“सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: सभी थानों में लगें सीसीटीवी कैमरे, एआई के जरिये निगरानी हो — पुलिस जवाबदेही और पारदर्शिता की दिशा में ऐतिहासिक पहल”
🔹 प्रस्तावना
भारत में पुलिस तंत्र को लोकतंत्र की रीढ़ माना जाता है। लेकिन बीते वर्षों में पुलिस हिरासत, पूछताछ और थानों में नागरिक अधिकारों के उल्लंघन से जुड़े मामलों ने न्यायपालिका और समाज दोनों को चिंतित किया है। इन्हीं परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण स्वतः संज्ञान (Suo Motu) मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि —
“देश के हर पुलिस थाने में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए और उनकी निगरानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित होनी चाहिए, ताकि मानवीय हस्तक्षेप की संभावना समाप्त हो सके।”
यह फैसला न केवल तकनीकी दृष्टि से ऐतिहासिक है, बल्कि यह पुलिस जवाबदेही, मानवाधिकारों की सुरक्षा और पारदर्शिता के क्षेत्र में भी एक क्रांतिकारी कदम है।
🔹 मामले की पृष्ठभूमि : पुलिस थानों में सीसीटीवी की कमी पर स्वतः संज्ञान
सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2020 में एक स्वतः संज्ञान मामला दर्ज किया था, जिसमें पुलिस हिरासत में उत्पीड़न, अमानवीय व्यवहार और मौतों की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी।
कोर्ट ने तब सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि —
- प्रत्येक पुलिस थाने और जांच एजेंसी के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं।
- सभी कैमरे रिकॉर्डिंग क्षमता वाले हों और फुटेज कम से कम 18 महीने तक सुरक्षित रखी जाए।
- एक राज्य स्तरीय और जिला स्तरीय निगरानी समिति गठित की जाए जो नियमित निरीक्षण करे।
लेकिन पांच वर्ष बाद भी अधिकांश राज्यों ने इस दिशा में संतोषजनक कदम नहीं उठाए। कई पुलिस थानों में कैमरे तो लगाए गए, परंतु या तो वे बंद थे या उनमें रिकॉर्डिंग की सुविधा नहीं थी।
🔹 सुप्रीम कोर्ट की हालिया सुनवाई (अक्टूबर 2025)
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सोमवार को इस मामले में सुनवाई की।
कोर्ट ने कहा कि पुलिस थानों में निगरानी व्यवस्था अब भी अपर्याप्त है और कई जगहों पर “सीसीटीवी कैमरे मात्र औपचारिकता” बनकर रह गए हैं।
पीठ ने कहा —
“हर थाने में सीसीटीवी होना चाहिए और उसकी निगरानी बिना मानवीय हस्तक्षेप के होनी चाहिए। एआई (Artificial Intelligence) का प्रयोग ही इसका सबसे प्रभावी समाधान हो सकता है।”
🔹 एआई आधारित निगरानी की अवधारणा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक केंद्रीय नियंत्रण कक्ष (Central Monitoring Room) स्थापित किया जाना चाहिए, जो देश के हर थाने से आने वाली लाइव फीड को प्राप्त करे।
इस नियंत्रण कक्ष की विशेषताएँ निम्नलिखित होनी चाहिए —
- बिना मानवीय हस्तक्षेप की निगरानी — कोई व्यक्ति फुटेज से छेड़छाड़ न कर सके।
- एआई एल्गोरिद्म के जरिये निगरानी — सिस्टम अपने आप यह पहचान सके कि कौन-सा कैमरा बंद हुआ या फुटेज गायब हुआ।
- रियल-टाइम अलर्ट सिस्टम — यदि किसी कैमरे की रिकॉर्डिंग बाधित हो, तो तुरंत सूचना नियंत्रण कक्ष और संबंधित विभाग को मिले।
- डेटा सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करना — ताकि नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहें।
🔹 न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्देश
पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि —
“हमारा उद्देश्य निगरानी नहीं, बल्कि जवाबदेही है। सीसीटीवी फुटेज का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पुलिस थानों में कोई नागरिक अपने अधिकारों से वंचित न हो।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि —
“शुरुआत में हर पुलिस थाने का निरीक्षण किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा किया जाना चाहिए। इसके लिए आईआईटी जैसी तकनीकी संस्थाओं की मदद ली जा सकती है, जो एक एकीकृत सॉफ्टवेयर विकसित करें।”
🔹 वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे की भूमिका
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे को “अमाइकस क्यूरी (न्यायमित्र)” नियुक्त किया था।
उन्होंने तर्क दिया कि —
- सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश केवल औपचारिक नहीं होना चाहिए।
- राज्यों को यह बताना होगा कि कितने थानों में कैमरे चालू हैं और कितने निष्क्रिय।
- रिकॉर्डिंग के रखरखाव की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय पोर्टल बनाया जाए।
कोर्ट ने उनकी दलीलों को ध्यान में रखते हुए यह भी कहा कि वह इस मामले में 26 सितंबर को विस्तृत आदेश पारित करेगी।
🔹 पुलिस थानों में निगरानी क्यों जरूरी है?
भारत में हर वर्ष सैकड़ों हिरासत में मौतों (Custodial Deaths) और मानवाधिकार उल्लंघन के मामले सामने आते हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार —
- वर्ष 2023 में 113 हिरासत में मौतें,
- और 3000 से अधिक हिरासत में यातना के मामले दर्ज हुए।
अधिकांश मामलों में सबूत न होने के कारण दोषियों को सजा नहीं मिल पाती।
सीसीटीवी निगरानी इन घटनाओं को रोकने और जवाबदेही तय करने का सबसे प्रभावी साधन है।
🔹 संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण
सीसीटीवी कैमरों की स्थापना का मुद्दा नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़ा है —
- अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) — पुलिस थानों में सुरक्षा और पारदर्शिता इसका हिस्सा है।
- अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) — नागरिकों के साथ भेदभावरहित व्यवहार सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 19(1)(a) — अभिव्यक्ति और सूचना के अधिकार से संबंधित है, जिससे नागरिक जान सकें कि उनके साथ क्या व्यवहार हुआ।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने Paramvir Singh Saini v. Baljit Singh (2020) में स्पष्ट निर्देश दिया था कि —
“हर राज्य यह सुनिश्चित करे कि थानों और जांच एजेंसियों में सीसीटीवी कैमरे हों और फुटेज को कम से कम 18 महीने तक संरक्षित किया जाए।”
🔹 तकनीकी समाधान की आवश्यकता
कोर्ट की टिप्पणी ने इस दिशा में नई सोच को जन्म दिया है —
“AI-enabled Surveillance”।
इसके अंतर्गत —
- चेहरों की पहचान करने वाला सॉफ्टवेयर (Face Recognition),
- संदिग्ध गतिविधियों को ट्रैक करने वाले एल्गोरिद्म,
- और “Real-time Monitoring Dashboards”
का उपयोग किया जा सकता है।
यह प्रणाली न केवल मानव त्रुटि को घटाएगी, बल्कि पुलिस थानों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता भी लाएगी।
🔹 राज्यों की लापरवाही और सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
कोर्ट ने यह भी पाया कि कई राज्यों ने अब तक सीसीटीवी कैमरों की स्थिति पर कोई अद्यतन रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है।
कुछ राज्यों ने यह भी कहा कि “फंड की कमी” के कारण कैमरे नहीं लगाए जा सके।
इस पर कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की —
“जब सरकारें चुनावी प्रचार पर करोड़ों खर्च कर सकती हैं, तो नागरिकों की सुरक्षा के लिए कैमरे क्यों नहीं लगा सकतीं?”
🔹 नागरिक अधिकारों की रक्षा में एआई की भूमिका
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग केवल निगरानी तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे मानवाधिकार संरक्षण के एक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए।
एआई सिस्टम यह पहचान सकते हैं कि —
- किसी थाने में किसी व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है या नहीं,
- क्या किसी अधिकारी द्वारा शक्ति का दुरुपयोग किया जा रहा है,
- या किसी व्यक्ति को बिना कारण हिरासत में रखा गया है।
इस प्रकार एआई “डिजिटल वॉचडॉग” के रूप में काम कर सकता है।
🔹 भविष्य की दिशा और संभावित लाभ
यदि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का ईमानदारी से पालन किया गया, तो इसके निम्नलिखित लाभ होंगे —
- हिरासत में मौतों में कमी
- मानवाधिकार उल्लंघन पर नियंत्रण
- पुलिस पर नागरिकों का विश्वास बढ़ेगा
- भ्रष्टाचार और दबाव की संस्कृति में गिरावट
- न्यायिक जांच में पारदर्शिता
🔹 निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम केवल एक तकनीकी आदेश नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के मानवाधिकार तंत्र को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है।
यह न्यायपालिका का स्पष्ट संदेश है कि —
“पुलिस की जवाबदेही और नागरिकों की सुरक्षा किसी विकल्प का विषय नहीं, बल्कि संविधान का अनिवार्य दायित्व है।”
जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता और न्यायिक निगरानी साथ आएंगे, तब कानून के शासन (Rule of Law) की जड़ें और भी मजबूत होंगी।
✍️ निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि —
भारत के हर थाने में एआई आधारित सीसीटीवी प्रणाली केवल निगरानी का माध्यम नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक पारदर्शिता और मानव गरिमा की रक्षा का प्रतीक है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय आने वाले वर्षों में पुलिसिंग के स्वरूप को आधुनिक, उत्तरदायी और नागरिक-केन्द्रित बनाने में निर्णायक सिद्ध होगा।