शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट का पुराना नाम और उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में न्यायिक प्रणाली का इतिहास बहुत ही पुराना और समृद्ध रहा है। वर्तमान समय में जो “सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया” देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है, उसकी जड़ें औपनिवेशिक युग में स्थापित न्यायिक संस्थानों में निहित हैं। भारत में पहली बार सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 1774 में “1773 के रेगुलेटिंग एक्ट” के अंतर्गत की गई थी। यह अदालत ब्रिटिश सम्राज्य द्वारा भारत में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से स्थापित की गई थी।
इस न्यायालय को उस समय “कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय” (Supreme Court of Judicature at Fort William, Calcutta) कहा जाता था। यह भारत में स्थापित पहली सर्वोच्च अदालत थी और इसका उद्घाटन 22 अक्टूबर 1774 को हुआ था। इस अदालत की स्थापना के साथ ही भारत में एक औपचारिक न्यायिक संरचना का प्रारंभ हुआ। इसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश नियुक्त किए जाते थे। पहले मुख्य न्यायाधीश का नाम सर एलिजाह इम्पे (Sir Elijah Impey) था।
इस अदालत को कलकत्ता (अब कोलकाता) के फोर्ट विलियम क्षेत्र में स्थापित किया गया था। इसका अधिकार क्षेत्र बंगाल, बिहार और उड़ीसा तक सीमित था। यह अदालत कंपनी सरकार की कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने, भारतीय प्रजा को न्याय दिलाने और ब्रिटिश अधिकारियों के विरुद्ध भी न्यायिक कार्यवाही करने का अधिकार रखती थी।
हालांकि इस न्यायालय के कामकाज की सीमाएं स्पष्ट नहीं थीं, जिससे कई बार ब्रिटिश प्रशासन और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव भी हुआ। आगे चलकर मद्रास और बंबई (अब चेन्नई और मुंबई) में भी इसी प्रकार के सर्वोच्च न्यायालय स्थापित किए गए।
स्वतंत्रता के बाद, 26 जनवरी 1950 को भारत के संविधान के लागू होने के साथ ही भारत का वर्तमान सुप्रीम कोर्ट अस्तित्व में आया, जिसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत स्थापित किया गया था। अब यह न्यायपालिका का शीर्षस्थ अंग है, जिसकी भूमिका संविधान की व्याख्या करने, मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और राष्ट्रीय न्याय प्रणाली को दिशा देने की है।
निष्कर्षतः, भारत के सुप्रीम कोर्ट का पुराना नाम “कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय” था, जिसे 1774 में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत स्थापित किया गया था। यह भारतीय न्यायिक प्रणाली के विकास का एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसने आगे चलकर वर्तमान सुप्रीम कोर्ट के रूप में आकार लिया।