“सिविल कोर्ट का अधिकार क्षेत्र बनाम राजस्व प्राधिकारी की भूमिका: सुप्रीम कोर्ट द्वारा संपत्ति के बंटवारे से संबंधित मार्गदर्शन”

लंबा लेख शीर्षक:
“सिविल कोर्ट का अधिकार क्षेत्र बनाम राजस्व प्राधिकारी की भूमिका: सुप्रीम कोर्ट द्वारा संपत्ति के बंटवारे से संबंधित मार्गदर्शन”


लेख:
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि किस परिस्थिति में सिविल कोर्ट विभाजन (Partition) से संबंधित वाद की सुनवाई कर सकती है, विशेष रूप से जब राजस्व प्राधिकरणों द्वारा पहले ही किसी याचिका की सुनवाई की जा रही हो। यह निर्णय “Devashish” नामक एक पक्ष द्वारा दायर वाद से संबंधित था, जिसमें चल-अचल संपत्तियों का विभाजन मुख्य विवाद था।

⚖️ मुख्य बिंदु:

  1. सिविल कोर्ट का अधिकार क्षेत्र:
    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब विवाद में शामिल संपत्तियाँ गैर-कृषि अचल संपत्तियाँ (जैसे कि भवन, भूखंड आदि) या चल संपत्तियाँ हैं, और

    • न्यायालय बिना किसी अतिरिक्त जांच या कमीश्नर की सहायता के संपत्ति का विभाजन कर सकता है, या
    • पक्षकार स्वयं विभाजन के तरीके पर सहमत हों,

    तब सिविल कोर्ट ऐसे मामलों में प्रत्यक्ष रूप से सुनवाई और निर्णय कर सकती है।

  2. संयुक्त निर्णय की संभावना:
    कोर्ट यह भी कह सकती है कि ऐसे मामलों में जहां उपरोक्त शर्तें पूरी होती हैं, न्यायालय एक ही निर्णय में प्राथमिक डिक्री (Preliminary Decree) — जो पक्षकारों के अधिकारों को निर्धारित करता है — और अंतिम डिक्री (Final Decree) — जो संपत्ति का “metes and bounds” द्वारा विभाजन करती है — दे सकता है।
  3. राजस्व प्राधिकरणों की सीमा:
    जब भूमि कृषि भूमि हो और उस पर भूमि-राजस्व देय हो, तब विभाजन की प्रक्रिया राजस्व अधिकारियों द्वारा संचालित की जाती है। परन्तु जैसे ही विवाद में गैर-कृषि भूमि या अन्य संपत्ति आती है, सिविल न्यायालय का अधिकार क्षेत्र प्रबल होता है
  4. प्रारंभिक आवेदन का प्रभाव:
    यदि राजस्व अधिकारियों के समक्ष विभाजन के लिए आवेदन लंबित हो, तो भी यदि मामला सिविल कोर्ट की अधिकारिता में आता है (जैसे कि भवन या प्लॉट), तो सिविल कोर्ट उस पर विचार कर सकती है। यानि राजस्व अधिकारियों के समक्ष आवेदन स्वयं में सिविल कोर्ट की शक्ति को सीमित नहीं करता।

निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उन मामलों में मार्गदर्शक सिद्ध होता है जहाँ परिवार के सदस्य किसी संपत्ति के विभाजन को लेकर सिविल और राजस्व दोनों स्तरों पर संघर्ष कर रहे होते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि:

“जहाँ सिविल न्यायालय बिना किसी अतिरिक्त जांच या तकनीकी सहायता के विभाजन कर सकता है, वहाँ वह ऐसे मामलों की सुनवाई कर सकता है, भले ही राजस्व अधिकारियों के पास कोई प्रारंभिक आवेदन लंबित हो।”


प्रासंगिक धाराएँ:

  • सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 – ऑर्डर 20, रूल 18 (Preliminary और Final Decree)
  • भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (जहाँ उत्तराधिकार से विभाजन की आवश्यकता हो)