“सीमित उत्तराधिकारी की मृत्यु के बाद 12 वर्षों के भीतर वाद दायर न करने पर वाद खारिज: उच्चतम न्यायालय का निर्णायक फैसला”
विस्तृत विश्लेषण:
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि “सीमित उत्तराधिकारी” (Limited Heir), जैसे कि विधवा, की मृत्यु के बाद पुनरावर्तक (Reversioner) को 12 वर्षों के भीतर स्वामित्व की घोषणा (Declaration of Title) और कब्जे (Possession) के लिए वाद दायर करना अनिवार्य है। यदि यह अवधि पार हो जाती है, तो वाद सीमाबद्धता अधिनियम (Limitation Act) के तहत समय-सीमा से परे (Time-Barred) माना जाएगा।
📌 प्रमुख कानूनी बिंदु:
- प्रकरण का प्रकार:
- द्वितीय अपील (Second Appeal)
- शीर्षक की घोषणा हेतु वाद (Suit for Declaration of Title)
- कब्जे हेतु वाद (Suit for Possession)
- प्रासंगिक विधिक प्रावधान:
- सीमाबद्धता अधिनियम, 1963 (Limitation Act, 1963)
- अनुच्छेद 58 (Article 58) – घोषणा के लिए वाद की सीमा
- अनुच्छेद 65 (Article 65) – कब्जे के लिए वाद की सीमा
- धारा 27 (Section 27) – अधिकार के समाप्त होने से संबंधित
- सीमाबद्धता अधिनियम, 1963 (Limitation Act, 1963)
- न्यायिक प्रक्रिया:
- ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत ने वाद को खारिज कर दिया था।
- उच्च न्यायालय ने उन निर्णयों को पलटते हुए वादी के पक्ष में निर्णय दिया।
- परंतु, उच्चतम न्यायालय ने माना कि विधवा की मृत्यु के 12 वर्ष पश्चात वाद दायर किया गया, अतः वह समयबद्ध नहीं था।
- उच्च न्यायालय की सीमा अवधि पर विचार न करने की त्रुटि के कारण उसका निर्णय रद्द किया गया।
- न्यायालय की टिप्पणी:
- न्यायिक प्रक्रिया में सीमा अवधि (Limitation) का अनुपालन अनिवार्य है।
- पुनरावर्तक (reversioner) के दावे यदि विधवा की मृत्यु के 12 वर्ष के बाद दायर किए जाएँ, तो वे वैध नहीं माने जाएंगे।
- देर से न्याय की मांग, न्याय नहीं मानी जा सकती।
🔍 न्यायालय का निष्कर्ष:
- उच्च न्यायालय का निर्णय निरस्त किया गया।
- ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत के निर्णय पुनः स्थापित किए गए।
- अपील स्वीकार की गई।