शीर्षक: “सीमांकन अधिनियम की धारा 27 के अंतर्गत प्रतिकूल कब्जा (Adverse Possession) का दावा तभी टिकाऊ जब सच्चे स्वामी का स्वामित्व स्वीकार किया जाए: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय – Dagdabhai (D) बनाम अब्बास, 2017”
मामला: Dagdabhai (Dead) Through LRs v. Abbas
निर्णय वर्ष: 2017
संदर्भ:
- 2017 (5) Scale 22
- 2017 (3) ALT 17
- 2017 (3) Recent Apex Judgments 455
प्रासंगिक कानून: - सीमांकन अधिनियम, 1963 (Limitation Act, 1963)
- धारा 27, अनुच्छेद 65 एवं 66
- विषय: Adverse Possession (प्रतिकूल कब्जा)
🧾 मामले की पृष्ठभूमि:
इस विवाद में प्रतिवादी (defendant) ने ज़मीन पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहा कि या तो वह वास्तविक स्वामी (true owner) है या फिर उसने वह संपत्ति प्रतिकूल कब्जा (adverse possession) के द्वारा प्राप्त की है।
सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि क्या प्रतिवादी वास्तविक स्वामी होने का दावा असफल होने के बाद adverse possession के आधार पर स्वामित्व प्राप्त कर सकता है।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:
- प्रतिकूल कब्जे का दावा करने वाले पर ही साक्ष्य का भार होता है:
“The burden to prove adverse possession is on the person who pleads it.” (पराग्राफ 18 & 21)
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सीमांकन अधिनियम की धारा 27 और अनुच्छेद 65 के अनुसार कब्जे की प्रकृति, अवधि और सुसंगतता को साबित करना प्रतिवादी की जिम्मेदारी है। - Adverse Possession का दावा तभी मान्य जब असली स्वामी का स्वामित्व स्वीकार किया जाए:
“A person claiming title by adverse possession must necessarily admit the title of the true owner.” (पराग्राफ 22 & 23)
यदि कोई व्यक्ति खुद को ही असली मालिक बताता है, और फिर वैकल्पिक रूप से प्रतिकूल कब्जे का दावा करता है, तो यह दोनों बातें एक-दूसरे के विपरीत (inconsistent) मानी जाएंगी। - इस मामले में प्रतिवादी असफल रहा:
प्रतिवादी ने पहले खुद को संपत्ति का वास्तविक स्वामी बताया लेकिन वह इस स्वामित्व को सिद्ध नहीं कर सका। फिर उसने adverse possession की दलील दी, जो असंगत मानी गई क्योंकि उसने पहले ही सच्चे स्वामी के अस्तित्व को नकार दिया था।
📌 न्यायिक निष्कर्ष:
- यदि प्रतिवादी पहले खुद को मालिक मानता है, और बाद में adverse possession की दलील देता है, तो यह दोनों दावे स्वत: विरोधाभासी (mutually destructive) हैं।
- Adverse Possession कानून द्वारा दी गई एक कठोर रक्षा (harsh doctrine) है, जो केवल उन्हीं परिस्थितियों में मान्य है जब:
- कब्जा खुला (open), निरंतर (continuous), शांतिपूर्ण (peaceful), और सच्चे स्वामी के स्वामित्व के विरोध में हो।
- और कब्जे की नियत (intention) सच्चे स्वामी के अधिकार को नकारने की हो।
📝 निर्णय का महत्व:
- यह निर्णय स्पष्ट करता है कि adverse possession का दावा मालिकाना अधिकार नहीं देता, बल्कि एक रक्षात्मक हथियार (defensive shield) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- प्रतिकूल कब्जे की सफलता के लिए, याचिकाकर्ता को सच्चे मालिक की पहचान को स्वीकार करना अनिवार्य है।
🔎 प्रासंगिक पैराग्राफ (SC Observations):
Para 21: “Burden lies on the person claiming adverse possession to plead and prove all foundational facts…”
Para 23: “Inconsistent pleas of true ownership and adverse possession cannot stand together.”