सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: EWS कोटे के तहत अनाथ बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला देना अनिवार्य, राज्यों को सर्वेक्षण कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: EWS कोटे के तहत अनाथ बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला देना अनिवार्य, राज्यों को सर्वेक्षण कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश


भूमिका:

भारत का संविधान प्रत्येक बच्चे को शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के बच्चों के लिए शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करना एक संवैधानिक और मानवीय दायित्व है। इसके अंतर्गत अनाथ बच्चे, जो समाज के सबसे वंचित वर्गों में आते हैं, विशेष सुरक्षा और सहायता के पात्र होते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सभी राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया है कि EWS कोटे के तहत अनाथ बच्चों को निजी स्कूलों में अनिवार्य रूप से प्रवेश दिया जाए, और साथ ही इस संदर्भ में एक विस्तृत सर्वेक्षण कर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।


मामले की पृष्ठभूमि:

यह मुद्दा तब सामने आया जब कुछ राज्यों में निजी स्कूलों द्वारा अनाथ बच्चों को EWS कोटे के अंतर्गत प्रवेश देने से मना किया गया। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि कैसे बाल अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों के बावजूद कई अनाथ बच्चे शिक्षा से वंचित हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि कई निजी स्कूल यह तर्क देकर प्रवेश से इनकार कर रहे हैं कि अनाथ बच्चों के पास आय प्रमाण पत्र नहीं है, जबकि ऐसे बच्चों की सामाजिक स्थिति अपने-आप में इस बात का संकेत है कि वे EWS श्रेणी में आते हैं।


सुप्रीम कोर्ट का आदेश:

सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय में कुछ अहम निर्देश जारी किए, जो इस प्रकार हैं:

  1. EWS कोटे के तहत अनाथ बच्चों को प्रवेश देना अनिवार्य है।
  2. राज्य सरकारें प्रत्येक जिले में सर्वेक्षण करें और यह रिकॉर्ड तैयार करें कि—
    • कितने अनाथ बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला नहीं मिला?
    • किन कारणों से उनका प्रवेश रोका गया?
  3. राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि निजी विद्यालय RTE (Right to Education) अधिनियम, 2009 के अंतर्गत अपने दायित्वों का पालन करें।
  4. अनाथ बच्चों के लिए आय प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं मानी जाए। उनकी सामाजिक स्थिति ही EWS मान्यता के लिए पर्याप्त है।

कानूनी और संवैधानिक परिप्रेक्ष्य:

यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार) और RTE अधिनियम, 2009 की धारा 12(1)(c) के तहत अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह धारा निजी अनुदानित और गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों को निर्देश देती है कि वे अपने 25% स्थान EWS और वंचित वर्गों के बच्चों के लिए आरक्षित रखें।

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अनाथ बच्चों को इस श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए और किसी भी प्रकार की तकनीकी बाधा उनके मौलिक अधिकारों के रास्ते में नहीं आनी चाहिए।


राज्य सरकारों की जिम्मेदारी:

राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि—

  • सभी निजी स्कूलों द्वारा अनिवार्य रूप से EWS दाखिले किए जाएं।
  • अनाथ बच्चों की पहचान और उनके लिए प्रवेश प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाए।
  • बच्चों के पुनर्वास और शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए।
  • सर्वेक्षण के आंकड़ों को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया जाए।

यह सर्वे न केवल स्थिति की गंभीरता को समझने का माध्यम बनेगा, बल्कि यह भी दर्शाएगा कि किस हद तक शिक्षा का अधिकार व्यवहार में लागू हो रहा है।


सामाजिक महत्व:

यह निर्णय समाज में शिक्षा के समावेशी स्वरूप को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है:

  1. अनाथ बच्चों के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व को बल मिलता है।
  2. निजी स्कूलों की जवाबदेही बढ़ती है।
  3. शिक्षा के अधिकार को वास्तविक रूप में लागू करने का मार्ग प्रशस्त होता है।

चुनौतियाँ और समाधान:

हालाँकि यह आदेश दूरदर्शी है, परन्तु इसके क्रियान्वयन में कुछ व्यवहारिक चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं:

  • निजी स्कूलों की अनिच्छा
  • दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता
  • स्थानीय प्रशासन की उदासीनता

इन चुनौतियों का समाधान तभी संभव है जब—

  • नीति-निर्माण में संवेदनशीलता लाई जाए,
  • स्कूलों को स्पष्ट दिशा-निर्देश और समयबद्ध कार्ययोजना दी जाए,
  • अनाथ बच्चों के लिए राज्य की ओर से विशेष अधिकारी नियुक्त किए जाएं।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल अनाथ बच्चों के शिक्षा अधिकार की रक्षा करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि निजी स्कूल सार्वजनिक उत्तरदायित्व से बच न सकें। यह निर्णय भविष्य में शिक्षा के क्षेत्र में समानता, समावेश और न्याय के सिद्धांतों को मजबूती प्रदान करेगा।

हर बच्चे को शिक्षा मिले — यही एक सशक्त और संवेदनशील समाज की पहचान है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उस दिशा में एक निर्णायक और साहसी कदम है।


संदेश:

समाज, स्कूल और सरकार — तीनों की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि अनाथ बच्चों को एक बेहतर भविष्य मिले। शिक्षा वह प्रथम सीढ़ी है, जिससे वे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकते हैं। अब समय है कि हम केवल नीति नहीं, व्यवहार में भी संवेदनशील बनें।