसिल्स द्वारा नामांकन शुल्क अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24(1)(f) में निर्धारित सीमा के भीतर ही वसूला जा सकता है। इससे अधिक कोई भी शुल्क अवैध और मनमानी होगी। यह अधिवक्ताओं के मौलिक अधिकारों और न्याय की समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।”
परिणाम और महत्व
👉 अधिवक्ताओं के नामांकन को लेकर राज्यों की बार काउंसिल्स की मनमानी पर अंकुश लगा।
👉 आर्थिक दृष्टि से कमजोर अधिवक्ता वर्ग को राहत मिली।
👉 यह निर्णय भविष्य में नामांकन प्रक्रिया को पारदर्शी और समान बनाए रखने के लिए नजीर बनेगा।
👉 न्यायिक प्रशासन में विश्वास और अधिवक्ताओं के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होगी।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक निर्णय न केवल अधिवक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि बार काउंसिल्स की जवाबदेही और पारदर्शिता भी सुनिश्चित करता है। इससे स्पष्ट होता है कि कोई भी प्राधिकरण कानून के ऊपर नहीं है और अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए न्यायपालिका सतर्क है।