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सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: “Last Seen Together” सिद्धांत मात्र से नहीं हो सकती सजा – Padman Bibhar Vs. State of Odisha

🔷 शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: “Last Seen Together” सिद्धांत मात्र से नहीं हो सकती सजा – Padman Bibhar Vs. State of Odisha


🔶 केस का नाम:
Padman Bibhar Versus State of Odisha
न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
निर्णय: अभियुक्त को बरी किया गया


🔶 प्रस्तावना:

भारतीय आपराधिक न्यायशास्त्र में यह एक स्थापित सैद्धांतिक नियम है कि किसी भी अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए अभियोजन पक्ष को उसके खिलाफ संदेह से परे (beyond reasonable doubt) सबूत प्रस्तुत करने होते हैं। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने Padman Bibhar Vs. State of Odisha केस में यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि केवल “Last Seen Together” (अंतिम बार साथ देखा जाना) सिद्धांत के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती, जब तक कि इसे अन्य ठोस और सुसंगत साक्ष्यों से समर्थन न मिले।


🔶 केस की पृष्ठभूमि:

इस मामले में:

  • मृतक को अंतिम बार अभियुक्त Padman Bibhar के साथ देखा गया था।
  • अभियोजन पक्ष ने इसी आधार पर तर्क दिया कि अभियुक्त ने ही हत्या की होगी
  • न तो कोई आँखों देखा गवाह था, न ही कोई मजबूत परिस्थितिजन्य साक्ष्य
  • मृत्यु और “अंतिम बार देखे जाने” के बीच समय अंतराल भी स्पष्ट नहीं था।

निचली अदालत ने सिर्फ “last seen” सिद्धांत के आधार पर अभियुक्त को दोषी ठहराया और सजा सुनाई।


🔶 सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा:

❝ “The last seen theory, though a relevant piece of circumstantial evidence, cannot, by itself, form the sole basis of conviction unless the time gap between the accused and the deceased being seen together and the discovery of the body is so small that possibility of any other person intervening is ruled out.” ❞

🔸 यानी यदि मृतक और अभियुक्त को साथ अंतिम बार देखे जाने और शव मिलने के बीच समय का अंतराल स्पष्ट नहीं है, तो केवल उस सिद्धांत के आधार पर सजा देना न्यायिक त्रुटि होगी।


🔶 सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

👉 अभियुक्त Padman Bibhar को बरी कर दिया गया
👉 निचली अदालत का निर्णय रद्द किया गया
👉 कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अन्य ठोस प्रमाणों की अनुपस्थिति में केवल परिस्थितिजन्य प्रमाण (last seen theory) सजा के लिए पर्याप्त नहीं हैं।


🔶 निर्णय का महत्व:

  1. न्यायिक सतर्कता का उदाहरण:
    यह निर्णय यह दर्शाता है कि सर्वोच्च न्यायालय केवल संदेह के आधार पर किसी को दोषी ठहराने के पक्ष में नहीं है।
  2. “Last Seen” सिद्धांत की सीमाएँ:
    यह फैसला स्पष्ट करता है कि इस सिद्धांत का प्रयोग तभी वैध है जब अन्य मजबूत, स्वतंत्र और सुसंगत साक्ष्य मौजूद हों।
  3. अधिकारों की सुरक्षा:
    यह निर्णय अभियुक्तों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है और गलत सजा से बचाव सुनिश्चित करता है।

🔶 निष्कर्ष:

Padman Bibhar बनाम राज्य ओडिशा मामला भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टांत (judicial precedent) के रूप में उभर कर सामने आया है। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य, जैसे “last seen together”, का उपयोग अत्यंत सावधानी और अन्य ठोस साक्ष्यों के साथ मिलाकर ही किया जाना चाहिए।

यह फैसला न्याय की मंशा को उजागर करता है – “सौ दोषी छूट जाएं, लेकिन एक निर्दोष को सजा न हो।”