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“सुप्रीम कोर्ट और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)

“सुप्रीम कोर्ट और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): न्याय प्रणाली में तकनीकी क्रांति की ओर एक कदम”

प्रस्तावना

21वीं सदी को यदि “तकनीकी युग” कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence – AI) ने मानव जीवन के हर क्षेत्र में गहरा प्रभाव डाला है — स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्योग, रक्षा और अब न्यायपालिका तक। भारत का सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) भी इस परिवर्तन से अछूता नहीं है। न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता, दक्षता, और त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हाल के वर्षों में AI तकनीकों को अपनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं।

यह लेख सुप्रीम कोर्ट में AI के प्रयोग, उसके लाभ, जोखिम, नैतिक चुनौतियों और भारतीय न्यायिक प्रणाली के भविष्य पर इसके प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।


1. सुप्रीम कोर्ट में AI की शुरुआत

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने AI तकनीक को अपनाने की दिशा में वर्ष 2020 से गंभीर पहलें शुरू कीं। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे (CJI S.A. Bobde) ने “SUPACE (Supreme Court Portal for Assistance in Court Efficiency)” नामक एक AI आधारित प्रणाली लॉन्च की थी।
इसका उद्देश्य न्यायाधीशों की सहायता करना था — न कि उन्हें प्रतिस्थापित करना। यह प्रणाली न्यायाधीशों को केस से संबंधित प्रासंगिक तथ्यों, कानूनी प्रावधानों और पूर्व निर्णयों को शीघ्रता से खोजने में मदद करती है।

AI का यह उपयोग न्यायिक निर्णय प्रक्रिया में सहायक (Assistive) भूमिका निभाता है, जिससे निर्णय की गुणवत्ता और गति दोनों में सुधार होता है।


2. SUPACE: न्यायपालिका में AI का क्रांतिकारी कदम

SUPACE (Artificial Intelligence Portal) का विकास सुप्रीम कोर्ट के IT सेल द्वारा किया गया। यह प्रणाली मशीन लर्निंग (Machine Learning) और प्राकृतिक भाषा संसाधन (Natural Language Processing – NLP) तकनीक का उपयोग करती है।

मुख्य विशेषताएँ:

  • केस फाइलों और दस्तावेज़ों से स्वतः जानकारी निकालना।
  • प्रासंगिक पूर्व निर्णयों (precedents) को पहचानना।
  • न्यायाधीशों को केस सारांश (case summary) प्रस्तुत करना।
  • डेटा एनालिटिक्स के आधार पर समान कानूनी मामलों के सुझाव देना।

इस प्रणाली से न्यायिक कार्य की गति में वृद्धि हुई और केस डिस्पोज़ल (Case Disposal) की प्रक्रिया अधिक प्रभावी बनी।


3. सुप्रीम कोर्ट में AI के उपयोग के उद्देश्य

AI को न्यायिक प्रणाली में शामिल करने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं —

  1. न्याय वितरण की गति बढ़ाना
  2. मानवीय त्रुटियों को कम करना
  3. डिजिटल डेटा प्रबंधन को सुव्यवस्थित करना
  4. जजों को निर्णय में सहायक सामग्री उपलब्ध कराना
  5. पेंडेंसी (Pending Cases) कम करना

भारत में लगभग 5 करोड़ से अधिक मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं। ऐसे में AI की भूमिका न्याय वितरण प्रणाली के लिए एक वरदान सिद्ध हो सकती है।


4. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में न्यायपालिका और AI

भारत के अलावा विश्व के कई देशों ने न्यायिक कार्य में AI को अपनाया है।

  • एस्टोनिया में AI “रोबोट जज” छोटे विवादों के निपटान में प्रयुक्त होता है।
  • चीन में “स्मार्ट कोर्ट सिस्टम” के माध्यम से डिजिटल फैसले दिए जाते हैं।
  • अमेरिका में AI आधारित एल्गोरिदम अपराधियों की पुनरावृत्ति (Recidivism) के आकलन में उपयोग होता है।

इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि AI न केवल भारत बल्कि विश्व स्तर पर न्यायिक प्रणाली को पुनर्परिभाषित कर रहा है।


5. सुप्रीम कोर्ट में AI के लाभ

AI तकनीक ने सुप्रीम कोर्ट को अनेक लाभ प्रदान किए हैं —

(a) निर्णय प्रक्रिया में गति:
AI जजों को प्रासंगिक जानकारी शीघ्र प्रदान करता है जिससे निर्णय शीघ्र दिए जा सकते हैं।

(b) शोध की दक्षता में वृद्धि:
जजों और अधिवक्ताओं को पूर्व निर्णयों, विधानों और कानूनी व्याख्याओं को खोजने में सहायता मिलती है।

(c) पारदर्शिता और समानता:
AI आधारित डेटा विश्लेषण से यह सुनिश्चित होता है कि समान मामलों में समान निर्णय दिए जाएं।

(d) न्यायिक भार में कमी:
AI साधनों के प्रयोग से प्रशासनिक कार्य स्वचालित हो जाते हैं, जिससे जजों को अधिक समय निर्णय के विश्लेषण में मिल पाता है।


6. AI और सुप्रीम कोर्ट की पारदर्शिता

AI का एक बड़ा योगदान न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता (Transparency) लाने का है।
SUPACE, National Judicial Data Grid (NJDG) और e-Courts Project जैसे प्लेटफॉर्म नागरिकों को केस स्टेटस, आदेश और सुनवाई की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध कराते हैं।

AI आधारित विश्लेषण से यह भी ज्ञात किया जा सकता है कि किन अदालतों में कितने केस लंबित हैं और किस प्रकार के मामलों में सबसे अधिक विलंब होता है। यह डेटा नीति निर्माण और न्यायिक सुधार में सहायक होता है।


7. AI और न्यायिक स्वतंत्रता का संतुलन

AI का प्रयोग जहां एक ओर न्यायपालिका को सक्षम बनाता है, वहीं दूसरी ओर न्यायिक स्वतंत्रता (Judicial Independence) पर प्रश्न भी उठाता है।
क्या मशीन द्वारा सुझाया गया निर्णय मानव विवेक से श्रेष्ठ हो सकता है?
क्या जजों की स्वतंत्र सोच पर तकनीकी सुझाव प्रभाव डाल सकते हैं?

इन प्रश्नों के उत्तरों के लिए यह आवश्यक है कि AI को केवल “सहायक साधन” (Assistive Tool) के रूप में प्रयोग किया जाए, न कि निर्णय देने वाले के रूप में।


8. AI के उपयोग में संभावित जोखिम

AI के प्रयोग के साथ कुछ गंभीर नैतिक और कानूनी चिंताएँ भी जुड़ी हैं —

  1. डेटा गोपनीयता (Data Privacy):
    न्यायिक दस्तावेज़ों में संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी होती है। यदि AI सिस्टम असुरक्षित हुआ तो डेटा लीक हो सकता है।
  2. अल्गोरिदमिक पक्षपात (Algorithmic Bias):
    यदि AI को प्रशिक्षित करने वाला डेटा पक्षपाती है, तो उसके परिणाम भी अन्यायपूर्ण हो सकते हैं।
  3. मानवीय विवेक का अभाव:
    AI तार्किक रूप से कार्य करता है, परंतु न्याय केवल तर्क पर नहीं बल्कि मानव संवेदनाओं और नैतिक मूल्यों पर आधारित होता है।
  4. कानूनी उत्तरदायित्व (Liability) का प्रश्न:
    यदि AI की सिफारिश पर गलत निर्णय हो जाए तो जिम्मेदार कौन होगा — न्यायाधीश या AI प्रणाली?

9. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाए गए सुरक्षा उपाय

सुप्रीम कोर्ट ने AI के उपयोग के लिए कई नीतिगत और तकनीकी उपाय अपनाए हैं —

  • डेटा सुरक्षा हेतु एन्क्रिप्शन और साइबर प्रोटोकॉल।
  • मानव नियंत्रण (Human Oversight) की अनिवार्यता।
  • AI सिस्टम का नियमित ऑडिट और मॉनिटरिंग।
  • नैतिक दिशा-निर्देश (Ethical Guidelines) तैयार करने की पहल।

10. AI और भविष्य की न्यायिक प्रणाली

भविष्य में AI भारतीय न्यायिक प्रणाली का एक अभिन्न अंग बन जाएगा।
आने वाले समय में निम्नलिखित क्षेत्र AI द्वारा और अधिक सशक्त होंगे —

  • ई-फाइलिंग और केस ट्रैकिंग
  • स्मार्ट केस प्रेडिक्शन सिस्टम (Predictive Justice)
  • कानूनी दस्तावेज़ों का स्वचालित मसौदा (Automated Drafting)
  • वर्चुअल कोर्ट्स और ऑनलाइन सुनवाई

AI के माध्यम से “न्याय सबके लिए, शीघ्र और सुलभ रूप में” प्राप्त करने का सपना साकार हो सकता है।


11. नैतिक और मानवीय दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि AI न्यायाधीशों का विकल्प नहीं बल्कि सहयोगी उपकरण है।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था —

“AI must assist judges, not replace them.”

इस दृष्टिकोण से स्पष्ट है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय तकनीकी प्रगति और मानवीय विवेक के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।


12. निष्कर्ष

AI और सुप्रीम कोर्ट का गठजोड़ भारतीय न्याय प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन का संकेत है।
जहाँ एक ओर AI पारदर्शिता, दक्षता और न्याय की गति को बढ़ाता है, वहीं दूसरी ओर यह नैतिकता, गोपनीयता और स्वतंत्रता की नई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है।

यदि इन चुनौतियों का समाधान उचित नीतियों, पारदर्शी एल्गोरिदम और मानव निगरानी से किया जाए, तो AI न्यायपालिका को नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकता है।

अंततः कहा जा सकता है —

“कृत्रिम बुद्धिमत्ता न्याय का भविष्य नहीं, बल्कि न्याय के भविष्य का साधन है।”