सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय: विवादित तथ्यों से जुड़ी सीमा अवधि (Limitation) की बहस Order VII Rule 11 CPC के तहत नहीं हो सकती

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🕒 सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय: विवादित तथ्यों से जुड़ी सीमा अवधि (Limitation) की बहस Order VII Rule 11 CPC के तहत नहीं हो सकती

लेख:

P. Kumarakurubaran बनाम P. Narayanan & Ors. केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि जब सीमा अवधि (limitation) से जुड़ा प्रश्न विवादित तथ्यों पर आधारित हो, तो ऐसे मुद्दों को वादपत्र खारिज करने की प्रक्रिया (Order VII Rule 11 CPC) के तहत नहीं निपटाया जा सकता।

मामले का संक्षिप्त विवरण:
इस केस में याचिकाकर्ता ने एक दीवानी वाद (civil suit) दायर किया था, जिसे प्रतिवादी (defendants) ने Order VII Rule 11 CPC के तहत खारिज करने की मांग की, यह कहते हुए कि वाद सीमा अवधि से परे (barred by limitation) है। ट्रायल कोर्ट ने वाद को खारिज कर दिया, जिसके खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट तक पहुँची।

मुख्य बिंदु:
🔹 सीमा अवधि का प्रश्न विवादित तथ्यों से जुड़ा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि सीमा अवधि का प्रश्न (जैसे कि वाद कब शुरू हुआ, कौन सी तारीख से गणना की जाए, कोई रुकावट आई या नहीं आदि) विवादित तथ्यों पर आधारित है, तो उसे केवल वादपत्र (plaint) पढ़कर तय नहीं किया जा सकता।
🔹 Order VII Rule 11 CPC की सीमाएँ: कोर्ट ने दोहराया कि Order VII Rule 11 CPC के तहत वाद को तभी खारिज किया जा सकता है, जब वादपत्र के तथ्यों को सही मानने के बाद भी वाद कानूनी रूप से खारिज करने योग्य हो। यदि विवादित तथ्य हैं, तो यह प्रक्रिया नहीं अपनाई जा सकती।
🔹 वादकर्ता को न्याय का अवसर: कोर्ट ने कहा कि वादकर्ता को इस बात का अवसर मिलना चाहिए कि वह विवादित तथ्यों पर साक्ष्य प्रस्तुत कर सके और न्यायालय उन तथ्यों का परीक्षण कर सके।

कानूनी आधार:
➡️ Order VII Rule 11 CPC: वाद पत्र की शुरुआती जांच में केवल उस स्थिति में वाद खारिज किया जा सकता है, जब उसमें स्पष्ट रूप से कोई कानूनी खामी हो, जैसे—विवरण की कमी, वाद अनुचित है, या सीमा अवधि समाप्त हो चुकी हो।
➡️ लेकिन जब सीमा अवधि विवादित तथ्यों पर निर्भर हो, तो कोर्ट को वाद को खारिज करने के बजाय ट्रायल के दौरान उसका परीक्षण करना चाहिए।

न्यायपालिका की मानवीय दृष्टि:
सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि ‘न्याय’ का अर्थ केवल प्रक्रिया का पालन करना नहीं, बल्कि विवादित तथ्यों को सुनना और उसका परीक्षण करना भी है। यदि वादकर्ता को यह अवसर न दिया जाए, तो न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।

निष्कर्ष:
इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि विवादित तथ्यों वाले सीमा अवधि के मामलों में वादपत्र को Order VII Rule 11 CPC के तहत खारिज करना न्यायसंगत नहीं है। इस निर्णय ने ट्रायल कोर्टों और हाई कोर्टों को यह दिशा दी है कि ऐसे मामलों में वाद को सुनवाई के लिए स्वीकार करें और उचित साक्ष्य के आधार पर ही निर्णय लें।