सुप्रीम कोर्ट : अंतर्निहित अधिकारों (Inherent Powers) का दुरुपयोग नहीं — पहली याचिका खारिज होने के बाद उसी राहत हेतु दूसरी याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती
(धारा 482 CrPC / धारा 528 BNSS के संदर्भ में विस्तृत विश्लेषण)
प्रस्तावना
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में Inherent Powers (अंतर्निहित अधिकार) एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसके तहत उच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह न्याय के हित में किसी भी आदेश को निरस्त या संशोधित कर सके, यदि वह न्याय की प्रक्रिया में बाधक हो। दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 और नई भारत न्याय संहिता (BNSS), 2023 की धारा 528 ने उच्च न्यायालय को इस प्रकार की विशेष शक्तियाँ प्रदान की हैं।
लेकिन यह शक्ति पूर्णतः असीमित नहीं है, और इसका उपयोग तभी किया जा सकता है जब:
- न्याय की रक्षा आवश्यक हो,
- या किसी वैधानिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा हो,
- या न्यायिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने हेतु हस्तक्षेप जरूरी हो।
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि किसी व्यक्ति की पहली याचिका—चाहे वह क्रिमिनल रिट हो या गुहार (petition under 482)—को उच्च न्यायालय ने विचार कर खारिज कर दिया है, तो उसी राहत (same relief) के लिए दूसरी याचिका दायर करना अनुचित और कानून के दुरुपयोग की श्रेणी में आता है।
मामले की पृष्ठभूमि
मामला उस स्थिति से संबंधित था जहाँ एक अभियुक्त ने पहले एक क्रिमिनल रिट याचिका दायर की थी। उसमें उसने आपराधिक आरोपों को रद्द करने (quash करने) की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने मामले के तथ्यों की समीक्षा कर यह याचिका खारिज कर दी।
इसके कुछ समय बाद अभियुक्त ने पुनः उच्च न्यायालय में धारा 482 CrPC / धारा 528 BNSS के तहत एक नई याचिका दायर की, जिसमें उसने लगभग वही राहत माँगी ― अर्थात् उसके विरुद्ध दर्ज FIR और कार्यवाही को निरस्त किया जाए।
उच्च न्यायालय ने इस दूसरी याचिका को स्वीकार करते हुए राहत प्रदान कर दी।
बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, और सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस दूसरे आदेश को गैर-कानूनी और अस्थिर (unsustainable) बताया।
सुप्रीम कोर्ट का मूल प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष निम्न प्रश्न था—
क्या उच्च न्यायालय धारा 482 CrPC / धारा 528 BNSS के अंतर्गत दूसरे चरण में उसी राहत हेतु दूसरी याचिका स्वीकार कर सकता है, जब पहली याचिका पहले ही खारिज की जा चुकी हो?
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट उत्तर था— “नहीं। बिल्कुल नहीं।”
सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ
1. पहले आदेश के बाद दूसरी याचिका ‘Maintainable’ नहीं होती
सुप्रीम कोर्ट ने कहा—
- यदि पहली याचिका विचार करके (after adjudication) खारिज की गई हो,
- तो उसी व्यक्ति द्वारा same cause of action और same relief की मांग करते हुए दूसरी याचिका दाखिल करना Res Judicata जैसी स्थिति उत्पन्न करता है।
यह प्रक्रिया न्यायालय की कार्यवाही का दुरुपयोग (abuse of process of court) है।
2. धारा 482 / 528 की शक्ति व्यापक है, लेकिन असीमित नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने पुनः दोहराया कि:
- उच्च न्यायालय की Inherent Powers केवल न्याय के उद्देश्यों के लिए हैं।
- इन्हें बार-बार एक ही विवाद पर उपयोग नहीं किया जा सकता।
- यदि बार-बार एक ही विवाद पर याचिकाएँ स्वीकार होने लगें, तो न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग बढ़ जाएगा।
3. “Different Label Petition” भी अस्वीकार्य
कई बार लोग पहली याचिका क्रिमिनल रिट के रूप में दायर करते हैं, और दूसरी याचिका 482 CrPC / 528 BNSS के नाम पर दायर करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
सिर्फ आवेदन का ‘नाम’ बदल देने से राहत ‘नई’ नहीं हो जाती है। यदि राहत वही है, तो दूसरी याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती।
4. न्यायालय को दुरुपयोग रोकने का दायित्व
सुप्रीम कोर्ट ने कहा—
न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना होगा कि:
- न्यायिक समय का अपव्यय न हो
- frivolous litigation का अंत हो
- पहले ही निर्णय ले चुके मामलों को बार-बार पुनः न खोला जाए
कानूनी विश्लेषण : क्यों दूसरी याचिका अस्वीकार्य है?
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित हैं—
(A) Res Judicata सिद्धांत का समानांतर प्रयोग
भले ही Res Judicata सिविल मामलों में लागू होती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा—
आपराधिक रिट या 482 याचिकाओं में समान विवाद पर बार-बार याचिकाएँ दायर करना न्यायिक सिद्धांतों के विपरीत है।
(B) Judicial Discipline और Judicial Review के सिद्धांत
उच्च न्यायालय का प्रत्येक आदेश न्यायिक अनुशासन (judicial discipline) के अधीन होता है।
पहले आदेश को अनदेखा करके दूसरा आदेश देना inadvisable और illegal है।
(C) Abuse of Process of Court
जब कोई व्यक्ति दोबारा न्यायालय का दरवाजा उसी उद्देश्य के लिए खटखटाता है:
- न्यायालय का समय बर्बाद होता है
- आरोपियों को अनुचित लाभ मिलता है
- पीड़ित पक्ष या राज्य को अनावश्यक देरी का सामना करना पड़ता है
इसलिए इसे ‘abuse of process’ माना जाता है।
(D) Inherent Powers = Extraordinary Powers
धारा 482 CrPC / धारा 528 BNSS केवल ex debito justiciae (न्याय की मांग) के लिए हैं।
इन्हें नियमित अपील या पुनर्विचार (review) के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश देते हुए कहा—
- उच्च न्यायालय द्वारा दूसरी याचिका स्वीकार करना गलत है।
- दूसरी याचिका कानूनन ‘Maintainable’ नहीं थी।
- पहली याचिका खारिज होने के बाद दूसरी याचिका स्वतः बाधित हो जाती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया।
- मूल आपराधिक कार्यवाही को पुनः बहाल किया गया।
व्यावहारिक निष्कर्ष (Practical Consequences)
इस निर्णय के बाद कानूनी स्थिति और स्पष्ट हो गई है—
पहली याचिका खारिज होने के बाद
same relief के लिए
- न धारा 482 CrPC की याचिका दायर की जा सकती है
- न धारा 528 BNSS की
- न दोबारा Criminal Writ
यदि किसी नई याचिका में नई परिस्थितियाँ (New Circumstances) हों—
तभी वह याचिका विचार योग्य होगी।
परंतु—
- यदि तथ्य वही, FIR वही, relief वही
→ तो दूसरी याचिका स्वतः अस्वीकार्य है।
कानून के छात्रों, वकीलों और न्यायिक परीक्षा के लिए उपयोगी बिंदु
1. अंतर्निहित शक्तियाँ (Inherent Powers) → Limited Exceptional Powers
सिर्फ वहीँ उपयोग जब न्याय की गंभीर आवश्यकता हो।
2. Same Relief + Same Grounds = दूसरी याचिका निरस्त
3. 482 CrPC / 528 BNSS → Appeal या Review का विकल्प नहीं
4. Judicial Discipline का पालन अनिवार्य
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि—
- न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियाँ (Inherent Powers) अत्यंत महत्वपूर्ण हैं,
- परंतु उनका उपयोग कड़े न्यायिक मानकों के अधीन है,
- तथा उन्हें किसी भी प्रकार के दुरुपयोग (misuse) या ‘forum shopping’ का माध्यम नहीं बनाया जा सकता।
इस निर्णय ने यह स्थापित कर दिया कि—
“पहली याचिका के निर्णय के बाद दूसरी समान याचिका दायर करना कानून का दुरुपयोग है।”
यह निर्णय न्यायालय की प्रतिष्ठा, न्यायिक अनुशासन, और निष्पक्ष एवं प्रभावी न्याय प्रणाली को मजबूत करता है।