“सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 6 नियम 17 की उदार व्याख्या: हाजा बनो बनाम घ. मोहम्मद अहंगर प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी”

“सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 6 नियम 17 की उदार व्याख्या: हाजा बनो बनाम घ. मोहम्मद अहंगर प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी”


प्रस्तावना:
भारतीय न्याय प्रणाली में सिविल मुकदमों में संशोधन (Amendment) का अधिकार एक महत्वपूर्ण साधन है जो पक्षकारों को अपनी यथासंभव पूरी बात अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर देता है। Order 6 Rule 17 of the Civil Procedure Code (CPC) इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में “Haja @ Hajira Bano Vs Gh. Mohammad Ahangar” प्रकरण के तहत जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय के निर्णय की पुष्टि करते हुए, अदालत ने स्पष्ट किया कि संशोधन आवेदनों पर उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए जब तक वह विपक्षी पक्ष को अपूरणीय क्षति नहीं पहुंचाता या मुकदमे की प्रकृति को पूर्णतः नहीं बदल देता।


प्रकरण की पृष्ठभूमि:
हाजा बनो बनाम घ. मोहम्मद अहंगर केस में वादी ने मुकदमे की कार्यवाही के दौरान कुछ तथ्यों में संशोधन की अनुमति मांगी थी। प्रतिवादी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह परिवर्तन मुकदमे की प्रकृति को ही बदल देगा और उसे नुकसान होगा।

मामला जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय पहुंचा, जहाँ अदालत ने यह निर्णय दिया कि:

“यदि कोई संशोधन न्यायपूर्ण, समय पर और आवश्यक है, और वह प्रतिवादी को अपूरणीय हानि नहीं पहुंचाता, तो अदालत को उसे स्वीकार करना चाहिए।”


Order 6 Rule 17 CPC का सार:
इस प्रावधान के अंतर्गत पक्षकार को यह अधिकार है कि वह मुकदमे की प्रक्रिया के किसी भी चरण में अपने दावों या जवाबों में संशोधन कर सके, बशर्ते वह न्यायहित में आवश्यक हो और देरी को उचित ठहराया जा सके।

  • संशोधन तभी अस्वीकार किया जा सकता है जब:
    1. उससे मुकदमे की प्रकृति ही बदल जाए।
    2. वह जानबूझकर देरी से किया गया हो।
    3. उससे विपक्षी को ऐसा नुकसान हो जिसे सुधारा न जा सके।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए यह दोहराया कि:

  1. न्यायिक कार्यवाही का उद्देश्य सत्य को उजागर करना है।
  2. यदि कोई संशोधन सच्चाई के निकट ले जाता है और वादी को अपने मामले को स्पष्ट करने में मदद करता है, तो उसे अनुमति मिलनी चाहिए।
  3. न्यायिक प्रक्रिया तकनीकी बाधाओं में नहीं उलझनी चाहिए, बल्कि इसके केंद्र में ‘न्याय’ होना चाहिए।

निर्णय का महत्व:

  • यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था में प्रक्रियात्मक न्याय की अवधारणा को और मजबूत करता है।
  • वादियों को अधिक लचीलापन मिलेगा जिससे वे अपनी दलीलों को और स्पष्ट कर सकें।
  • अदालतों को तकनीकी आधारों पर संशोधन को खारिज करने से बचना होगा जब तक वह जानबूझकर विलंब या धोखाधड़ी को साबित न करें।
  • इससे प्रक्रियात्मक न्याय बनाम वास्तविक न्याय की बहस में वास्तविक न्याय को प्राथमिकता मिलती है।

निष्कर्ष:
Haja @ Hajira Bano बनाम Gh. Mohammad Ahangar का यह मामला न्यायालयों को यह याद दिलाता है कि न्याय केवल तकनीकी प्रक्रियाओं का पालन नहीं है, बल्कि यह एक लचीली, विवेकपूर्ण और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की मांग करता है। Order 6 Rule 17 CPC के तहत संशोधन को उदारता से देखने की प्रवृत्ति न्यायिक पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देती है। यह निर्णय भारतीय विधि प्रणाली में न केवल एक दिशानिर्देशक है, बल्कि निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शन भी करता है कि प्रत्येक वादी को न्याय पाने का पूरा अवसर मिलना चाहिए