लेख शीर्षक:
“सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पहली शादी वैध होते हुए भी महिला को दूसरे पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार”
परिचय:
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि यदि कोई महिला अपने पहले पति से अलग होकर दूसरे पति के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है और उसके साथ संतान का पालन-पोषण कर रही है, तो वह दूसरे पति से भरण-पोषण (Maintenance) पाने की हकदार है, भले ही उसकी पहली शादी कानूनी रूप से अब भी अस्तित्व में हो। यह निर्णय महिला सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय और कल्याणकारी दृष्टिकोण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
मामले की पृष्ठभूमि:
- याचिकाकर्ता महिला की पहली शादी वर्ष 1999 में हुई थी और 2000 में उसके एक पुत्र का जन्म हुआ।
- 2005 में पति-पत्नी अलग हो गए और 2011 में एक समझौते के तहत तलाक ले लिया।
- इसके पश्चात महिला ने अपने पड़ोसी (दूसरे पति) से विवाह कर लिया।
- इस संबंध से उन्हें एक पुत्री हुई।
- बाद में आपसी मतभेद के चलते महिला ने दहेज उत्पीड़न का केस दायर किया और भरण-पोषण की मांग की।
तेलंगाना हाईकोर्ट का आदेश:
- हाईकोर्ट ने माना कि चूंकि महिला की पहली शादी अब भी वैधानिक रूप से बनी हुई थी, इसलिए वह दूसरे व्यक्ति की ‘कानूनी पत्नी’ नहीं मानी जा सकती।
- हालांकि कोर्ट ने इस दंपती की बेटी को भरण-पोषण का हकदार माना।
- हाईकोर्ट ने महिला की भरण-पोषण की याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने महिला की याचिका स्वीकार करते हुए कहा:
“भरण-पोषण कोई उपकार नहीं बल्कि पति का कानूनी और नैतिक कर्तव्य है।
महिला को केवल इसलिए भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसकी पहली शादी तकनीकी रूप से समाप्त नहीं हुई है।”
कोर्ट ने माना कि
- महिला और प्रतिवादी (दूसरे पति) ने विवाहित जोड़े की तरह जीवन बिताया,
- एक बच्चे का पालन-पोषण भी साथ किया,
- और महिला ने पहली शादी की स्थिति छिपाई नहीं थी।
इसलिए, महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का लाभ मिलना चाहिए।
न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ:
- “सीआरपीसी की धारा 125 एक कल्याणकारी प्रावधान है जिसका उद्देश्य महिलाओं और बच्चों को संरक्षण देना है।”
- “विवाह की वैधता को तकनीकी आधार बनाकर किसी महिला को उसके भरण-पोषण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।”
- “कानून को व्यापक और न्यायपूर्ण व्याख्या की दृष्टि से देखा जाना चाहिए, न कि कठोर तकनीकीता से।”
निष्कर्ष:
यह निर्णय महिला अधिकारों और न्याय की भावना को सशक्त करने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भले ही विवाह तकनीकी रूप से वैध हो या अवैध, यदि एक महिला और पुरुष पति-पत्नी की तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं, और महिला आर्थिक रूप से निर्भर है, तो वह भरण-पोषण की पात्र है। यह निर्णय न केवल कानून की मानवीय व्याख्या को दर्शाता है, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों की सुरक्षा को भी सुनिश्चित करता है।