“सुनवाई में राज्य की गंभीरता अनिवार्य है”: सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के गृह सचिव को निर्देश दिया—‘सुनिश्चित करें कि राज्य के वकील अदालत में उपस्थित हों’
प्रस्तावना
भारत के न्यायिक ढांचे में राज्य सरकारों की भूमिका न केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित है, बल्कि न्यायालयों के समक्ष समय पर, प्रभावी और जिम्मेदार प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना भी उनकी वैधानिक व संवैधानिक जिम्मेदारी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में झारखंड सरकार के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य के गृह सचिव को स्पष्ट निर्देश दिया—“Ensure State’s Lawyers Appear” अर्थात यह सुनिश्चित करें कि राज्य के अधिवक्ता निर्धारित तारीखों पर अदालत में उपस्थित हों और प्रभावी रूप से अपना पक्ष प्रस्तुत करें। यह टिप्पणी न केवल झारखंड सरकार के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है, बल्कि पूरे देश के प्रशासन को इंगित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया में लापरवाही को अब शीर्ष अदालत सहन नहीं करेगी।
यह आदेश एक ऐसे मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया जहाँ बार-बार राज्य सरकार के वकीलों की अनुपस्थिति, अधूरी जानकारी और अनियोजित कार्यशैली के कारण न्यायालय का समय नष्ट हो रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे न केवल “अस्वीकार्य” बताया, बल्कि यह भी कहा कि यदि राज्य न्यायालयों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं करेगा, तो न्यायिक प्रक्रिया बाधित होगी और इसके गंभीर परिणाम होंगे।
मामले की पृष्ठभूमि
यह प्रकरण एक लंबित आपराधिक विवाद के संदर्भ में सामने आया था, जिसमें कई बार सुनवाई के बावजूद राज्य सरकार की ओर से कोई सक्षम अधिकारी या अधिवक्ता अदालत में उपस्थित नहीं हुआ। Supreme Court ने पूर्व की सुनवाई में भी राज्य सरकार को चेतावनी दी थी कि अदालत के समक्ष प्रस्तुत होने में हो रही देरी और जवाबों की अनुपस्थिति न्यायिक प्रक्रिया के प्रति अनादर का प्रतीक है।
इन परिस्थितियों में खंडपीठ ने कड़ा रुख अपनाया और झारखंड के गृह सचिव को व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि भविष्य में राज्य के अधिवक्ता हर सुनवाई में उपस्थित हों और तथ्यात्मक स्थिति अदालत को स्पष्ट रूप से बताएं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी : ‘यह अस्वीकार्य है’
अदालत ने कठोर शब्दों में कहा:
- राज्य यदि अपने मामलों में स्वयं निष्क्रिय रहेगा, तो न्यायालय कैसे आगे बढ़ेगा?
- सरकारी वकीलों की अनुपस्थिति गंभीर प्रशासनिक असफलता है।
- राज्य का दायित्व है कि वह न्यायालय के समक्ष प्रभावी ढंग से प्रस्तुत हो—यह केवल औपचारिकता नहीं है।
अदालत ने कहा कि बार-बार नोटिस भेजने, कई अवसर देने और चेतावनी जारी करने के बाद भी यदि सरकारी पक्ष अदालत में प्रस्तुत नहीं होता, तो यह न केवल न्यायालय के समय की बर्बादी है बल्कि न्यायिक प्रक्रिया के प्रति असम्मान है।
कानूनी महत्व : क्या कहता है कानून?
1. राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी
अनुच्छेद 154 और 162 के अनुसार, राज्य सरकारें कानून का शासन सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी हैं। इसका अर्थ है कि:
- राज्य को अदालतों के समक्ष समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए
- प्रभावी अधिवक्ता नियुक्त करने चाहिए
- मामले की प्रगति का नियमित आकलन करना चाहिए
2. सरकारी अधिवक्ताओं की भूमिका
सरकारी अधिवक्ता न्यायिक प्रक्रिया में राज्य की आंख, कान और मुख होते हैं। उनकी अनुपस्थिति का अर्थ है:
- राज्य के पास अपना पक्ष रखने का अवसर नष्ट होना
- न्यायालय पर एकतरफा सामग्री के आधार पर निर्णय देने का दबाव
- मामले की अनावश्यक लंबाई
3. न्यायालय की शक्तियाँ
Supreme Court को Article 142 और Article 144 के तहत यह अधिकार है कि:
- वह न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी कर सके
- प्रशासन को मार्गदर्शन दे सके
- लापरवाही के मामलों में अधिकारियों को तलब कर सके
अदालत का यह कदम इसी संवैधानिक शक्ति का प्रयोग था।
सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी : ‘अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित होगी’
अदालत ने स्पष्ट कहा कि यदि:
- भविष्य में सरकारी वकील उपस्थित नहीं होते
- राज्य समय पर जवाब दाखिल नहीं करता
- अधूरी जानकारी दी जाती है
तो अदालत कठोर कदम उठाएगी, जिनमें शामिल हो सकते हैं:
- राज्य सरकार पर भारी लागत (costs) लगाना
- जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश देना
- निरंतर अनुपस्थिति की स्थिति में दोषी अधिकारियों को तलब करना
यह चेतावनी बताती है कि सुप्रीम कोर्ट सरकारी तंत्र की लापरवाही को अब गंभीरता से ले रहा है।
विश्लेषण : क्यों आती है राज्य की ओर से बार-बार ऐसी लापरवाही?
1. समन्वय की कमी
अक्सर विभिन्न विभागों में फाइलें अटक जाती हैं, और समय पर अधिवक्ता तक सामग्री नहीं पहुँचती।
2. विशेषज्ञ अधिवक्ताओं की कमी
कई राज्यों में उचित प्रशिक्षण या विशेषज्ञता वाले अधिवक्ताओं की नियुक्ति नहीं होती।
3. निगरानी प्रणाली का अभाव
मामले की प्रगति को ट्रैक करने के लिए कोई मजबूत तंत्र नहीं होता।
4. राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता
कई मामलों को “कम प्राथमिकता” मानकर ढीला रवैया अपना लिया जाता है।
इस मामले ने इन सभी व्यवस्थागत कमजोरियों को उजागर कर दिया।
प्रभाव : निर्णय का व्यापक महत्व
1. राज्य सरकारों के लिए चेतावनी
यह आदेश केवल झारखंड ही नहीं, बल्कि सभी राज्यों पर लागू है। सभी राज्यों को अपने:
- गृह विभाग
- विधि विभाग
- सरकारी अधिवक्ताओं
के बीच समन्वय बढ़ाना होगा।
2. न्यायिक प्रक्रिया की गति बढ़ेगी
समय पर प्रस्तुत होने से:
- मामलों की सुनवाई तेज होगी
- अनावश्यक स्थगन (adjournments) कम होंगे
- न्यायालय का समय बचेगा
3. पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार
अदालत की यह टिप्पणी सरकारी अधिकारियों को यह संदेश देती है कि:
- लापरवाही माफी योग्य नहीं
- जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी
4. पीड़ितों और अभियुक्तों दोनों को लाभ
न्याय की समयबद्धता सुनिश्चित होगी, जिससे दोनों पक्षों को राहत मिलेगी।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश कि “Ensure State’s Lawyers Appear” न केवल एक आदेश है बल्कि सरकारी कार्यप्रणाली के प्रति एक गहरी टिप्पणी भी है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि:
- राज्य की ओर से न्यायिक प्रक्रियाओं का सम्मान अनिवार्य है
- वकीलों की अनुपस्थिति जैसी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी
- गृह सचिव जैसी उच्च अधिकारी स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी
यह निर्णय देश भर की राज्य सरकारों को जागृत करता है कि न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखने में लापरवाही, न केवल प्रशासनिक असफलता है बल्कि संवैधानिक दायित्व का उल्लंघन भी है। आने वाले समय में यह आदेश भारतीय न्याय व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता, जिम्मेदारी और दक्षता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।