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“सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: निजी कक्ष में घटित घटना सार्वजनिक दृष्टि में न होने पर एससी-एसटी अधिनियम की कार्यवाही रद्द”

Supreme Court Judgment: SC-ST Act Proceedings Quashed – Incident in Private Chamber Not Within Public View “सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: निजी कक्ष में घटित घटना सार्वजनिक दृष्टि में न होने पर एससी-एसटी अधिनियम की कार्यवाही रद्द”


परिचय

भारतीय विधि व्यवस्था में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC-ST Act) को एक विशेष सामाजिक-सुरक्षात्मक कानून के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य दलित और आदिवासी समुदाय के सदस्यों को सामाजिक अपमान, उत्पीड़न और भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करना है। तथापि, न्यायालयों ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि इस अधिनियम का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और इसके प्रावधानों को तभी लागू किया जा सकता है जब अपराध की आवश्यक शर्तें (ingredients) स्पष्ट रूप से पूरी होती हों।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट/हाईकोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय ने इस सिद्धांत को और मज़बूत किया कि यदि कथित घटना निजी कक्ष (private chamber) में घटित हुई है और वहां कोई जनसामान्य (public view) उपस्थित नहीं था, तो SC-ST Act की धाराएं स्वतः लागू नहीं होंगी।


मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता (आरोपी) के विरुद्ध प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई थी जिसमें यह आरोप था कि उसने शिकायतकर्ता (Complainant) को उसकी जाति सूचक गालियाँ दीं और दुर्व्यवहार किया। शिकायत में IPC की धारा 294(b) (अश्लील शब्द/कृत्य), धारा 353 (लोक सेवक को कार्य करने से रोकना), तथा SC-ST Act की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के तहत अभियोजन चलाया गया।

मुख्य आरोप यह था कि आरोपी ने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर शिकायतकर्ता को अपमानित किया। किंतु यह घटना शिकायतकर्ता के निजी चेम्बर (chamber/office room) में घटी, जहां उस समय केवल वह और आरोपी मौजूद थे। बाद में कुछ सहकर्मी (colleagues) वहाँ पहुँचे, लेकिन घटना प्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक स्थान (public place) या जनसामान्य की दृष्टि (public view) में नहीं हुई।


कानूनी प्रश्न (Legal Issue)

मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि —
क्या ऐसी घटना, जो निजी कक्ष में घटी और जिसे केवल कुछ सहकर्मियों ने बाद में सुना, SC-ST Act की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के अंतर्गत अपराध मानी जा सकती है?


प्रासंगिक विधिक प्रावधान

(1) भारतीय दंड संहिता (IPC)

  • धारा 294(b) – सार्वजनिक स्थान पर अश्लील शब्दों/क्रियाओं का प्रयोग।
  • धारा 353 – लोक सेवक को बलपूर्वक उसके कर्तव्यों के पालन से रोकना।

(2) SC-ST Act, 1989

  • धारा 3(1)(r) – अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य को “सार्वजनिक स्थान या सार्वजनिक दृष्टि में” जातिसूचक शब्दों से अपमानित करना।
  • धारा 3(1)(s) – किसी अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य को सार्वजनिक स्थान से बाहर करने या प्रवेश रोकने से संबंधित अपराध।

(3) दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)

  • धारा 482 – उच्च न्यायालय की निहित शक्तियाँ (inherent powers) जिससे वह न्याय की रक्षा हेतु कार्यवाही को रद्द (quash) कर सकता है।

न्यायालय का विश्लेषण

1. “Public View” की व्याख्या

अदालत ने सबसे पहले यह स्पष्ट किया कि SC-ST Act की धारा 3(1)(r) तभी लागू होगी जब अपमानजनक शब्दों का प्रयोग “सार्वजनिक दृष्टि (within public view)” में किया गया हो।

  • “Public view” का अर्थ है कि घटना ऐसी जगह घटे जहां अन्य लोग स्वतंत्र रूप से देख या सुन सकें
  • केवल बंद कमरे में, निजी बातचीत के दौरान अपमानजनक शब्द कहना इस शर्त को पूरा नहीं करता।

2. निजी चेम्बर में घटना

न्यायालय ने यह तथ्य महत्वपूर्ण माना कि घटना Complainant के निजी चेम्बर में हुई थी।

  • उस समय केवल आरोपी और शिकायतकर्ता मौजूद थे।
  • सहकर्मी बाद में पहुँचे, इसलिए घटना उनके सामने नहीं हुई।
  • अतः यह “public view” में घटित अपराध नहीं माना जा सकता।

3. IPC की धाराओं पर विचार

  • धारा 294(b) – इसके लिए आवश्यक है कि अश्लील शब्द या हरकत सार्वजनिक स्थान पर हुई हो। चूँकि घटना निजी चेम्बर में हुई, यह धारा लागू नहीं होती।
  • धारा 353 – इस धारा के लिए यह साबित होना चाहिए कि आरोपी ने लोक सेवक को बलपूर्वक उसकी ड्यूटी से रोका। लेकिन यहाँ ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं था।

4. दंड प्रक्रिया संहिता धारा 482

उच्च न्यायालय ने CrPC की धारा 482 के तहत यह कहा कि जब प्रथम दृष्टया (prima facie) आरोप की आवश्यक शर्तें ही पूरी नहीं होतीं, तो कार्यवाही जारी रखना न्याय के विपरीत होगा।


पूर्ववर्ती न्यायिक दृष्टांत (Precedents)

न्यायालय ने कुछ पूर्व के निर्णयों पर भी बल दिया, जिनमें यह सिद्धांत स्थापित किया गया था कि —

  1. Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020) – केवल निजी विवाद या निजी स्थान पर जातिसूचक अपमान SC-ST Act के अंतर्गत नहीं आता, जब तक वह सार्वजनिक दृष्टि में न हो।
  2. Swaran Singh v. State (2008) – “public view” की व्याख्या करते हुए कहा गया कि यह केवल “public place” तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐसी स्थिति होनी चाहिए जहां अन्य लोग प्रत्यक्षदर्शी बन सकें।

इन मामलों के आधार पर न्यायालय ने पाया कि वर्तमान प्रकरण में SC-ST Act की धाराएँ लागू नहीं होतीं।


निर्णय (Judgment)

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि —

  • चूँकि घटना निजी चेम्बर में हुई और यह सार्वजनिक दृष्टि (public view) में नहीं थी, इसलिए SC-ST Act की धारा 3(1)(r) एवं 3(1)(s) लागू नहीं होतीं।
  • IPC की धाराएँ 294(b) और 353 के तहत भी अपराध सिद्ध नहीं होता।
  • इसलिए पूरी कार्यवाही (proceedings) असंगत और अस्थिर (unsustainable) है।

फलस्वरूप, न्यायालय ने प्रक्रिया को रद्द (quash) कर दिया और अभियोजन समाप्त कर दिया।


निर्णय का महत्व (Significance of the Ruling)

  1. गलत अभियोजन पर रोक – यह निर्णय स्पष्ट करता है कि SC-ST Act का दुरुपयोग रोकना आवश्यक है, ताकि निर्दोष व्यक्तियों को अनावश्यक मुकदमों से बचाया जा सके।
  2. “Public View” की सीमा – न्यायालय ने एक बार फिर यह रेखांकित किया कि केवल निजी स्थान पर बोले गए अपमानजनक शब्द अधिनियम के अंतर्गत नहीं आएंगे।
  3. न्यायिक संतुलन – यह फैसला दर्शाता है कि न्यायालयें एक ओर तो SC-ST Act की संरक्षात्मक भावना को मान्यता देती हैं, वहीं दूसरी ओर यह सुनिश्चित करती हैं कि इसका दुरुपयोग न हो।
  4. भविष्य के मामलों के लिए मार्गदर्शन – अब निचली अदालतों को यह देखना होगा कि क्या कथित अपराध सार्वजनिक दृष्टि में हुआ या केवल निजी स्थान पर।

निष्कर्ष

यह निर्णय इस बात का प्रमाण है कि कानून की व्याख्या करते समय न्यायालय केवल शब्दशः (literal) अर्थ तक सीमित नहीं रहते, बल्कि उसके पीछे की विधायी मंशा (legislative intent) और न्याय के हित (interest of justice) को भी ध्यान में रखते हैं।

SC-ST Act का उद्देश्य अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्तियों की गरिमा की रक्षा करना है, लेकिन न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि हर निजी विवाद या बंद कमरे में हुई बहस को इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं लाया जा सकता।

इस प्रकार, यह फैसला न केवल कानूनी सिद्धांतों को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कानून का उपयोग सही संदर्भ में हो और उसका दुरुपयोग रोककर न्यायिक संतुलन बनाए रखा जाए।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय : निजी कक्ष में घटित घटना सार्वजनिक दृष्टि में न होने पर SC-ST अधिनियम की कार्यवाही रद्द


Q.1. इस मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि क्या थी?

Ans. शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे उसकी जाति के आधार पर गालियाँ दीं और अपमानित किया। FIR IPC की धारा 294(b) (अश्लील शब्द), धारा 353 (लोक सेवक को कार्य से रोकना) तथा SC-ST Act की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के तहत दर्ज की गई। घटना शिकायतकर्ता के निजी चेम्बर में घटी थी, जहाँ उस समय कोई अन्य जनसामान्य उपस्थित नहीं था।


Q.2. इस मामले में मुख्य कानूनी प्रश्न (Legal Issue) क्या था?

Ans. मुख्य प्रश्न यह था कि क्या निजी कक्ष में हुई जातिसूचक गालियाँ और अपमानजनक शब्द, जहाँ कोई जनसामान्य (public view) उपस्थित नहीं था, SC-ST Act की धाराओं 3(1)(r) और 3(1)(s) के अंतर्गत अपराध माना जा सकता है?


Q.3. SC-ST Act की धारा 3(1)(r) और “public view” की शर्त का क्या महत्व है?

Ans. धारा 3(1)(r) के अनुसार अपराध तभी माना जाएगा जब अपमानजनक शब्द “सार्वजनिक स्थान या सार्वजनिक दृष्टि (public view)” में बोले जाएँ।

  • “Public view” का अर्थ है कि घटना ऐसी जगह घटे जहाँ अन्य लोग स्वतंत्र रूप से देख या सुन सकें।
  • यदि घटना केवल निजी कक्ष/कमरे में हुई हो, तो यह शर्त पूरी नहीं होती।

Q.4. न्यायालय ने IPC की धारा 294(b) और 353 पर क्या विचार किया?

Ans.

  • धारा 294(b): यह केवल तब लागू होती है जब अश्लील शब्द/कृत्य सार्वजनिक स्थान पर किए जाएँ। चूँकि घटना निजी चेम्बर में हुई थी, यह धारा लागू नहीं हुई।
  • धारा 353: इस धारा के लिए यह साबित होना चाहिए कि आरोपी ने लोक सेवक को बलपूर्वक कार्य से रोका। लेकिन यहाँ ऐसा कोई सबूत प्रस्तुत नहीं था।

Q.5. अदालत ने CrPC की धारा 482 का प्रयोग किस प्रकार किया?

Ans. CrPC की धारा 482 उच्च न्यायालय को निहित शक्तियाँ प्रदान करती है जिससे वह न्याय की रक्षा हेतु अनावश्यक कार्यवाहियों को रद्द (quash) कर सकता है।
अदालत ने कहा कि जब प्रथम दृष्टया (prima facie) अपराध की आवश्यक शर्तें पूरी ही नहीं होतीं, तो मुकदमे की कार्यवाही जारी रखना न्याय के विपरीत होगा।


Q.6. इस निर्णय में न्यायालय ने किन पूर्ववर्ती मामलों (precedents) पर भरोसा किया?

Ans.

  1. Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020): निजी विवाद या निजी स्थान पर अपमान SC-ST Act के अंतर्गत नहीं आता।
  2. Swaran Singh v. State (2008): “Public view” का अर्थ यह है कि अन्य लोग प्रत्यक्षदर्शी बन सकें, मात्र निजी स्थान नहीं।

इन दृष्टांतों के आधार पर न्यायालय ने पाया कि वर्तमान प्रकरण में अधिनियम लागू नहीं होता।


Q.7. इस निर्णय का महत्व और प्रभाव क्या है?

Ans.

  1. दुरुपयोग पर रोक: यह निर्णय स्पष्ट करता है कि SC-ST Act का दुरुपयोग रोकना आवश्यक है।
  2. “Public View” की सीमा: केवल निजी स्थान पर बोले गए अपमानजनक शब्द अधिनियम के अंतर्गत नहीं आएँगे।
  3. न्यायिक संतुलन: न्यायालयों ने यह सुनिश्चित किया कि अधिनियम का प्रयोग सही संदर्भ में हो और निर्दोष लोग परेशान न हों।
  4. भविष्य में मार्गदर्शन: यह फैसला निचली अदालतों के लिए दिशा-निर्देशक है कि वे SC-ST मामलों में घटना का स्थान और परिस्थितियों का गहन परीक्षण करें।