सिविल ट्रायल में गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का न्यायिक दायित्व: Yogesh Ghai v. Dr. Om Parkash Rana, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (2025) का विस्तृत विश्लेषण
भूमिका
न्यायालयीन कार्यवाही में साक्ष्य (Evidence) एक ऐसी रीढ़ है, जिस पर पूरे मुकदमे का परिणाम आधारित होता है। किसी भी पक्ष द्वारा गवाहों का अदालत में परीक्षण कराना उनके संवैधानिक एवं विधिक अधिकारों का हिस्सा है। परंतु व्यवहार में अनेक बार यह स्थिति सामने आती है कि गवाह, भले ही समन प्राप्त कर चुके हों, अदालत में उपस्थित नहीं होते। ऐसे मामलों में कई बार निचली अदालतें यह मानकर कि पक्षकारों ने कई अवसर ले लिए हैं, साक्ष्य बंद कर देती हैं। यह प्रश्न अक्सर उत्पन्न होता है कि क्या केवल अवसरों के आधार पर साक्ष्य बंद किया जा सकता है, जबकि गवाह को अदालत ने स्वयं तलब किया हो?
इसी अहम मुद्दे पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने वर्ष 2025 में महत्वपूर्ण निर्णय दिया—Yogesh Ghai v. Dr. Om Parkash Rana (CR-7359-2025)—जिसने सिविल ट्रायल के सिद्धांतों को स्पष्ट किया कि गवाह की उपस्थिति सुनिश्चित करना अदालत का कर्तव्य है, और साक्ष्य बंद करना अंतिम उपाय है, जिसे सावधानीपूर्वक अपनाया जाना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए साक्ष्य बंद कर दिया कि वादी (Plaintiff/ Petitioner) को कई अवसर मिल चुके हैं और फिर भी वे अपने गवाह को अदालत में प्रस्तुत नहीं कर पाए। ट्रायल कोर्ट का तर्क यह था कि अवसर बार-बार दिया जाना न्यायिक समय की बर्बादी है और मुकदमे में अनावश्यक विलंब हो रहा है।
वादकार ने हाईकोर्ट का रुख किया यह कहते हुए कि:
- गवाह को समन जारी किया गया था,
- गवाह को समन की सेवा हो चुकी थी,
- परंतु गवाह फिर भी अदालत में उपस्थित नहीं हुआ,
- और यह कि वादी को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि उसने गवाह को बुलाने के लिए अपने स्तर पर सभी आवश्यक कदम उठाए।
इन परिस्थितियों में हाईकोर्ट के सामने यह मूल प्रश्न आया कि—
क्या जब गवाह को अदालत द्वारा समन जारी किया गया हो और वह सेवा होने के बावजूद उपस्थित न हो, तो साक्ष्य बंद करना सही है?
हाईकोर्ट का निर्णय: न्यायालय का कर्तव्य सर्वोपरि
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि:
1. न्यायालय का कर्तव्य है कि वह समन प्राप्त कर चुके गवाह की उपस्थिति सुनिश्चित करे
यदि गवाह कोर्ट द्वारा जारी प्रक्रिया (summons/ bailable warrants/ coercive process) के माध्यम से तलब किया गया है और सेवा हो चुकी है, तो उसके आने की जिम्मेदारी पक्षकार की नहीं बल्कि न्यायालय की होती है।
वादी या प्रतिवादी केवल यही कर सकते हैं कि वे:
- गवाह का सही पता दें,
- समन की फीस जमा कराएँ,
- समय पर प्रक्रिया जारी कराने का अनुरोध करें।
जैसे ही गवाह सेवा प्राप्त कर लेता है, उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करना अदालत का दायित्व बन जाता है।
2. केवल “कई अवसर दे दिए” कहकर साक्ष्य बंद नहीं किया जा सकता
हाईकोर्ट ने कहा कि यह कहना कि पक्षकार को कई अवसर दिए जा चुके हैं, साक्ष्य बंद करने का पर्याप्त आधार नहीं है।
यदि पक्षकार ने अपने अधिकारों का उचित प्रयोग किया है और वह अदालत के सामने किसी प्रकार की लापरवाही का दोषी नहीं है, तो:
- उसका साक्ष्य बंद करना,
- प्राकृतिक न्याय (Principles of Natural Justice) का उल्लंघन है,
- और मुकदमे के निष्पक्ष निपटारे के विरुद्ध है।
3. न्यायालय को Coercive Steps लेकर गवाह को तलब करना चाहिए
यदि गवाह समन प्राप्त करके भी नहीं आया, तो अदालत के पास निम्नलिखित शक्तियाँ होती हैं:
- बेल योग्य वारंट (Bailable Warrants)
- जमानती या गैर-जमानती वारंट (Non-bailable Warrants)
- Police help/ coercive process
- Attachment of property (rare cases)
हाईकोर्ट ने कहा कि गवाह की अनुपस्थिति को देखते हुए साक्ष्य बंद करने से पहले ट्रायल कोर्ट को सभी वैधानिक coercive measures अपनाने चाहिए थे।
4. न्यायालय ने निचली अदालत का आदेश रद्द किया
हाईकोर्ट ने पाया कि:
- वादी ने गवाह को लाने के सभी प्रयास किए थे,
- गवाह को समन की सेवा हो चुकी थी,
- कोर्ट ने गवाह को तलब करने के लिए पर्याप्त coercive steps नहीं लिए,
- साक्ष्य बंद करना न्यायिक रूप से अनुचित था।
अतः ट्रायल कोर्ट का आदेश सेट-असाइड कर दिया गया और वादी को साक्ष्य प्रस्तुत करने का उचित अवसर बहाल किया गया।
निर्णय का व्यापक महत्व
यह निर्णय भारतीय सिविल न्याय प्रणाली में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कई बिंदुओं को पुख्ता करता है:
(A) साक्ष्य का अधिकार एक मौलिक न्यायसंगत अधिकार है
हर पक्ष का अधिकार है कि वह अपने गवाहों को प्रस्तुत कर सके। इसे छीन लेना ट्रायल की निष्पक्षता को प्रभावित करता है। यदि गवाह कोर्ट के समन के बावजूद नहीं आ रहे हैं, तो यह पक्षकार की लापरवाही नहीं मानी जा सकती।
(B) अदालत को सक्रिय भूमिका निभानी होगी
सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) में अदालत को यह अधिकार दिया गया है कि वह:
- गवाह को समन भेजे,
- उनके विरुद्ध वारंट जारी करे,
- और उनकी उपस्थिति को बाध्यकारी बना सके।
यह जिम्मेदारी तब और बढ़ जाती है जब:
- गवाह “Court Witness” जैसा व्यवहार कर रहा हो,
- लेकिन उसका महत्व पक्षकार के लिए आवश्यक हो,
- और पक्षकार ने पूरी पहल की हो।
(C) अवसरों की संख्या न्यायिक विवेक का एक तत्व है, बाध्यता नहीं
अक्सर निचली अदालतें “अवसर” शब्द को अंतिम उपाय के रूप में ले लेती हैं। परंतु हाईकोर्ट ने कहा कि:
- अवसरों की संख्या से अधिक महत्वपूर्ण यह देखना है कि
क्या पक्षकार ने ईमानदारी और यथासंभव प्रयास किया है।
(D) मुकदमे का उद्देश्य है सच तक पहुँचना, न कि तकनीकी आधारों पर मामला खत्म करना
न्याय प्रक्रिया का लक्ष्य है:
- विवाद का सही और न्यायपूर्ण समाधान,
- गवाहों की जाँच से सत्य का पता लगाना।
यदि अदालत तकनीकी आधारों पर साक्ष्य बंद कर देती है, तो मामला केवल औपचारिकता बनकर रह जाता है।
कानूनी सिद्धांत जो इस निर्णय को समर्थन देते हैं
1. Order XVI CPC (Summoning and Attendance of Witnesses)
यह स्पष्ट करता है कि अदालत का दायित्व है कि वह समन किए गए गवाह को उपस्थित कराए।
2. Order XVII Rule 1 (Adjournments)
अदालत को विवेक का प्रयोग करना होता है, परंतु यह विवेक ऐसा होना चाहिए जो न्यायसंगत हो।
3. Natural Justice Principles
“Hear the other side” का सिद्धांत तभी पूरा होता है जब पक्षकार को अपना साक्ष्य प्रस्तुत करने का उचित अवसर मिले।
4. Supreme Court Precedents
अनेक निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि:
- “Closure of evidence should be the last resort.”
- “Court must adopt coercive measures where witnesses do not appear.”
निर्णय का व्यावहारिक प्रभाव: वकीलों, पक्षकारों और अदालतों के लिए मार्गदर्शन
(1) पक्षकारों के लिए
यदि आप अपने गवाह को कोर्ट में बुलाना चाहते हैं:
- समय पर समन अदा करें,
- पता सही दें,
- शंका हो तो प्रक्रिया रिपोर्ट देखें,
- सेवा न हो तो तुरंत fresh summons मांगे।
यदि गवाह सेवा के बावजूद नहीं आ रहा है, तो आप कोर्ट से मांग करें:
- Bailable warrant
- Coercive process
- Police help
(2) वकीलों के लिए
आपका कर्तव्य है कि:
- रिकॉर्ड पर लाएँ कि यह गवाह समन प्राप्त कर चुका है,
- कोर्ट से जोर देकर कहें कि non-appearance का दोष आपके मुवक्किल पर नहीं है,
- Closure के खिलाफ strong objections दर्ज करें।
(3) अदालतों के लिए
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि अदालतें:
- गवाह की उपस्थिति सुनिश्चित करने में निष्क्रिय नहीं रह सकतीं,
- केवल अवसरों की संख्या पर आधारित दंडात्मक दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए,
- और closure order पास करने से पहले due diligence करें।
निष्कर्ष
Yogesh Ghai v. Dr. Om Parkash Rana (Pb & Hr HC, 2025) का निर्णय सिविल मुकदमों में साक्ष्य की प्रक्रिया को लेकर अत्यंत महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह स्पष्ट करता है कि:
- समन प्राप्त कर चुके गवाह की उपस्थिति सुनिश्चित करना अदालत का दायित्व है।
- केवल “कई अवसर” मिल जाने के आधार पर साक्ष्य बंद नहीं किया जा सकता।
- अदालत को पहले सभी coercive उपायों का प्रयोग करना चाहिए।
- पक्षकार को दोष नहीं दिया जा सकता यदि उसने हर संभव प्रयास किया हो।
यह निर्णय भारतीय सिविल न्याय-व्यवस्था को अधिक न्यायसंगत, पारदर्शी और वास्तविक न्याय करने की दिशा में प्रेरित करता है। यह उन हजारों मुकदमों में मिसाल बनेगा जहाँ गवाहों की अनुपस्थिति के कारण अनावश्यक रूप से साक्ष्य बंद कर दिए जाते थे।