🔖 सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: “AIR 2025 SC 549” — जब वाहन स्वामी निर्दोष हो, तो वाहन ज़ब्ती से उत्पन्न कठिनाई को देखते हुए वाहन की कस्टडी लौटाई जा सकती है
🧾 केस शीर्षक:
XYZ बनाम राज्य (AIR 2025 Supreme Court 549)
मूल आदेश: Gauhati High Court — AIROnline 2024 GAU 453
मुख्य विषय: वाहन ज़ब्ती (Vehicle Seizure) और निर्दोष स्वामी की अभिरक्षा वापसी
निर्णायक न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
🧩 निर्णय का सारांश:
सुप्रीम कोर्ट ने Gauhati High Court के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक आपराधिक जांच के दौरान ज़ब्त किए गए वाहन को उसके मालिक को लौटाने से इनकार किया गया था, जबकि उस मालिक का अवैध गतिविधि से कोई संबंध नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि:
“यदि किसी वाहन के ज़ब्ती के पीछे यह प्रमाण नहीं है कि वाहन स्वामी को अपराध की जानकारी थी या उसकी कोई संलिप्तता थी, तो न्यायिक विवेक का प्रयोग करते हुए वाहन स्वामी को वाहन लौटाया जा सकता है।”
⚖️ निर्णय के प्रमुख बिंदु:
- स्वामी की संलिप्तता का अभाव:
जांच में यह स्पष्ट नहीं हुआ कि वाहन स्वामी का किसी अपराध में कोई सक्रिय या निष्क्रिय सहयोग था। - वाहन की निरंतर ज़ब्ती से आर्थिक कठिनाई:
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वाहन स्वामी की आजीविका इस वाहन पर निर्भर थी, और लंबे समय तक उसे कस्टडी से वंचित रखना अनुचित और अन्यायपूर्ण है। - वाहन की निगरानी के लिए उपयुक्त शर्तें तय की जा सकती हैं:
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि वाहन को सुरक्षा, पहचान और आवश्यकता पड़ने पर उपलब्धता सुनिश्चित करने की शर्तों के साथ छोड़ा जा सकता है, जैसे:- पहचान चिन्ह नहीं हटाना
- मालिक को इसे न बेचने या ट्रांसफर न करने का निर्देश
- जांच एजेंसी की आवश्यकता पर वाहन प्रस्तुत करना
📌 सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
“The power of the court under Section 451 CrPC must be exercised judiciously to prevent undue hardship to innocent persons. Detention of property without justification amounts to harassment.”
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने CrPC की धारा 451 के तहत दी गई शक्तियों की व्याख्या करते हुए कहा कि जब किसी वस्तु की निरंतर जब्ती अनुचित कठिनाई उत्पन्न करती है, तो अदालत उसे छोड़ने का आदेश दे सकती है, बशर्ते कि जांच में बाधा न आए।
📚 निष्कर्ष:
✅ यह निर्णय उन मामलों के लिए मार्गदर्शक है, जहाँ पुलिस या जांच एजेंसियों द्वारा वाहन जब्त किए जाते हैं, लेकिन स्वामी की कोई आपराधिक संलिप्तता नहीं पाई जाती।
✅ यह न्याय, विवेक और आजीविका के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करता है।
✅ यह सुनिश्चित करता है कि आपराधिक जांच के नाम पर निर्दोष नागरिकों को अनावश्यक उत्पीड़न का शिकार न बनाया जाए।