सुप्रीम कोर्ट का कड़ा आदेश: दिल्ली PWD पर ₹5 लाख का जुर्माना, मैन्युअल सीवर सफाई में मौतों पर अफसरों को FIR की चेतावनी
प्रस्तावना
भारत में मैन्युअल स्कैवनजिंग (manual scavenging) और सीवर की मैन्युअल सफाई की समस्या दशकों पुरानी है, जो मुख्यतः दलित समुदायों के लोगों को सौंपा जाता है। यह न केवल उनके जीवन के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का भी उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कई बार आदेश दिए हैं, लेकिन हाल की घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इन आदेशों का पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है।
पृष्ठभूमि
- मैन्युअल स्कैवनजिंग पर कानून: 2013 में भारत सरकार ने “Prohibition of Employment as Manual Scavengers and Their Rehabilitation Act, 2013” लागू किया, जिसके तहत मैन्युअल स्कैवनजिंग को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है। इस कानून के अनुसार, किसी को भी हाथ से मल-मूत्र साफ करने का काम नहीं दिया जा सकता।
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश: अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मैन्युअल स्कैवनजिंग को समाप्त किया जाए और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। इसके बावजूद, हाल की घटनाओं ने यह दर्शाया कि इन आदेशों का पालन नहीं हो रहा है।
ताज़ा घटना: दिल्ली PWD पर ₹5 लाख का जुर्माना
- क्या हुआ: दिल्ली PWD ने सुप्रीम कोर्ट के गेट F के बाहर मैन्युअल सीवर सफाई के लिए श्रमिकों को नियुक्त किया, जिनमें एक नाबालिग भी शामिल था। इन श्रमिकों को बिना सुरक्षा उपकरणों के काम पर लगाया गया था।
- सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया: सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को गंभीरता से लिया और दिल्ली PWD पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाया। यह राशि National Commission for Safai Karmacharis को चार सप्ताह के भीतर जमा करनी होगी। इसके साथ ही, कोर्ट ने चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ हुईं तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज की जाएगी।
- अदालत का आदेश: “हम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि यदि भविष्य में ऐसी घटनाएँ हुईं, तो हम संबंधित अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए मजबूर होंगे।” – न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन. वी. अन्जरिया।
कानूनी और संवैधानिक पहलू
- मैन्युअल स्कैवनजिंग निषेध अधिनियम, 2013: इस अधिनियम के तहत मैन्युअल स्कैवनजिंग को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है। इसके बावजूद, दिल्ली PWD ने इस कानून का उल्लंघन किया।
- संविधानिक अधिकार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 के तहत, प्रत्येक नागरिक को जीवन और समानता का अधिकार है। मैन्युअल स्कैवनजिंग इन अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- नाबालिगों की भागीदारी: भारतीय कानूनों के तहत नाबालिगों को ऐसे खतरनाक कार्यों में शामिल करना अपराध है। दिल्ली PWD ने इस नियम का भी उल्लंघन किया।
आलोचना और चुनौतियाँ
- नियमों का पालन नहीं होना: सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद, दिल्ली PWD ने मैन्युअल सीवर सफाई के लिए श्रमिकों को नियुक्त किया, जो आदेशों की अवहेलना है।
- अधिकारियों की लापरवाही: दिल्ली PWD ने ठेकेदारों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की, जिससे यह संकेत मिलता है कि अधिकारियों ने जानबूझकर लापरवाही बरती।
- सामाजिक और आर्थिक दबाव: मैन्युअल स्कैवनजिंग मुख्यतः दलित समुदायों के लोगों द्वारा किया जाता है, जो सामाजिक और आर्थिक दबाव के कारण इस कार्य को स्वीकार करते हैं।
सुधार के उपाय
- मेकैनिकल सफाई का प्रसार: मैन्युअल सीवर सफाई को समाप्त करने के लिए मेकैनिकल सफाई प्रणालियों का उपयोग बढ़ाना चाहिए।
- ठेकेदारों के अनुबंधों में कड़े प्रावधान: ठेकेदारों के साथ किए गए अनुबंधों में सुरक्षा उपकरणों की अनिवार्यता और नाबालिगों की भागीदारी पर प्रतिबंध जैसे कड़े प्रावधान शामिल किए जाने चाहिए।
- अधिकारियों की जवाबदेही: अधिकारियों को उनके कृत्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, और लापरवाही के लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए।
- सामाजिक जागरूकता: मैन्युअल स्कैवनजिंग के खिलाफ सामाजिक जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि लोग इस अवैध प्रथा के खिलाफ खड़े हों।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश यह स्पष्ट करता है कि मैन्युअल स्कैवनजिंग और सीवर की मैन्युअल सफाई को समाप्त करना केवल एक कानूनी आवश्यकता नहीं, बल्कि यह प्रत्येक नागरिक के जीवन और समानता के अधिकार की रक्षा करना है। दिल्ली PWD पर लगाया गया ₹5 लाख का जुर्माना और अधिकारियों के खिलाफ FIR की चेतावनी यह दर्शाती है कि अब कोई भी उल्लंघन सहन नहीं किया जाएगा। यह आदेश अन्य राज्यों और नगर निगमों के लिए भी एक संदेश है कि वे इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें और आवश्यक कदम उठाएं।
1. मैन्युअल स्कैवनजिंग क्या है?
मैन्युअल स्कैवनजिंग वह प्रक्रिया है जिसमें लोग मानव मल या अपशिष्ट को हाथों या साधारण उपकरणों से साफ करते हैं। यह कार्य मुख्यतः दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को दिया जाता है। भारत में 2013 में लागू “Prohibition of Employment as Manual Scavengers and Their Rehabilitation Act” के अनुसार, किसी को भी मैन्युअल स्कैवनजिंग का काम करना या करवाना पूरी तरह प्रतिबंधित है। यह प्रथा मानव गरिमा, जीवन और सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन करती है। मैन्युअल स्कैवनजिंग श्रमिकों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालती है और इससे कई बार मौतें और गंभीर दुर्घटनाएँ होती हैं।
2. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली PWD पर क्या कार्रवाई की?
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली PWD पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाया क्योंकि उसने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए मैन्युअल सीवर सफाई कराई। इस सफाई में सुरक्षा उपकरण नहीं दिए गए और एक नाबालिग को भी काम पर लगाया गया। कोर्ट ने चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ हुईं तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज की जाएगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि आदेशों का पालन “letter and spirit” से होना चाहिए।
3. नाबालिगों को मैन्युअल सफाई में क्यों नहीं लगाया जा सकता?
भारतीय कानूनों के तहत नाबालिगों को खतरनाक कार्यों में शामिल करना अपराध है। मैन्युअल सीवर सफाई में जहरीली गैस, बीमारियों और दुर्घटनाओं का जोखिम बहुत अधिक होता है। नाबालिगों को इस तरह के कार्य में लगाने से उनका जीवन और स्वास्थ्य खतरे में पड़ता है, और यह बाल श्रम निषेध कानून का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली PWD पर कार्रवाई करते हुए नाबालिग की भागीदारी को गंभीर उल्लंघन माना।
4. सुप्रीम कोर्ट का जुर्माना किसके लिए लगाया गया?
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली PWD पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाया। यह राशि National Commission for Safai Karmacharis को चार सप्ताह के भीतर जमा करनी होगी। जुर्माने का उद्देश्य सरकार और संबंधित विभागों को यह चेतावनी देना है कि मानव अधिकारों और कानून का उल्लंघन नहीं सहन किया जाएगा।
5. मैन्युअल स्कैवनजिंग निषेध अधिनियम, 2013 का महत्व
यह अधिनियम मैन्युअल स्कैवनजिंग को पूरी तरह से प्रतिबंधित करता है। इसके तहत किसी को भी हाथ या जोखिमपूर्ण उपकरणों से मल-मूत्र साफ करने का काम नहीं दिया जा सकता। अधिनियम सुरक्षा उपकरणों, प्रशिक्षण और पुनर्वास का प्रावधान करता है। यह अधिनियम दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों की सुरक्षा, जीवन और गरिमा की रक्षा करता है।
6. सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य में क्या चेतावनी दी?
अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में मैन्युअल सीवर सफाई जैसी घटनाएँ हुईं, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज की जाएगी। यह चेतावनी अधिकारियों और ठेकेदारों को जिम्मेदार बनाने और आदेशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए दी गई है।
7. मैन्युअल सफाई में मौतों की घटनाएँ
दिल्ली में कई बार मैन्युअल सीवर सफाई के दौरान मौतें हुई हैं। उदाहरण के लिए, अशोक विहार में एक श्रमिक मैनहोल में गिर गया और जहरीली गैस के कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसे बचाने गया दूसरा श्रमिक भी मरा। ये घटनाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि कानूनों और आदेशों का अनुपालन न होने से गंभीर दुर्घटनाएँ होती हैं।
8. सुधार के लिए आवश्यक उपाय
मैन्युअल सफाई को समाप्त करने के लिए मशीनों और मैकेनिकल उपकरणों का उपयोग बढ़ाना चाहिए। ठेकेदारों के अनुबंधों में सुरक्षा उपकरणों की अनिवार्यता और नाबालिगों की भागीदारी पर प्रतिबंध होना चाहिए। अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए और लापरवाही पर कड़ी कार्रवाई हो। साथ ही, समाज में जागरूकता अभियान चलाकर इस अवैध प्रथा के खिलाफ लोगों की सोच बदलनी होगी।
9. सामाजिक और आर्थिक पहलू
मैन्युअल स्कैवनजिंग मुख्यतः दलित और कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों द्वारा किया जाता है। उनके पास अन्य रोजगार के विकल्प कम होते हैं, इसलिए वे जोखिम भरे कार्य स्वीकार करते हैं। यह केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समस्या भी है। इसके समाधान के लिए सरकार और समाज को दोनों स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है।
10. निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का आदेश यह स्पष्ट करता है कि मानव जीवन, गरिमा और सुरक्षा सर्वोपरि हैं। दिल्ली PWD पर ₹5 लाख का जुर्माना और FIR की चेतावनी यह संदेश देती है कि किसी भी उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मैन्युअल स्कैवनजिंग की समाप्ति के लिए तकनीकी सुधार, सामाजिक जागरूकता और कड़ी जवाबदेही अनिवार्य है।