सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: दहेज उत्पीड़न कानून (धारा 498A) के दुरुपयोग पर रोक – राजेश शर्मा बनाम राज्य (क्रिमिनल अपील 1265/2017)
परिचय
भारतीय दंड संहिता की धारा 498A का उद्देश्य था विवाहित महिलाओं की रक्षा करना, जिन्हें पति या ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, इसके दुरुपयोग के कई मामले सामने आए हैं, जहाँ झूठे आरोप लगाकर निर्दोष पति और उनके परिवार को फँसाया गया।
इन्हीं स्थितियों को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने राजेश शर्मा बनाम राज्य [Criminal Appeal No. 1265 of 2017] में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, जो धारा 498A के दुरुपयोग पर नियंत्रण लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया।
मामले की पृष्ठभूमि
- मामला: राजेश शर्मा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
- अपील संख्या: क्रिमिनल अपील 1265/2017
- निर्णय की तारीख: 27 जुलाई 2017
- पीठ: न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल एवं न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित
सुप्रीम कोर्ट का मुख्य निष्कर्ष
- झूठे मामलों की बढ़ती संख्या:
कोर्ट ने माना कि IPC की धारा 498A के अंतर्गत दर्ज मामलों की एक बड़ी संख्या बदले की भावना, आपसी विवाद, या शादी में दरार के कारण होती है, और इनमें से कई मामले झूठे पाए गए हैं। - गिरफ्तारी में सावधानी बरतने का निर्देश:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में:- तुरंत गिरफ्तारी न की जाए।
- गिरफ्तारी अंतिम उपाय (last resort) होनी चाहिए, न कि प्रारंभिक कदम।
- फैमिली वेलफेयर कमेटी की स्थापना:
कोर्ट ने निर्देश दिया कि:- प्रत्येक जिले में एक फैमिली वेलफेयर कमेटी (Family Welfare Committee) गठित की जाए।
- जब भी धारा 498A के तहत कोई शिकायत दर्ज हो, तो पहले कमेटी उसकी जांच करे।
- कमेटी द्वारा रिपोर्ट देने तक किसी की गिरफ्तारी न की जाए।
- कमेटी की संरचना और भूमिका:
- यह कमेटी स्वतंत्र और निष्पक्ष होगी।
- इसमें सामाजिक कार्यकर्ता, सेवानिवृत्त अधिकारी, स्वैच्छिक संस्थाओं के सदस्य आदि शामिल हो सकते हैं।
- रिपोर्ट एक महीने के भीतर संबंधित पुलिस अधिकारियों को दी जाएगी।
- पुलिस और न्यायपालिका के लिए दिशा-निर्देश:
- पुलिस अधिकारियों को निर्देशित किया गया कि वे विवेकपूर्ण ढंग से जांच करें और गिरफ्तारी को अंतिम विकल्प मानें।
- न्यायिक मजिस्ट्रेट भी गिरफ्तारी से पूर्व रिपोर्ट और प्रमाणों की समीक्षा करें।
फैसले का प्रभाव
- यह निर्णय न्यायिक संतुलन स्थापित करता है – एक ओर यह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है, तो दूसरी ओर निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को झूठे मुकदमों से बचाता है।
- परिवार संस्था की रक्षा, समाज में शांति, और न्यायिक संसाधनों का दुरुपयोग रोकना इस फैसले के मूल उद्देश्य हैं।
बाद में संशोधन और आलोचना
- बाद में कुछ उच्च न्यायालयों और स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि फैमिली वेलफेयर कमेटी का गठन करना एक प्रशासनिक कार्य है, जिसे विधायिका या कार्यपालिका के अधीन होना चाहिए, न कि न्यायपालिका के आदेश से।
- 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से इस आदेश में संशोधन किया, लेकिन गिरफ्तारी में सावधानी के सिद्धांत को जारी रखा।
निष्कर्ष
राजेश शर्मा बनाम राज्य (2017) का फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में एक संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण लाया। यह निर्णय धारा 498A के दुरुपयोग की रोकथाम के साथ-साथ महिलाओं की वास्तविक सुरक्षा की ज़रूरत को भी मान्यता देता है। यह स्पष्ट संकेत है कि न्याय केवल कानून के प्रावधानों में नहीं, बल्कि उसके विवेकपूर्ण क्रियान्वयन में भी निहित है।