लेख शीर्षक:
“सिविल विवाद को आपराधिक रंग नहीं दिया जा सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासभंग के आरोप वाली FIR रद्द की”
(AIROnline 2025 CHH 247 – Quashing of FIR under Section 482 CrPC)
मुख्य लेख:
बिलासपुर, छत्तीसगढ़ | जून 2025 — छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि कोई अनुबंधीय विवाद (contractual dispute) केवल भुगतान की शर्तों के उल्लंघन तक सीमित है और उसमें कोई स्पष्ट आपराधिक मंशा (criminal intent) नहीं झलकती, तो ऐसे मामलों में धोखाधड़ी (Cheating) और आपराधिक विश्वासभंग (Criminal Breach of Trust) जैसे आरोप नहीं लगाए जा सकते।
न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा (मुख्य न्यायाधीश) एवं न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की खंडपीठ ने CrPC की धारा 482 के अंतर्गत हस्तक्षेप करते हुए FIR को निरस्त (quash) किया।
🧾 प्रकरण का विवरण:
- याचिकाकर्ता (Accused) के विरुद्ध FIR दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप था कि उन्होंने सामान की खरीद-फरोख्त (sale and purchase of goods) के अनुबंध में धोखाधड़ी और विश्वासघात किया।
- शिकायतकर्ता का आरोप था कि याचिकाकर्ता ने भुगतान नहीं किया और इस कारण धोखा दिया गया।
- लेकिन संपूर्ण रिकॉर्ड से यह स्पष्ट था कि विवाद का स्वरूप केवल सिविल प्रकृति का था, जो कि भुगतान की शर्तों को लेकर था।
⚖️ न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- “प्रत्येक अनुबंध उल्लंघन धोखाधड़ी नहीं होता।”
- यदि विवाद का स्वरूप निजी समझौते या लेन-देन के तहत हो, और उसमें कोई ठोस आपराधिक मंशा प्रारंभ से न दिखाई दे, तो ऐसे प्रकरणों में आपराधिक धाराओं का प्रयोग अनुचित है।
- CrPC की धारा 482 का उद्देश्य न्याय के हित में अनावश्यक मुकदमेबाज़ी को समाप्त करना है।
- “केवल भुगतान न करने से धोखाधड़ी का आरोप सिद्ध नहीं होता, जब तक कि ठगी की मंशा पहले से प्रमाणित न हो।”
📚 प्रमुख कानूनी प्रावधान:
अधिनियम | प्रावधान | विवरण |
---|---|---|
CrPC, 1973 | धारा 482 | न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियाँ, FIR को रद्द करने का अधिकार |
IPC, 1860 | धारा 406 | आपराधिक विश्वासघात (Criminal Breach of Trust) |
IPC, 1860 | धारा 420 | धोखाधड़ी (Cheating) |
🧭 निर्णय का प्रभाव:
- सिविल मामलों को आपराधिक प्रक्रिया के माध्यम से सुलझाने का प्रयास रोकने का सशक्त उदाहरण।
- यह निर्णय व्यापार और अनुबंध क्षेत्र में निष्पक्षता और कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- यह उन मामलों पर नियंत्रण करता है जहाँ अनुचित आपराधिक दबाव डालने के लिए FIR का दुरुपयोग किया जाता है।
✅ निष्कर्ष:
AIROnline 2025 CHH 247 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल CrPC की धारा 482 के विवेकपूर्ण उपयोग का उदाहरण है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सिविल विवादों में आपराधिक धाराओं का दुरुपयोग नहीं हो। इस निर्णय से न्यायपालिका ने स्पष्ट संकेत दिया है कि ठोस आपराधिक मंशा के अभाव में केवल भुगतान न करने को अपराध नहीं माना जा सकता।