प्रश्न:1 सीमित दायित्व साझेदारी (LLP) की विशेषताएँ एवं लाभों की विवेचना कीजिए।
(Discuss the features and advantages of Limited Liability Partnership (LLP).)
परिचय (Introduction):
भारत में पारंपरिक साझेदारी और कंपनी के मध्य एक व्यावसायिक ढांचे की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम, 2008 (Limited Liability Partnership Act, 2008) को पारित किया। यह एक ऐसा ढांचा है जो पारंपरिक साझेदारी की लचीलापन और कंपनी की सीमित दायित्व सुरक्षा को सम्मिलित करता है।
LLP का उद्देश्य एक ऐसा वैकल्पिक व्यवसाय ढांचा उपलब्ध कराना है जिसमें उद्यमियों को सीमित दायित्व और विधिक सुरक्षा के साथ-साथ साझेदारी जैसी स्वतंत्रता भी प्राप्त हो।
I. सीमित दायित्व साझेदारी (LLP) की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features of LLP):
1. अलग विधिक अस्तित्व (Separate Legal Entity):
LLP एक पृथक् विधिक इकाई होती है, जिसका अस्तित्व इसके साझेदारों से स्वतंत्र होता है। यह अपने नाम से संपत्ति रख सकती है, अनुबंध कर सकती है, और कानूनी कार्यवाही कर सकती है।
2. सीमित दायित्व (Limited Liability):
साझेदारों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी LLP के ऋणों या हानियों के लिए नहीं होती। प्रत्येक साझेदार केवल अपनी पूंजी तक ही उत्तरदायी होता है।
3. न्यूनतम साझेदार की आवश्यकता (Minimum Number of Partners):
LLP को आरंभ करने के लिए न्यूनतम दो साझेदार आवश्यक हैं, जबकि अधिकतम की कोई सीमा नहीं है।
4. साझेदारों की परस्पर दायित्वहीनता (Mutual Agency Absent):
पारंपरिक साझेदारी में एक साझेदार अन्य साझेदारों के कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है, किंतु LLP में यह अवधारणा नहीं है।
5. संचालन में लचीलापन (Flexibility in Management):
LLP का संचालन LLP समझौते के अनुसार होता है, जो साझेदारों के बीच आपसी सहमति से तय होता है।
6. निरंतरता (Perpetual Succession):
साझेदारों के बदलने से LLP का अस्तित्व प्रभावित नहीं होता। LLP तब तक चलता रहता है जब तक इसे विधिक रूप से समाप्त नहीं किया जाता।
7. नाम में “LLP” शब्द का प्रयोग (Use of Suffix “LLP”):
कानूनन यह आवश्यक है कि हर LLP के नाम के अंत में “LLP” शब्द जोड़ा जाए जिससे उसके विशेष स्वरूप का संकेत मिले।
8. सरल पंजीकरण प्रक्रिया (Simple Incorporation Process):
LLP की स्थापना प्रक्रिया कंपनी की तुलना में अधिक सरल, तेज़ और कम खर्चीली है।
9. कम अनुपालन आवश्यकताएँ (Less Compliance Burden):
LLP पर कंपनियों के समान कठोर अनुपालन आवश्यकताएँ नहीं लागू होतीं। उन्हें केवल कुछ बुनियादी रिपोर्टिंग और लेखा आवश्यकताओं का पालन करना होता है।
10. डिजिटल फाइलिंग और ROC पंजीकरण:
LLP का पंजीकरण और वार्षिक रिपोर्ट ROC (Registrar of Companies) को इलेक्ट्रॉनिक रूप से दायर की जाती हैं, जिससे प्रक्रिया सरल और पारदर्शी होती है।
II. सीमित दायित्व साझेदारी के लाभ (Advantages of LLP):
1. उद्यमियों के लिए सुरक्षा:
सीमित दायित्व के कारण उद्यमियों की व्यक्तिगत संपत्ति सुरक्षित रहती है। किसी कानूनी विवाद या हानि की स्थिति में केवल LLP की संपत्ति ही प्रभावित होती है।
2. कम प्रारंभिक पूंजी की आवश्यकता:
LLP को शुरू करने के लिए न्यूनतम पूंजी की कोई शर्त नहीं है, जिससे यह छोटे व्यापारियों और स्टार्टअप्स के लिए आदर्श है।
3. व्यवसायिक विश्वसनीयता:
एक पृथक् विधिक इकाई के रूप में कार्य करने से LLP को व्यवसायिक लेन-देन में अधिक मान्यता और विश्वास प्राप्त होता है।
4. कर लाभ (Tax Benefits):
LLP पर लाभांश वितरण कर नहीं लगता और इसे कंपनी की तरह दोहरी कराधान से मुक्त रखा गया है। यह केवल अपने शुद्ध लाभ पर ही कर देता है।
5. पारदर्शिता और नियंत्रण:
LLP को अपनी वित्तीय स्थिति और वार्षिक रिपोर्ट ROC को प्रस्तुत करनी होती है, जिससे व्यवसाय में पारदर्शिता बनी रहती है।
6. विदेशी निवेश की सुविधा (FDI in LLP):
सरकार ने कुछ क्षेत्रों में LLP में 100% FDI की अनुमति दी है, जिससे विदेशी साझेदारों के लिए यह एक आकर्षक ढांचा बनता है।
7. स्वतंत्रता और लचीलापन:
साझेदार LLP समझौते के अनुसार अपने व्यवसाय का संचालन कर सकते हैं। किसी कठोर कानूनी ढांचे की बाध्यता नहीं होती।
8. विलय, अधिग्रहण और परिसमापन की प्रक्रिया स्पष्ट:
LLP का विलय, अधिग्रहण और समाप्ति प्रक्रिया विधिक रूप से सुव्यवस्थित और पारदर्शी होती है, जिससे दीर्घकालिक व्यापार नियोजन आसान होता है।
9. कम लेखा और ऑडिट दबाव:
यदि LLP का कारोबार या पूंजी एक निश्चित सीमा से कम हो, तो ऑडिट की बाध्यता नहीं होती, जिससे प्रशासनिक व्यय घटते हैं।
III. सीमित दायित्व साझेदारी बनाम अन्य व्यावसायिक संरचनाएँ (LLP vs Other Business Structures):
बिंदु | पारंपरिक साझेदारी | निजी कंपनी | सीमित दायित्व साझेदारी (LLP) |
---|---|---|---|
विधिक अस्तित्व | नहीं | है | है |
साझेदारों की जिम्मेदारी | असीमित | सीमित | सीमित |
न्यूनतम सदस्य | 2 | 2 | 2 |
वार्षिक अनुपालना | कम | अधिक | मध्यम |
कराधान | व्यक्तिगत | कंपनी पर | LLP पर |
विश्वास स्तर | कम | अधिक | अधिक |
निष्कर्ष (Conclusion):
सीमित दायित्व साझेदारी (LLP) एक ऐसा आधुनिक व्यापार ढांचा है जो साझेदारी की लचीलता और कंपनी की सुरक्षा का संतुलन प्रदान करता है। यह विशेषकर उन उद्यमियों और पेशेवरों के लिए उपयुक्त है जो सीमित दायित्व की सुविधा के साथ एक संगठित और स्थायी व्यवसाय स्थापित करना चाहते हैं। भारत में LLP की मान्यता से व्यवसाय की संरचना में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया है और यह MSMEs और स्टार्टअप्स के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो रही है।
इस प्रकार, LLP एक व्यवसायिक नवाचार है जो कानूनी सुरक्षा, व्यावसायिक स्वतंत्रता और आर्थिक व्यवहार्यता का अद्भुत संयोजन प्रस्तुत करता है।
यहाँ पर आपके प्रश्न “LLP और पारंपरिक साझेदारी फर्म में क्या अंतर है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।” का बहुत ही विस्तृत (Very Long Type) उत्तर प्रस्तुत किया जा रहा है, जो कि परीक्षा की दृष्टि से उपयुक्त है:
प्रश्न: 2 LLP और पारंपरिक साझेदारी फर्म में क्या अंतर है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
(Differentiate between LLP and Traditional Partnership Firm with examples.)
परिचय (Introduction):
भारत में व्यापार की विभिन्न संरचनाएँ उपलब्ध हैं, जिनमें पारंपरिक साझेदारी फर्म (Traditional Partnership Firm) और सीमित दायित्व साझेदारी (Limited Liability Partnership – LLP) दो प्रमुख रूप हैं।
जहाँ पारंपरिक साझेदारी फर्म भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के अंतर्गत गठित होती है, वहीं LLP का गठन सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम, 2008 के अंतर्गत होता है।
ये दोनों साझेदारी आधारित व्यावसायिक ढांचे हैं, लेकिन दोनों में कई महत्वपूर्ण अंतर हैं, जो उनके कानूनी स्वरूप, दायित्व, संचालन, पंजीकरण, उत्तरदायित्व आदि से संबंधित हैं।
I. LLP और पारंपरिक साझेदारी फर्म के बीच अंतर (Differences between LLP and Traditional Partnership Firm):
क्र. | आधार | पारंपरिक साझेदारी फर्म | सीमित दायित्व साझेदारी (LLP) |
---|---|---|---|
1. | प्रमुख कानून | भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 | सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम, 2008 |
2. | कानूनी स्थिति | यह एक स्वतंत्र कानूनी इकाई नहीं होती। | यह एक पृथक कानूनी इकाई होती है। |
3. | उत्तरदायित्व (Liability) | साझेदारों की जिम्मेदारी असीमित होती है, वे फर्म के ऋणों के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होते हैं। | साझेदारों की जिम्मेदारी सीमित होती है, केवल उनके अंशदान तक। |
4. | पंजीकरण | पंजीकरण वैकल्पिक है, अनिवार्य नहीं। | पंजीकरण अनिवार्य है। बिना पंजीकरण के LLP अस्तित्व में नहीं आता। |
5. | व्यवसाय की निरंतरता | साझेदार की मृत्यु, दिवालिया होने या हटने पर फर्म समाप्त हो सकती है। | LLP का अस्तित्व साझेदारों से स्वतंत्र होता है और यह निरंतर रहता है। |
6. | साझेदारों की परस्पर जिम्मेदारी | एक साझेदार के कार्यों के लिए अन्य साझेदार भी जिम्मेदार होते हैं। | एक साझेदार के कार्यों के लिए अन्य साझेदार जिम्मेदार नहीं होते (No mutual agency)। |
7. | नामकरण | किसी भी नाम से हो सकता है (यदि वह अन्य व्यवसाय से मिलता-जुलता न हो)। | नाम के अंत में “LLP” शब्द का प्रयोग अनिवार्य है। |
8. | प्रबंधकीय लचीलापन | साझेदार आपसी सहमति से संचालन करते हैं, लचीलापन अधिक होता है। | संचालन LLP समझौते द्वारा होता है, अपेक्षाकृत अधिक संरचित ढांचा है। |
9. | कराधान (Taxation) | फर्म के रूप में कराधान होता है, लाभांश कर नहीं लगता। | कंपनी जैसा ही कराधान, लेकिन लाभांश कर नहीं लगता। |
10. | ऑडिट और अनुपालना (Compliance) | केवल कुछ परिस्थितियों में ऑडिट आवश्यक होता है। | कुछ निश्चित सीमाओं से अधिक होने पर ऑडिट आवश्यक हो जाता है। |
11. | विदेशी निवेश (FDI) | विदेशी निवेश की अनुमति नहीं है। | कुछ शर्तों के साथ LLP में FDI की अनुमति है। |
12. | विलय और अधिग्रहण | प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है। | LLP अधिनियम के अंतर्गत स्पष्ट प्रक्रिया है। |
II. उदाहरण द्वारा स्पष्टता (Explanation with Example):
उदाहरण 1 – पारंपरिक साझेदारी फर्म:
मान लीजिए “ABC ट्रेडर्स” नाम की एक साझेदारी फर्म है, जिसमें अजय, बृजेश और चंद्र तीन साझेदार हैं। यदि अजय ने किसी को क्रेडिट पर सामान बेच दिया और वह रकम वापस नहीं आई, तो यदि फर्म के पास उतनी पूंजी नहीं है, तो बाकी दोनों साझेदारों — बृजेश और चंद्र — की व्यक्तिगत संपत्ति से भी उस नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
इस प्रकार, पारंपरिक साझेदारी में असीमित दायित्व होता है और एक साझेदार के कार्य का भार अन्य को भी उठाना पड़ सकता है।
उदाहरण 2 – सीमित दायित्व साझेदारी (LLP):
“XYZ Advisors LLP” एक पंजीकृत LLP है, जिसमें दीपा और ईशा दो साझेदार हैं। यदि दीपा ने किसी क्लाइंट को अनुचित वित्तीय सलाह दी और क्लाइंट ने केस कर दिया, तो LLP ही उत्तरदायी होगी, न कि ईशा की व्यक्तिगत संपत्ति।
इस प्रकार, LLP में एक साझेदार के कार्य का उत्तरदायित्व अन्य साझेदार पर नहीं डाला जाता और उनकी जिम्मेदारी उनके अंशदान तक सीमित रहती है।
III. सारांशात्मक अंतर (Summary of Key Distinctions):
- LLP अधिक आधुनिक, पारदर्शी और कानूनी दृष्टि से सुरक्षित ढांचा है।
- पारंपरिक साझेदारी का ढांचा अधिक लचीला है, किंतु इसमें साझेदारों का दायित्व असीमित होता है।
- LLP वैश्विक व्यवसायिक मानकों के अनुरूप अधिक उपयुक्त है, खासकर पेशेवर सेवाओं, स्टार्टअप्स और मध्यम आकार के उद्यमों के लिए।
निष्कर्ष (Conclusion):
पारंपरिक साझेदारी और LLP दोनों के अपने-अपने लाभ और सीमाएँ हैं। पारंपरिक साझेदारी छोटे व्यवसायों और पारिवारिक व्यवसायों के लिए उपयुक्त हो सकती है, जबकि LLP उन उद्यमियों के लिए बेहतर विकल्प है जो व्यवसायिक सुरक्षा, निवेश आकर्षण, और विधिक संरचना की आवश्यकता महसूस करते हैं।
आज के आधुनिक व्यापारिक परिवेश में, जहाँ जोखिम प्रबंधन और पारदर्शिता आवश्यक है, वहाँ LLP एक अत्यधिक प्रभावी और विश्वसनीय व्यावसायिक ढांचा बन चुका है।
प्रश्न 3. LLP की स्थापना की प्रक्रिया (Incorporation Process) को चरणबद्ध रूप से समझाइए।
सीमित दायित्व साझेदारी (Limited Liability Partnership – LLP) एक आधुनिक और संरचित व्यापार रूप है, जो साझेदारों को सीमित दायित्व प्रदान करता है और साथ ही साझेदारी के ढांचे की लचीलापन भी बनाए रखता है। भारत में LLP की स्थापना सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम, 2008 के तहत की जाती है। LLP की स्थापना की प्रक्रिया कुछ चरणों में बाँटी जा सकती है, जिन्हें नीचे विस्तार से समझाया गया है:
चरण 1: LLP का नाम चयन (Selecting the Name of LLP)
LLP की स्थापना से पहले, सबसे पहला कदम LLP के नाम का चयन करना होता है। यह नाम कंपनी के व्यवसाय के प्रकार और उद्देश्य के अनुरूप होना चाहिए। LLP के नाम में “LLP” शब्द होना आवश्यक है। इसके अलावा, LLP का नाम किसी अन्य पंजीकृत कंपनी या LLP से मेल नहीं खाना चाहिए, ताकि बाद में कानूनी विवाद से बचा जा सके।
- नाम की उपलब्धता की जाँच (Name Availability Check):
चयनित नाम की उपलब्धता के लिए MCA (Ministry of Corporate Affairs) की वेबसाइट पर जा कर नाम की जांच की जाती है। इसके लिए RUN (Reserve Unique Name) आवेदन का उपयोग किया जाता है। RUN के द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि नाम पहले से किसी अन्य कंपनी या LLP के द्वारा पंजीकृत नहीं है।
चरण 2: डिजिटल प्रमाणपत्र (Digital Signature Certificate – DSC) प्राप्त करना
LLP के पंजीकरण की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन होती है, इसलिए Digital Signature Certificate (DSC) की आवश्यकता होती है। सभी पार्टनर्स को इस प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है, क्योंकि LLP के पंजीकरण के लिए दस्तावेजों पर इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है।
- DSC प्राप्त करने की प्रक्रिया:
यह प्रमाणपत्र किसी प्रमाणित एजेंसी द्वारा जारी किया जाता है। पार्टनर का DSC प्राप्त करने के लिए उनकी पहचान और दस्तावेजों की जांच की जाती है।
चरण 3: पैन और TAN के लिए आवेदन (Apply for PAN and TAN)
LLP के लिए पार्सल नंबर (PAN) और टैक्स कटौती खाता संख्या (TAN) की आवश्यकता होती है। इन दोनों के बिना LLP के संचालन में समस्या हो सकती है, क्योंकि ये कर संबंधी कार्यों के लिए अनिवार्य होते हैं।
- PAN के लिए आवेदन:
PAN आवेदन के लिए Form 49A भरना होता है। इसे NSDL के माध्यम से ऑनलाइन प्रस्तुत किया जाता है। - TAN के लिए आवेदन:
TAN का आवेदन Form 49B के माध्यम से किया जाता है। इसे भी NSDL या TRACES के माध्यम से ऑनलाइन प्रस्तुत किया जाता है।
चरण 4: LLP पंजीकरण के लिए आवेदन (Application for LLP Registration)
LLP पंजीकरण के लिए Form 1 (Incorporation Document) का उपयोग किया जाता है। इसमें LLP के नाम, पंजीकरण का पता, उद्देश्य, साझेदारों की जानकारी, और अधिक जानकारी दी जाती है। इस फॉर्म में निम्नलिखित दस्तावेज़ शामिल होते हैं:
- LLP के नाम का चयन (Name Selection)
- साझेदारों की पहचान (Identification of Partners): साझेदारों की आयु, पते, और अन्य पहचान संबंधी जानकारी।
- द्वारा दिए गए दस्तावेज़ (Documents to be Submitted):
- साझेदारों का पहचान प्रमाण (ID Proof of Partners): पहचान पत्र, पैन कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट, आदि।
- पते का प्रमाण (Address Proof): Utility bill, बैंक स्टेटमेंट, आदि।
- दृष्टिकोण (Agreement/Partnership Deed): LLP का समझौता या साझेदारी शर्तों का दस्तावेज।
- Form 2 (Incorporation Form) भरना:
पंजीकरण के लिए एक और फॉर्म Form 2 को भरना होता है। इसमें LLP के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है जैसे कि LLP के उद्देश्य, गतिविधियां, साझेदारों की संख्या आदि। यह फॉर्म MCA पोर्टल पर ऑनलाइन दाखिल किया जाता है।
चरण 5: LLP एग्रीमेंट (LLP Agreement)
LLP के पंजीकरण के बाद, एक LLP एग्रीमेंट तैयार किया जाता है, जो साझेदारों के बीच अधिकारों, कर्तव्यों, लाभों और दायित्वों को स्पष्ट करता है। इस समझौते में निम्नलिखित बिंदुओं का उल्लेख किया जाता है:
- साझेदारों के अधिकार और कर्तव्य
- लाभ और नुकसान का वितरण
- प्रबंधन और संचालन
- साझेदारी का अंत और निपटान प्रक्रिया
यह समझौता साझेदारों द्वारा हस्ताक्षरित किया जाता है और इसकी एक प्रति MCA के पास भेजी जाती है।
चरण 6: पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करना (Obtain Certificate of Incorporation)
सभी आवश्यक दस्तावेजों और आवेदन फॉर्म के सही ढंग से प्रस्तुत होने के बाद, MCA द्वारा LLP को पंजीकरण प्रमाणपत्र (Certificate of Incorporation) जारी किया जाता है। यह प्रमाणपत्र LLP के आधिकारिक रूप से पंजीकृत होने को दर्शाता है। इसके बाद LLP के गठन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
- समयसीमा:
आमतौर पर LLP पंजीकरण की प्रक्रिया में 7-10 कार्यदिवस लगते हैं, हालांकि यह समय अधिक या कम भी हो सकता है, यदि सभी दस्तावेज़ सही और पूर्ण रूप से प्रस्तुत किए गए हों।
चरण 7: LLP के पंजीकरण के बाद आवश्यक कार्य (Post-Incorporation Compliance)
पंजीकरण के बाद, LLP को कुछ अनिवार्य कार्यों को पूरा करना होता है:
- प्रवृत्तियों की रिपोर्टिंग (Filing of Initial Returns):
पंजीकरण के बाद LLP को Form 8 और Form 11 दाखिल करने होते हैं, जो वित्तीय विवरण और साझेदारों की जानकारी प्रस्तुत करते हैं। - वर्तमान बैंक खाता (Opening of Bank Account):
LLP के नाम पर एक व्यापारिक बैंक खाता खोला जाता है। इसके लिए पंजीकरण प्रमाणपत्र, PAN कार्ड, और LLP एग्रीमेंट की आवश्यकता होती है। - कर अनुपालन (Tax Compliance):
LLP को GST (यदि लागू हो) और अन्य संबंधित करों के लिए पंजीकरण करना होता है। इसके अलावा, LLP को आयकर और टीडीएस की रिपोर्टिंग भी करनी होती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
सीमित दायित्व साझेदारी (LLP) की स्थापना की प्रक्रिया एक सरल लेकिन विधिक प्रक्रिया है, जो सही तरीके से अनुपालन करते हुए की जाती है। LLP एक लचीला, सुरक्षित और कानूनी रूप से मजबूत व्यवसाय ढांचा है जो व्यापारियों को सीमित दायित्व, व्यवसाय संचालन में स्वतंत्रता, और पारदर्शिता प्रदान करता है। LLP के गठन के लिए सभी आवश्यक कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि व्यवसाय को कुशलतापूर्वक चलाया जा सके और कानूनी परेशानी से बचा जा सके।
प्रश्न 4: LLP में भागीदारों की देयता (Liability of Partners) के सिद्धांतों की विवेचना कीजिए।
परिचय (Introduction):
सीमित दायित्व साझेदारी (Limited Liability Partnership – LLP) एक आधुनिक व्यापारिक संस्था है, जो कंपनी और पारंपरिक साझेदारी फर्म के गुणों का समावेश करती है। यह संरचना साझेदारों को व्यवसाय में लचीलापन तो देती ही है, साथ ही उन्हें सीमित दायित्व (Limited Liability) का लाभ भी प्रदान करती है। LLP में भागीदारों की देयता (Liability of Partners) से तात्पर्य उस सीमा से है, जिसके अंतर्गत वे संस्था के ऋणों और दायित्वों के लिए उत्तरदायी होते हैं।
LLP Act, 2008 की धारा 27 से 31 तक भागीदारों की देयता का विधिक प्रावधान किया गया है।
LLP में देयता का सामान्य सिद्धांत (General Principle of Liability):
LLP में प्रत्येक साझेदार की देयता केवल उसकी अंशदान (Capital Contribution) या LLP समझौते में निर्धारित सीमा तक ही सीमित होती है। इसका अर्थ यह है कि यदि LLP को कोई ऋण चुकाना है या कोई दायित्व निभाना है, तो साझेदार केवल अपनी अंशदान की राशि तक ही जिम्मेदार होंगे। उनकी व्यक्तिगत संपत्ति को जब्त नहीं किया जा सकता, जब तक कि उन्होंने धोखाधड़ी या अनुचित आचरण न किया हो।
भागीदारों की देयता के प्रमुख सिद्धांत (Key Principles of Partners’ Liability in LLP):
1. सीमित देयता का सिद्धांत (Principle of Limited Liability):
- LLP के प्रत्येक साझेदार की देयता केवल उसकी अंशदान तक सीमित होती है।
- LLP अपने आप में एक अलग विधिक इकाई (Separate Legal Entity) होती है। अतः, LLP के ऋणों के लिए साझेदार व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होते।
उदाहरण:
यदि LLP ने ₹10 लाख का ऋण लिया है, और किसी साझेदार ने ₹2 लाख की पूंजी का योगदान दिया है, तो उसकी अधिकतम देयता ₹2 लाख तक सीमित होगी।
2. एजेंसी सिद्धांत का सीमित प्रयोग (Limited Scope of Agency):
- LLP के प्रत्येक साझेदार केवल LLP के लिए एजेंट होता है, लेकिन वह अन्य साझेदारों के लिए एजेंट नहीं होता।
- यदि कोई साझेदार LLP की अनुमति के बिना कोई अनुबंध करता है, तो उसका दायित्व व्यक्तिगत रहेगा, LLP का नहीं।
धारा 26, LLP Act, 2008:
“हर साझेदार LLP का एजेंट होगा, लेकिन अन्य साझेदारों का नहीं।”
3. धोखाधड़ी की स्थिति में असीमित देयता (Unlimited Liability in Case of Fraud):
यदि कोई साझेदार धोखाधड़ी करता है या किसी अनुचित कार्य में संलिप्त होता है जिससे LLP या तीसरे पक्ष को हानि होती है, तो वह व्यक्तिगत रूप से पूर्ण रूप से उत्तरदायी होता है।
धारा 30, LLP Act, 2008:
यदि यह सिद्ध होता है कि LLP या उसके साझेदार ने धोखाधड़ी से कार्य किया है, तो साझेदार की देयता सीमित नहीं रह जाती बल्कि असीमित हो जाती है।
उदाहरण:
यदि एक साझेदार जानबूझकर गलत बैलेंस शीट प्रस्तुत करता है और बैंक से ऋण प्राप्त करता है, तो वह धोखाधड़ी की श्रेणी में आएगा और उसकी व्यक्तिगत संपत्ति भी ज़ब्त की जा सकती है।
4. LLP की देयता (Liability of LLP Itself):
- LLP की खुद की भी देयता होती है, क्योंकि यह एक अलग कानूनी व्यक्ति होती है।
- यदि कोई ऋण LLP ने लिया है, तो उसका भुगतान LLP की संपत्तियों से होगा, ना कि व्यक्तिगत साझेदारों से (जब तक कि धोखाधड़ी न हुई हो)।
5. निष्क्रिय भागीदार की देयता (Liability of Sleeping or Nominal Partner):
- LLP में ऐसा कोई साझेदार जो व्यापार की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होता, उसे निष्क्रिय साझेदार कहा जाता है।
- उसकी देयता भी उसकी पूंजी तक सीमित होती है, जब तक कि उसने किसी अनुचित कार्य में भाग न लिया हो।
6. तीसरे पक्ष के प्रति उत्तरदायित्व (Liability Towards Third Parties):
- LLP द्वारा की गई कानूनी गतिविधियों के लिए LLP उत्तरदायी होती है।
- यदि कोई साझेदार किसी तीसरे पक्ष को यह विश्वास दिलाता है कि उसका कोई विशेष अधिकार है, और यह अधिकार वास्तव में LLP ने नहीं दिया, तो उस साझेदार की व्यक्तिगत देयता उत्पन्न हो सकती है।
7. साझेदार के निकासी (Cessation) के बाद देयता:
- यदि कोई साझेदार LLP से अलग हो जाता है, तो उसकी देयता तब तक बनी रहती है जब तक कि वह निकासी की सूचना रजिस्ट्रार को नहीं देता और सार्वजनिक रूप से प्रकाशित नहीं करता।
- निकासी के बाद किए गए कार्यों के लिए वह उत्तरदायी नहीं होगा, बशर्ते कि इसकी सूचना सभी संबंधित पक्षों को दी गई हो।
महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टांत (Important Case Laws):
- Deloitte Haskins & Sells LLP v. Union of India (2020)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने LLP के रूप में कार्य कर रही संस्था की सीमित देयता को मान्यता दी, लेकिन कहा कि यदि धोखाधड़ी के प्रमाण मिलते हैं, तो साझेदारों की देयता असीमित की जा सकती है। - CIT v. SRM LLP (2018)
इस मामले में आयकर विभाग ने यह स्पष्ट किया कि LLP की आय अलग मानी जाती है और साझेदारों की देयता करों के लिए सीमित होती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
LLP में साझेदारों की देयता का प्रावधान अत्यंत संतुलित एवं व्यावहारिक है। एक ओर यह उन्हें सीमित दायित्व का सुरक्षा कवच प्रदान करता है, जिससे वे अपनी व्यक्तिगत संपत्ति को जोखिम में डाले बिना व्यापार कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर यदि वे धोखाधड़ी या अनुचित आचरण करते हैं, तो कानून उन्हें पूर्ण रूप से उत्तरदायी ठहराता है।
इस प्रकार LLP का ढांचा पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और सुरक्षा का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है, जो आधुनिक व्यापारिक परिवेश में अत्यंत उपयुक्त एवं आकर्षक विकल्प बन चुका है।
प्रश्न 5: LLP में ‘डिज़िग्नेटेड पार्टनर’ कौन होता है? उसकी भूमिका और दायित्वों पर टिप्पणी कीजिए।
परिचय (Introduction):
सीमित दायित्व साझेदारी (LLP – Limited Liability Partnership) अधिनियम, 2008 के अंतर्गत ‘डिज़िग्नेटेड पार्टनर’ (Designated Partner) का पद एक अत्यंत महत्वपूर्ण और उत्तरदायित्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। जबकि LLP में सभी भागीदार समान रूप से व्यवसाय में सम्मिलित हो सकते हैं, डिज़िग्नेटेड पार्टनर वे विशेष साझेदार होते हैं जिन्हें LLP के विधिक, नियामकीय और प्रशासनिक कर्तव्यों के पालन हेतु उत्तरदायी बनाया जाता है।
परिभाषा (Definition):
LLP Act, 2008 की धारा 7(1) के अनुसार:
“प्रत्येक LLP में कम-से-कम दो साझेदार ऐसे होने चाहिए जिन्हें ‘डिज़िग्नेटेड पार्टनर’ के रूप में नामित किया गया हो।”
सरल शब्दों में:
डिज़िग्नेटेड पार्टनर वे साझेदार होते हैं जो LLP की ओर से कानूनी, वित्तीय और वैधानिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
डिज़िग्नेटेड पार्टनर की नियुक्ति (Appointment of Designated Partner):
- LLP में कम से कम दो डिज़िग्नेटेड पार्टनर होना अनिवार्य है।
- इनमें से कम-से-कम एक भारत में रहने वाला व्यक्ति (Resident in India) होना चाहिए, जो एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 182 दिन भारत में रहा हो।
- डिज़िग्नेटेड पार्टनर को DPIN (Designated Partner Identification Number) प्राप्त करना आवश्यक होता है।
डिज़िग्नेटेड पार्टनर की भूमिका (Role of Designated Partner):
डिज़िग्नेटेड पार्टनर LLP की प्रबंधन और वैधानिक अनुपालन (Statutory Compliance) की प्रक्रिया का संचालन करता है। इनकी भूमिका निम्नलिखित मुख्य कार्यों में देखी जा सकती है:
1. वैधानिक अनुपालन सुनिश्चित करना (Ensuring Statutory Compliance):
- LLP अधिनियम एवं कंपनी कानूनों के अंतर्गत आवश्यक सभी रिटर्न, दस्तावेज़, स्टेटमेंट्स और रिपोर्टों को समय पर रजिस्ट्रार (ROC) को प्रस्तुत करना।
- वित्तीय विवरणों और वार्षिक रिटर्न का दाखिला (Filing of Annual Returns and Statements of Accounts).
2. कर और लेखांकन (Taxation and Accounting):
- टैक्स से जुड़े सभी मामलों की निगरानी करना।
- आवश्यकतानुसार TDS, GST, और अन्य करों का भुगतान और फाइलिंग सुनिश्चित करना।
3. आंतरिक नियंत्रण (Internal Control):
- LLP के संचालन में पारदर्शिता बनाए रखना।
- भागीदारों के बीच विवाद न हों, यह सुनिश्चित करना।
- यदि LLP को विघटित (Winding up) किया जाता है, तो उससे जुड़े वैधानिक कार्यों का संचालन करना।
4. सचिवीय कर्तव्यों का पालन (Secretarial Duties):
- मीटिंग का संचालन और रिकॉर्ड रखना।
- भागीदारों के निर्णयों को दस्तावेज़ीकरण करना।
- LLP समझौते में परिवर्तन होने पर रजिस्ट्रार को सूचित करना।
5. अन्य नियामकीय दायित्व:
- यदि LLP विदेशी निवेश (FDI) प्राप्त करती है, तो RBI और अन्य एजेंसियों के समक्ष अनुपालन करना।
- CSR (Corporate Social Responsibility) संबंधी दायित्व, यदि लागू हों।
डिज़िग्नेटेड पार्टनर के दायित्व (Duties of Designated Partner):
1. ईमानदारी और निष्ठा (Duty of Honesty and Fidelity):
डिज़िग्नेटेड पार्टनर को LLP के हित में कार्य करना होता है, न कि केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए।
2. सूचना देने की बाध्यता (Disclosure Obligations):
यदि किसी डिज़िग्नेटेड पार्टनर का हित किसी अनुबंध या निर्णय में जुड़ा हो, तो उसे स्पष्ट रूप से उस हित की घोषणा करनी होगी।
3. धोखाधड़ी से बचाव (Avoidance of Fraud):
किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी की स्थिति में डिज़िग्नेटेड पार्टनर की देयता असीमित हो जाती है और उसे दंड का भी सामना करना पड़ सकता है।
4. विधिक उत्तरदायित्व (Legal Responsibility):
यदि कोई वैधानिक कर्तव्य समय पर पूरा नहीं होता, जैसे – वार्षिक रिटर्न दाखिल नहीं करना, तो डिज़िग्नेटेड पार्टनर पर व्यक्तिगत रूप से जुर्माना या सज़ा हो सकती है।
डिज़िग्नेटेड पार्टनर का DPIN (Designated Partner Identification Number):
डिज़िग्नेटेड पार्टनर को कार्यभार ग्रहण करने से पहले DPIN (Designated Partner Identification Number) प्राप्त करना आवश्यक है, जो MCA (Ministry of Corporate Affairs) द्वारा जारी किया जाता है। यह प्रक्रिया DIN (Director Identification Number) के समान होती है।
डिज़िग्नेटेड पार्टनर और सामान्य पार्टनर में अंतर (Difference between Designated and General Partner):
आधार | डिज़िग्नेटेड पार्टनर | सामान्य पार्टनर |
---|---|---|
कानूनी दायित्व | वैधानिक अनुपालन के लिए जिम्मेदार | ऐसा कोई विशेष दायित्व नहीं |
पहचान | DPIN आवश्यक | DPIN आवश्यक नहीं |
भूमिका | प्रशासनिक, नियामकीय कार्य | प्रबंधन, निर्णय निर्माण में सहभागिता |
दंड | अनुपालन में विफलता पर दंड संभव | अपेक्षाकृत कम दायित्व |
न्यायिक दृष्टांत (Judicial Perspective):
- Sahara India Real Estate Corp. Ltd. v. SEBI (2012)
– इस केस में कोर्ट ने कंपनी और LLP के डिज़िग्नेटेड व्यक्तियों की वैयक्तिक जवाबदेही को महत्व दिया और कहा कि यदि नियामकीय आदेशों का उल्लंघन होता है तो ऐसे पदाधिकारियों पर सीधा उत्तरदायित्व लागू हो सकता है। - ROC v. DLF Commercial LLP (2020)
– डिज़िग्नेटेड पार्टनर द्वारा समय पर ROC को फॉर्म न सौंपने पर उन पर दंड लागू किया गया।
निष्कर्ष (Conclusion):
डिज़िग्नेटेड पार्टनर LLP की रीढ़ होते हैं, जो संस्था की वैधानिक पहचान, प्रतिष्ठा और संचालन की वैधता सुनिश्चित करते हैं। वे न केवल आंतरिक प्रशासन में बल्कि बाहरी नियामकीय और कानूनी संबंधों में भी LLP के चेहरा होते हैं। यदि डिज़िग्नेटेड पार्टनर अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार, निष्ठावान और सतर्क रहते हैं, तो LLP का संचालन सुचारु, पारदर्शी और कानूनी रूप से सुदृढ़ रहता है।
इस प्रकार डिज़िग्नेटेड पार्टनर LLP के समुचित, उत्तरदायी और विधिक संचालन की आधारशिला हैं।
प्रश्न 6: LLP की पुस्तकों, लेखों और वार्षिक विवरणों के रखरखाव की प्रक्रिया समझाइए।
(Very Long Type Answer)
परिचय (Introduction):
सीमित दायित्व साझेदारी (LLP – Limited Liability Partnership) का एक प्रमुख गुण यह है कि यह एक पृथक कानूनी इकाई होती है, जिसे उसकी वित्तीय पारदर्शिता और वैधानिक अनुपालन बनाए रखने के लिए पुस्तकों, खातों, लेखों और वार्षिक विवरणों का उचित रखरखाव करना होता है। LLP अधिनियम, 2008 और LLP नियम, 2009 के अंतर्गत यह स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट है कि LLP को किस प्रकार अपनी वित्तीय जानकारी और लेखा विवरणों को संरक्षित एवं प्रस्तुत करना चाहिए।
यह प्रक्रिया न केवल विधिक अनिवार्यता है, बल्कि निवेशकों, भागीदारों, ऋणदाताओं एवं शासन संस्थाओं के प्रति पारदर्शिता और विश्वास का भी आधार है।
1. लेखा पुस्तकों का रखरखाव (Maintenance of Books of Account):
कानूनी प्रावधान (Section 34 of LLP Act, 2008):
LLP को प्रत्येक वर्ष की समाप्ति पर वित्तीय विवरणों और पुस्तकों का रखरखाव करना अनिवार्य है, ताकि LLP की आर्थिक स्थिति और लेन-देन का स्पष्ट लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जा सके।
मुख्य बिंदु:
- LLP को चालू लेखा प्रणाली (Double Entry System of Accounting) के आधार पर अपनी लेखा पुस्तकें बनाए रखनी चाहिए।
- यह पुस्तकों को पंजीकृत कार्यालय पर रखना आवश्यक होता है।
- LLP को अपनी कमाई, खर्च, संपत्ति और देनदारियों का स्पष्ट विवरण रखना होता है।
उदाहरण:
LLP “A&B LLP” यदि किसी वर्ष में ₹10 लाख का व्यवसाय करती है, तो उसे उस वर्ष की आय, व्यय, बैंक रसीदें, चालान, रसीद और भुगतानों का समुचित रिकॉर्ड रखना होगा।
2. वित्तीय विवरण (Statement of Account and Solvency):
दाखिले की अनिवार्यता (Filing Requirement):
- प्रत्येक LLP को प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत से 6 महीने के भीतर एक “Statement of Account and Solvency” (Form 8) दाखिल करना होता है।
- यह विवरण यह दर्शाता है कि LLP की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ है या नहीं, अर्थात क्या वह अपनी देनदारियों को चुकाने में सक्षम है।
मुख्य जानकारी:
- पूंजी और देनदारी का विवरण
- कुल संपत्ति और कुल देनदारी
- आय और व्यय विवरण
- सॉल्वेंसी (Solvency) की घोषणा
समय-सीमा:
- Form 8 की अंतिम तिथि: वित्तीय वर्ष के अंत के 6 महीने के भीतर (अर्थात 30 अक्टूबर तक, यदि वर्ष 31 मार्च को समाप्त हुआ हो)।
उदाहरण:
“X&Y LLP” को यदि मार्च 2024 में अपना वित्तीय वर्ष समाप्त हुआ, तो उसे 30 अक्टूबर 2024 तक Form 8 दाखिल करना अनिवार्य है।
3. वार्षिक विवरण (Annual Return – Form 11):
कानूनी प्रावधान:
- LLP अधिनियम की धारा 35 के अनुसार, प्रत्येक LLP को Form 11 के माध्यम से एक वार्षिक विवरण दाखिल करना होता है।
Form 11 में समाविष्ट विवरण:
- LLP के सभी सक्रिय भागीदारों की सूची
- उनकी पूंजी में हिस्सेदारी
- LLP का पता, DPIN, LLPIN आदि विवरण
- LLP समझौते में परिवर्तन (यदि कोई हुआ हो)
दाखिले की समय-सीमा:
- Form 11 की अंतिम तिथि: वित्तीय वर्ष के समाप्त होने के 60 दिन के भीतर (अर्थात 30 मई तक, यदि वर्ष 31 मार्च को समाप्त हुआ हो)
4. लेखा परीक्षा (Audit of Accounts):
नियम:
- यदि किसी LLP का वार्षिक कारोबार ₹40 लाख से अधिक हो, या उसका पूंजी योगदान ₹25 लाख से अधिक हो, तो उसकी लेखा पुस्तकों का लेखा परीक्षण (Audit) करवाना अनिवार्य है।
लेखा परीक्षक की नियुक्ति:
- LLP को किसी योग्य चार्टर्ड अकाउंटेंट को लेखा परीक्षक (Auditor) के रूप में नियुक्त करना होता है।
- लेखा परीक्षक वित्तीय विवरणों की जांच कर सत्यापन करता है कि वे सही और निष्पक्ष हैं।
उदाहरण:
“AB Tech LLP” का कारोबार ₹65 लाख है, अतः यह लेखा परीक्षा के अंतर्गत आएगी और उसे ऑडिट रिपोर्ट भी दाखिल करनी होगी।
5. पुस्तकों का संरक्षण (Preservation of Books):
- LLP को अपनी लेखा पुस्तकों और वित्तीय विवरणों को कम-से-कम 8 वर्षों तक संरक्षित (Preserved) रखना होता है।
- ये दस्तावेज़ निरीक्षण और वैधानिक जांच के दौरान नियामक एजेंसियों को प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
6. गैर-अनुपालन पर दंड (Penalties for Non-Compliance):
यदि LLP समय पर उपरोक्त विवरणों को दाखिल नहीं करती या गलत जानकारी प्रस्तुत करती है, तो LLP और उसके डिज़िग्नेटेड पार्टनर पर वित्तीय जुर्माना या अन्य विधिक कार्रवाई हो सकती है।
प्रकार | जुर्माना |
---|---|
Statement of Account and Solvency में देरी | ₹100 प्रतिदिन की देरी पर |
Annual Return में देरी | ₹100 प्रतिदिन की देरी पर |
जानबूझकर झूठी जानकारी | ₹1 लाख से ₹5 लाख तक का जुर्माना और संभवतः कारावास |
7. LLP की पुस्तकों का निरीक्षण (Inspection of LLP Records):
- कोई भी व्यक्ति, उचित शुल्क देकर, ROC के पास LLP के रिकॉर्ड जैसे Form 8 और Form 11 को देख सकता है।
- यह व्यवस्था LLP की पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए है।
8. तकनीकी दृष्टिकोण:
MCA पोर्टल पर ऑनलाइन फाइलिंग:
- सभी फॉर्म्स जैसे Form 8, Form 11, और Auditor Appointment आदि MCA (Ministry of Corporate Affairs) की वेबसाइट पर ऑनलाइन फाइल किए जाते हैं।
डिजिटल हस्ताक्षर (DSC):
- डिज़िग्नेटेड पार्टनर को इन फॉर्म्स पर DSC (Digital Signature Certificate) के माध्यम से हस्ताक्षर करना होता है।
निष्कर्ष (Conclusion):
LLP के सफल और विधिसंगत संचालन के लिए लेखा पुस्तकों, वार्षिक विवरणों और खातों का नियमित, सटीक और पारदर्शी रखरखाव अत्यंत आवश्यक होता है। यह न केवल वैधानिक आवश्यकता है बल्कि व्यावसायिक प्रतिष्ठा, ऋण प्राप्ति, और निवेशकों के विश्वास के लिए भी आवश्यक है। निर्धारित समय-सीमाओं और नियमों का पालन करके LLP एक सशक्त, उत्तरदायी और कानूनी रूप से सुरक्षित संस्था बन सकती है।
इस प्रकार, लेखा पुस्तकों और वार्षिक विवरणों का रखरखाव LLP की नींव को मजबूत करता है और उसे दीर्घकालिक सफलता की ओर ले जाता है।
प्रश्न 7: LLP के विघटन (Dissolution) और समाप्ति की प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।
परिचय (Introduction):
सीमित दायित्व साझेदारी (LLP – Limited Liability Partnership) एक पृथक कानूनी इकाई होती है, जिसकी स्थापना की तरह उसकी समाप्ति (Winding Up) और विघटन (Dissolution) भी एक कानूनी प्रक्रिया होती है। LLP के संचालन में जब व्यवसाय उद्देश्य पूरे हो जाते हैं, या साझेदार इसे जारी नहीं रखना चाहते, अथवा कानूनी या वित्तीय कारणों से इसे समाप्त करना हो, तब LLP को विघटित (Dissolve) किया जाता है।
LLP का विघटन दो प्रमुख तरीकों से हो सकता है:
- स्वैच्छिक विघटन (Voluntary Winding Up)
- न्यायालय के आदेश द्वारा विघटन (Compulsory Winding Up)
इन दोनों प्रक्रियाओं को LLP अधिनियम, 2008 और LLP Winding Up Rules, 2012 के तहत विस्तार से विनियमित किया गया है।
1. स्वैच्छिक विघटन (Voluntary Winding Up):
यह वह प्रक्रिया है जब LLP के साझेदार स्वयं निर्णय लेते हैं कि वे LLP को आगे नहीं चलाना चाहते।
मुख्य कारण:
- व्यवसाय उद्देश्य पूर्ण हो जाना
- साझेदारों की आपसी सहमति से
- लाभहीन या निष्क्रिय LLP
- संचालन में अनिच्छा
चरणबद्ध प्रक्रिया:
(i) प्रस्ताव पारित करना (Passing of Resolution):
- LLP के कम-से-कम 3/4 भागीदारों (partners) की सहमति से एक विशेष प्रस्ताव (Special Resolution) पारित किया जाता है।
- प्रस्ताव पारित होने के 30 दिनों के भीतर ROC को Form 1 में सूचना देनी होती है।
(ii) कर्ज़दारों की सहमति (Creditors’ Consent):
- यदि LLP के ऋण हैं, तो सभी कर्ज़दारों से सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है।
- यदि कर्ज़दार सहमत हों कि LLP की संपत्ति सभी देनदारियों को चुकाने के लिए पर्याप्त है, तो विघटन की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है।
(iii) परिसमापक (Liquidator) की नियुक्ति:
- LLP को एक परिसमापक (Liquidator) नियुक्त करना होता है, जो सभी संपत्तियों को बेचकर ऋण चुकाता है और बची राशि साझेदारों में बाँटता है।
- Liquidator की नियुक्ति ROC और ट्रिब्यूनल को सूचित करनी होती है।
(iv) परिसमापन की रिपोर्ट (Final Report):
- जब सभी दायित्व समाप्त हो जाएं, तो Liquidator एक Final Report तैयार करता है, जिसे ROC को दाखिल किया जाता है (Form 9)।
(v) विघटन प्रमाणपत्र (Dissolution Certificate):
- ROC सभी कागज़ात की समीक्षा के बाद LLP को समाप्त (Dissolved) घोषित करता है और एक विघटन प्रमाणपत्र (Dissolution Certificate) जारी करता है।
2. अनिवार्य विघटन (Compulsory Winding Up):
यह प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब LLP को न्यायाधिकरण (NCLT) के आदेश द्वारा समाप्त किया जाता है।
कारण:
- LLP ने 1 वर्ष या अधिक समय तक कोई व्यवसाय नहीं किया हो।
- LLP वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त हो।
- LLP विधि के विरुद्ध कार्य कर रही हो।
- LLP की निरंतर हानि और दिवालियापन की स्थिति।
- LLP 5 वर्षों तक आवश्यक विवरण (Form 8, Form 11) दाखिल न करे।
- सार्वजनिक हित में विघटन आवश्यक हो।
प्रक्रिया:
(i) याचिका दायर करना:
- विघटन के लिए याचिका निम्नलिखित द्वारा NCLT में दायर की जा सकती है:
- LLP स्वयं
- किसी भागीदार द्वारा
- कर्ज़दाता
- ROC
- केंद्र सरकार
(ii) न्यायाधिकरण द्वारा सुनवाई:
- NCLT याचिका की समीक्षा करता है, पक्षों को सुनता है और यदि आवश्यक समझे तो विघटन का आदेश पारित करता है।
(iii) परिसमापक की नियुक्ति:
- न्यायाधिकरण एक आधिकारिक परिसमापक (Official Liquidator) को नियुक्त करता है।
(iv) परिसमापन कार्यवाही:
- परिसमापक संपत्ति का मूल्यांकन और निपटान करता है, कर्ज चुकाता है, और रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
(v) विघटन आदेश:
- अंतिम रिपोर्ट स्वीकार होने के बाद NCLT LLP को विघटित घोषित करता है और ROC को सूचना देता है।
(vi) ROC द्वारा अंतिम निष्कर्ष:
- ROC LLP के नाम को रजिस्टर से हटा देता है और Dissolution Notice जारी करता है।
3. LLP समाप्ति के बाद परिणाम (Consequences After Dissolution):
- LLP की कानूनी स्थिति समाप्त हो जाती है।
- सभी अधिकार, कर्तव्य, दायित्व और साझेदारी संबंधी अनुबंध स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
- संपत्तियाँ परिसमापन में उपयुक्त रूप से निपटाई जाती हैं।
- साझेदारों को अंतिम निपटान राशि प्राप्त होती है (यदि कोई बची हो)।
4. LLP को निष्क्रिय मानकर स्वतः समाप्ति (Striking Off):
यदि LLP 2 वर्षों तक निष्क्रिय रही हो और उसके पास कोई देनदारी न हो, तो वह Form 24 द्वारा ROC से अपना नाम रजिस्टर से हटाने का अनुरोध कर सकती है।
शर्तें:
- कोई बकाया नहीं होना चाहिए
- सभी विवरण दाखिल हो चुके हों
- सभी साझेदारों की सहमति हो
5. कानूनी दस्तावेज़ और फॉर्म (Relevant Forms):
फॉर्म संख्या | उद्देश्य |
---|---|
Form 1 | विघटन प्रस्ताव की सूचना |
Form 6 | कर्ज़दारों की सहमति |
Form 7 | परिसमापक की नियुक्ति |
Form 9 | अंतिम रिपोर्ट |
Form 24 | LLP का नाम हटाने हेतु आवेदन |
Form 11/8 | सभी वार्षिक विवरण दाखिल होने चाहिए |
6. गैर-अनुपालन पर दंड (Penalties for Non-compliance):
- यदि LLP बिना विघटन प्रक्रिया पूर्ण किए कार्य करना बंद कर देती है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।
- ROC स्वतः उस LLP को Struck off कर सकता है, लेकिन भागीदारों की व्यक्तिगत देयता बनी रह सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
LLP का विघटन एक प्रशासनिक, कानूनी और वित्तीय रूप से जटिल प्रक्रिया होती है, जिसे तय मानदंडों के अनुसार करना अनिवार्य होता है। व्यवसाय की समाप्ति के समय यदि विघटन की प्रक्रिया पारदर्शिता और विधिक व्यवस्था के अनुसार की जाए, तो LLP और उसके भागीदार भविष्य में किसी भी कानूनी अड़चन से बच सकते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि व्यवसाय की समाप्ति के बाद भी उसके समस्त उत्तरदायित्वों और हितधारकों के हितों की रक्षा की गई है।
अतः, LLP का विधिपूर्ण विघटन एक उत्तरदायी व्यवसायिक निर्णय और कानूनी कर्तव्य है।
प्रश्न 8: LLP अधिनियम, 2008 के तहत अपराध और दंड से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
भूमिका (Introduction):
सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम, 2008 (Limited Liability Partnership Act, 2008) भारत में LLP के निर्माण, विनियमन और संचालन के लिए एक विशेष विधिक ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत LLP को एक पृथक कानूनी इकाई के रूप में मान्यता दी गई है, जिसकी जिम्मेदारियों, कर्तव्यों और कार्यविधियों को स्पष्ट किया गया है।
LLP अधिनियम, 2008 के तहत कुछ कर्तव्यों और अनुपालनों का उल्लंघन करने पर अपराध (Offences) और उनके लिए उपयुक्त दंड (Penalties) निर्धारित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य LLP के संचालन को विधिसम्मत और पारदर्शी बनाए रखना है।
1. अपराधों की प्रकृति (Nature of Offences under LLP Act, 2008):
LLP अधिनियम के अंतर्गत मुख्यतः दो प्रकार के अपराध माने जाते हैं:
- सांविधिक (Statutory) अपराध – जैसे विवरणों की अनुपूर्ति, वित्तीय विवरणों का गलत प्रस्तुतिकरण, आदि।
- धोखाधड़ी आधारित (Fraud-based) अपराध – जैसे जानबूझकर गलत जानकारी देना, सार्वजनिक को धोखा देना, आदि।
इन अपराधों के लिए अधिनियम में विभिन्न दंडात्मक प्रावधान दिए गए हैं।
2. प्रमुख अपराध और उनके लिए निर्धारित दंड:
(1) गलत या मिथ्या विवरण देना (False Statement) – धारा 37:
अपराध:
यदि कोई व्यक्ति LLP अधिनियम के अंतर्गत कोई ऐसा दस्तावेज, फॉर्म, विवरण आदि प्रस्तुत करता है जो मिथ्या, भ्रामक या झूठे तथ्यों पर आधारित हो।
दंड:
- जेल: 2 वर्ष तक की सजा
- जुर्माना: ₹1 लाख से ₹5 लाख तक
(2) धोखाधड़ी से संबंधित अपराध (Fraudulent Activities) – धारा 30:
अपराध:
यदि कोई LLP या उसके भागीदार, किसी व्यक्ति को धोखे से धन, सेवा या लाभ प्रदान करने हेतु झूठी या भ्रामक जानकारी दें।
दंड:
- जेल: न्यूनतम 6 माह से लेकर अधिकतम 10 वर्ष तक
- जुर्माना: ₹50,000 से ₹5 लाख तक
- Note: यदि धोखाधड़ी सार्वजनिक के हित के विरुद्ध हो, तो न्यूनतम सजा 3 वर्ष से कम नहीं होगी।
(3) वार्षिक विवरणों की अनुपूर्ति – धारा 35 और 34:
अपराध:
LLP द्वारा वार्षिक विवरण (Form-11), स्टेटमेंट ऑफ अकाउंट (Form-8) नियत समय में दाखिल न करना।
दंड:
- जुर्माना: ₹100 प्रतिदिन (प्रत्येक दस्तावेज के लिए)
- अधिकतम दंड: ₹1 लाख तक LLP पर और ₹50,000 तक प्रत्येक जिम्मेदार पार्टनर पर
(4) LLP का नाम उपयोग में लाने का दुरुपयोग – धारा 20:
अपराध:
अन्य LLP के नाम से मिलते-जुलते या भ्रामक नाम का उपयोग करना।
दंड:
- LLP को नाम बदलने का निर्देश
- निर्देश का पालन न करने पर प्रतिदिन ₹10,000 तक जुर्माना, अधिकतम ₹5 लाख
(5) निवारण आदेश का उल्लंघन – धारा 25:
अपराध:
यदि कोई व्यक्ति LLP से संबंधित सूचना, साझेदारों के नाम आदि को अद्यतन न करे या गलत जानकारी दे।
दंड:
- ₹10,000 जुर्माना
- जारी रहने पर ₹100 प्रतिदिन अतिरिक्त जुर्माना, अधिकतम ₹1 लाख
(6) बही-खातों और खातों के विवरण का उल्लंघन – धारा 34:
अपराध:
यदि LLP अपने खातों की पुस्तकों को सही रूप से न रखे या लेखा विवरण समय पर न दाखिल करे।
दंड:
- ₹25,000 से ₹5 लाख तक का जुर्माना LLP पर
- ₹10,000 से ₹1 लाख तक प्रत्येक उत्तरदायी साझेदार पर
(7) न्यायालय के आदेश का उल्लंघन – धारा 74:
अपराध:
यदि LLP या साझेदार, न्यायालय अथवा अधिकृत अधिकारी के आदेश की अवहेलना करते हैं।
दंड:
- ₹50,000 तक जुर्माना
- जारी रहने पर प्रतिदिन ₹500 का जुर्माना, अधिकतम ₹5 लाख
3. गैर-अनुपालन की स्थिति में ROC द्वारा कार्रवाई:
- रजिस्ट्रार ऑफ कंपनिज़ (ROC) को यह अधिकार है कि वह किसी भी LLP को नोटिस जारी कर अनुपालन की मांग कर सकता है।
- लगातार गैर-अनुपालन पर LLP को Struck Off किया जा सकता है।
- भागीदारों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय की जा सकती है।
4. दंडात्मक कार्यवाही में सुधार (Amendments & Decriminalization):
2021 में हुए LLP (Amendment) Act, 2021 के तहत कई अपराधों को दंडनीय से केवल आर्थिक दंड (civil penalties) में बदला गया, जैसे:
- वार्षिक विवरण दाखिल न करना
- नाम के उल्लंघन से संबंधित प्रावधान
- साझेदारों की जानकारी अद्यतन न करना
इस संशोधन का उद्देश्य था – Ease of Doing Business को बढ़ावा देना और LLP को एक व्यवहारिक व्यावसायिक ढांचा बनाना।
5. संक्षिप्त तालिका: अपराध और दंड
अपराध | दंड |
---|---|
गलत विवरण देना | 2 वर्ष कारावास + ₹1–5 लाख जुर्माना |
धोखाधड़ी | 6 माह – 10 वर्ष कारावास + ₹50,000–₹5 लाख जुर्माना |
विवरण दाखिल न करना | ₹100 प्रतिदिन (अधिकतम ₹1 लाख) |
गलत नाम उपयोग | ₹10,000 प्रतिदिन (अधिकतम ₹5 लाख) |
आदेश का उल्लंघन | ₹50,000 + ₹500 प्रतिदिन |
बही-खाता उल्लंघन | ₹25,000–₹5 लाख (LLP पर), ₹10,000–₹1 लाख (साझेदार पर) |
निष्कर्ष (Conclusion):
LLP अधिनियम, 2008 का अपराध और दंड संबंधी ढांचा LLP को विधिसम्मत, पारदर्शी और उत्तरदायी रूप से संचालित करने हेतु बाध्य करता है। जहां गंभीर अपराधों जैसे धोखाधड़ी पर कड़ी सजा का प्रावधान है, वहीं सामान्य गैर-अनुपालनों के लिए आर्थिक दंड निर्धारित किए गए हैं।
LLP अधिनियम की यह विशेषता इसे अन्य व्यापारिक संरचनाओं से अलग बनाती है और साथ ही यह व्यवसाय में पारदर्शिता और भरोसे को भी सुनिश्चित करती है। भागीदारों को चाहिए कि वे सभी कानूनी अनुपालनों का समय पर पालन करें, ताकि LLP की स्थिरता, विश्वसनीयता और विधिक वैधता बनी रहे।
इस प्रकार, LLP अधिनियम का दंडात्मक ढांचा उत्तरदायित्व, पारदर्शिता और विधिक अनुपालन के सिद्धांतों पर आधारित है।