सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: कबीर पहाड़िया को AIIMS में MBBS सीट, दिव्यांगता के अधिकारों की जीत

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: कबीर पहाड़िया को AIIMS में MBBS सीट, दिव्यांगता के अधिकारों की जीत

परिचय

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में कबीर पहाड़िया को ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS), नई दिल्ली में 2025-26 शैक्षणिक सत्र के लिए MBBS पाठ्यक्रम में ‘अनुसूचित जाति-बेंचमार्क दिव्यांगता’ (SC-PwBD) कोटे के तहत सीट आवंटित करने का आदेश दिया। यह निर्णय न केवल कबीर के लिए न्याय है, बल्कि यह दिव्यांगता के अधिकारों और समानता के सिद्धांतों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


मामला और पृष्ठभूमि

कबीर पहाड़िया, जो जन्मजात रूप से दोनों हाथों में कई उंगलियों की अनुपस्थिति और बाएं पैर में विकृति से पीड़ित हैं, ने NEET-UG 2024 परीक्षा में 542 अंक प्राप्त किए और SC-PwBD श्रेणी में 176वीं रैंक हासिल की। हालांकि, नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) के दिशा-निर्देशों के तहत तीन अलग-अलग मेडिकल बोर्डों ने उन्हें ‘अयोग्य’ घोषित किया, जिससे उन्हें MBBS में प्रवेश से वंचित कर दिया गया। दिल्ली उच्च न्यायालय में उनकी याचिका खारिज होने के बाद, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।


सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई 2025 को अपने निर्णय में कहा कि ‘उचित समायोजन’ (Reasonable Accommodation) कोई दया नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि कबीर को MBBS पाठ्यक्रम में प्रवेश से वंचित करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

कोर्ट ने AIIMS, नई दिल्ली में एक पांच-सदस्यीय मेडिकल बोर्ड का गठन किया, जिसने 24 अप्रैल 2025 को अपनी रिपोर्ट में कहा कि कबीर ने आवश्यक चिकित्सीय प्रक्रियाओं जैसे सीपीआर, इंटुबेशन, सुई लगाना और टांके लगाना में दक्षता दिखाई। केवल स्टरलाइज्ड दस्ताने पहनने में उन्हें थोड़ी कठिनाई हुई, जिसे कोर्ट ने ‘तुच्छ’ माना।


कानूनी और संवैधानिक पहलू

कोर्ट ने अपने निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हवाला देते हुए कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों को समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए। इसके अलावा, कोर्ट ने 2016 के ‘दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम’ (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) के तहत ‘उचित समायोजन’ को एक कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता दी।


NMC को निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने NMC को दो महीने के भीतर अपने दिशा-निर्देशों की समीक्षा करने का आदेश दिया, ताकि भविष्य में किसी भी योग्य दिव्यांग उम्मीदवार को MBBS पाठ्यक्रम में प्रवेश से वंचित न किया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि ‘दोनों हाथों का पूर्ण होना’ जैसी शर्तें भेदभावपूर्ण हैं और इन्हें हटाया जाना चाहिए।


निष्कर्ष

यह निर्णय न केवल कबीर पहाड़िया के लिए न्याय है, बल्कि यह दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि दिव्यांगता किसी की क्षमता को निर्धारित नहीं करती, और समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है।