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“सिर्फ ‘स्किन-टू-स्किन’ नहीं, ‘इरादा’ ही पर्याप्त है: सतीश रगड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021) – लैंगिक अपराधों की व्याख्या में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”

“सिर्फ ‘स्किन-टू-स्किन’ नहीं, ‘इरादा’ ही पर्याप्त है: सतीश रगड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021) – लैंगिक अपराधों की व्याख्या में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”


भूमिका

        भारत में लैंगिक अपराधों के प्रति न्यायपालिका की संवेदनशीलता और बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों की व्याख्या समय-समय पर न्यायालयों के निर्णयों के माध्यम से स्पष्ट होती रही है। ऐसे ही एक ऐतिहासिक निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने ‘Satish Ragde v. State of Maharashtra (2021) के मामले में स्पष्ट किया कि यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) के अपराध में केवल ‘स्किन-टू-स्किन’ (Skin-to-skin) संपर्क आवश्यक नहीं है; बल्कि अपराधी का इरादा (Intention) और कृत्य की प्रकृति (Nature of the Act) ही पर्याप्त है।

यह निर्णय न केवल POCSO Act, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act) की मंशा को सही दिशा में परिभाषित करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि न्याय ‘तकनीकी व्याख्याओं’ के बजाय ‘न्याय की भावना’ पर आधारित हो।


मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

      यह मामला महाराष्ट्र राज्य से संबंधित था। अभियुक्त सतीश रगड़े (Satish Ragde) पर आरोप था कि उसने एक 12 वर्षीय नाबालिग लड़की को अपने घर में बुलाया और उसकी छाती को कपड़ों के ऊपर से दबाया। इसके बाद अभियुक्त के खिलाफ POCSO Act, 2012 की धारा 7 और 8 (Sexual Assault और उसकी सजा) तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (महिला की मर्यादा भंग करना) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।

मामला सेशन कोर्ट में चला, जहाँ अभियुक्त को POCSO की धारा 8 के तहत दोषी ठहराया गया और उसे तीन वर्ष की सजा सुनाई गई।

हालांकि, बाद में यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट (Nagpur Bench) में अपील के रूप में पहुँचा।


बॉम्बे हाईकोर्ट का विवादित निर्णय

       नागपुर बेंच की न्यायमूर्ति पुष्पा गणेडीवाला (Justice Pushpa V. Ganediwala) ने 2021 में अपने निर्णय में कहा कि अभियुक्त का कार्य ‘यौन उत्पीड़न’ (Sexual Assault) की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि उसने पीड़िता के शरीर को ‘स्किन-टू-स्किन’ रूप में नहीं छुआ — यानी उसके हाथ लड़की के कपड़ों के ऊपर थे, न कि शरीर पर प्रत्यक्ष रूप से।

        हाईकोर्ट के अनुसार, POCSO Act की धारा 7 में “physical contact” का अर्थ तभी होगा जब उसमें त्वचा से त्वचा का संपर्क (Skin-to-skin contact) शामिल हो।
इस प्रकार, उन्होंने अभियुक्त को POCSO Act से मुक्त कर दिया और केवल IPC की धारा 354 (महिला की मर्यादा भंग करना) के तहत दोषी ठहराया।

       यह निर्णय समाज में तीव्र प्रतिक्रिया लेकर आया। कई महिला अधिकार संगठनों, बाल संरक्षण संस्थाओं और विधि विशेषज्ञों ने इसे POCSO Act की भावना के विपरीत बताया। परिणामस्वरूप, महाराष्ट्र राज्य सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।


सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और प्रश्न

मामला State of Maharashtra v. Satish Ragde (Criminal Appeal No. 141-142 of 2021) के रूप में सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत हुआ।
मुख्य प्रश्न यह था कि —

क्या ‘स्किन-टू-स्किन’ संपर्क ही Sexual Assault का आवश्यक तत्व है, या फिर इरादा और कृत्य की प्रकृति पर्याप्त है?


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Judgment of the Supreme Court)

      सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी शामिल थे, ने 18 नवंबर 2021 को यह ऐतिहासिक निर्णय सुनाया।

न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा:

“The most important ingredient of sexual assault is sexual intent and not skin-to-skin contact. To interpret the law otherwise would defeat the very object of the POCSO Act.”

“यौन उत्पीड़न के अपराध में सबसे महत्वपूर्ण तत्व अपराधी का यौन इरादा (Sexual Intent) है, न कि केवल ‘त्वचा से त्वचा का संपर्क’। यदि कानून की व्याख्या केवल तकनीकी रूप में की जाएगी, तो यह POCSO अधिनियम के उद्देश्य को नष्ट कर देगा।”


POCSO Act की व्याख्या (Interpretation of Section 7 and 8)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में POCSO Act, 2012 की धारा 7 की विस्तृत व्याख्या की।

धारा 7 कहती है:

“Whoever, with sexual intent, touches the vagina, penis, anus or breast of the child or makes the child touch the same of such person or does any other act with sexual intent which involves physical contact without penetration, is said to commit sexual assault.”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यहाँ “physical contact without penetration” का अर्थ केवल त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं है, बल्कि किसी भी प्रकार का शारीरिक संपर्क (Physical touch) जो यौन उद्देश्यों के लिए किया गया हो, वह अपराध की श्रेणी में आएगा।

यदि अदालतें केवल ‘स्किन-टू-स्किन’ की शर्त को आवश्यक मान लें, तो अपराधी आसानी से बच निकलेंगे — जैसे कपड़े के ऊपर से छूने या गले लगाने जैसी घटनाएँ अपराध की श्रेणी से बाहर हो जाएँगी, जबकि पीड़ित पर उसका प्रभाव समान रूप से गहरा हो सकता है।


सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ (Key Observations)

  1. इरादा (Intent) ही निर्णायक तत्व है:
    न्यायालय ने कहा कि यदि कृत्य यौन उद्देश्यों (Sexual Intent) से प्रेरित है, तो वह Sexual Assault है — चाहे संपर्क कपड़ों के ऊपर से हो या सीधे शरीर से।
  2. तकनीकी व्याख्या खतरनाक है:
    यदि न्यायालयें ‘स्किन-टू-स्किन’ जैसी संकीर्ण व्याख्या अपनाएँगी, तो यह बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा को कमजोर कर देगी।
  3. कानून की भावना (Spirit of Law):
    न्यायालय ने कहा कि POCSO Act का उद्देश्य बच्चों को हर प्रकार के यौन उत्पीड़न से बचाना है। कानून की व्याख्या इस भावना के अनुरूप होनी चाहिए, न कि केवल शब्दशः।
  4. ‘Touch’ का व्यापक अर्थ:
    “Touch” का अर्थ केवल शरीर की त्वचा से संपर्क नहीं है, बल्कि कपड़ों के ऊपर से या किसी अन्य वस्तु के माध्यम से किया गया स्पर्श भी ‘Physical Contact’ की श्रेणी में आता है।
  5. बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च है:
    अदालत ने कहा कि बच्चों की अस्मिता और सुरक्षा के मामलों में कानून को उदार दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया जाना चाहिए, न कि संकीर्ण रूप में।

निर्णय का परिणाम (Outcome of the Case)

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय को निरस्त (Set Aside) कर दिया और अभियुक्त सतीश रगड़े को POCSO Act की धारा 8 के तहत दोषी ठहराया।

इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश गया कि कपड़ों के ऊपर से किया गया यौन स्पर्श भी यौन उत्पीड़न है, यदि उसमें यौन इरादा शामिल है।


न्यायालय का नैतिक संदेश (Moral Message by the Court)

न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि:

“Courts cannot be oblivious of the purpose which the Act seeks to achieve. The interpretation that reduces the scope of the protection available to children must be avoided.”

यानी, अदालतों को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह कानून बच्चों की रक्षा के लिए बनाया गया है। ऐसी कोई भी व्याख्या जो बच्चों की सुरक्षा को सीमित करे, उसे अस्वीकार किया जाना चाहिए।


महत्व और प्रभाव (Significance and Impact)

  1. POCSO की मंशा की पुनः पुष्टि:
    सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि POCSO Act का उद्देश्य तकनीकी बारीकियों में उलझना नहीं, बल्कि बच्चों को हर रूप में यौन उत्पीड़न से बचाना है।
  2. भविष्य के मामलों के लिए दिशा:
    यह निर्णय भविष्य में आने वाले मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण नजीर (Precedent) बन गया। अब किसी भी मामले में ‘स्किन-टू-स्किन’ की तकनीकी व्याख्या का सहारा लेकर अपराधी बच नहीं सकते।
  3. बाल अधिकारों की सुरक्षा को बल:
    इस फैसले ने बाल अधिकारों और लैंगिक संवेदनशीलता के प्रति न्यायपालिका की गंभीरता को पुनः स्थापित किया।
  4. कानून के उद्देश्य की रक्षा:
    यह निर्णय दिखाता है कि न्यायालय केवल कानून के शब्द नहीं, बल्कि उसकी आत्मा (Spirit) को महत्व देता है।

नारी और बाल सुरक्षा के दृष्टिकोण से विश्लेषण (From a Gender & Child Protection Perspective)

भारत जैसे समाज में जहाँ बाल यौन शोषण के मामले अक्सर ‘सामाजिक कलंक’ के कारण दबा दिए जाते हैं, वहाँ यह निर्णय पीड़ितों की आवाज़ को सशक्त करता है
सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी रूप में या माध्यम से यौन उत्पीड़न करे, वह कानून से बच नहीं सकता।

इसके अतिरिक्त, यह निर्णय न्यायपालिका की लैंगिक संवेदनशीलता का उदाहरण है — जहाँ पीड़ित की गरिमा, भावनात्मक आघात, और अपराध के इरादे को समान महत्व दिया गया।


कानूनी समुदाय और समाज की प्रतिक्रिया (Reaction from Legal and Social Circles)

यह निर्णय आने के बाद महिला आयोग, बाल अधिकार आयोग, और कई कानूनी विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट की सराहना की।
उन्होंने कहा कि यह निर्णय POCSO Act की मंशा के अनुरूप है और इससे बच्चों के खिलाफ अपराधों पर सख्त रोक लगेगी।

वहीं, कई कानून छात्रों और शिक्षाविदों ने इसे “Judicial Sensitivity and Humanistic Interpretation” का उत्कृष्ट उदाहरण बताया।


संबंधित अन्य प्रकरण (Related Cases)

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में अन्य मामलों का भी संदर्भ दिया, जैसे—

  • State of Punjab v. Gurmit Singh (1996) — जहाँ अदालत ने कहा कि यौन अपराधों के मामलों में तकनीकी त्रुटियाँ नहीं, बल्कि न्याय की भावना प्रमुख होनी चाहिए।
  • Aparna Bhat v. State of Madhya Pradesh (2021) — जिसमें अदालत ने कहा कि यौन अपराधों के मामलों में रूढ़िवादी दृष्टिकोण से बचना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion)

“Satish Ragde v. State of Maharashtra (2021)” का निर्णय भारतीय न्यायशास्त्र में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है।
यह निर्णय केवल एक अभियुक्त के अपराध का निर्णय नहीं था, बल्कि यह कानून की मानवीय व्याख्या का प्रतीक है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि —

“यौन उत्पीड़न का अपराध केवल तब नहीं होता जब त्वचा से त्वचा का संपर्क हो;
बल्कि तब भी होता है जब कोई व्यक्ति यौन इरादे से किसी बच्चे को कपड़ों के ऊपर से छूता है।
क्योंकि कानून का उद्देश्य शरीर नहीं, बल्कि मानव गरिमा की रक्षा करना है।”

यह निर्णय न्यायपालिका की उस संवेदनशील दृष्टि को दर्शाता है जो केवल कानून नहीं, बल्कि न्याय, नैतिकता और मानवीय संवेदना के सम्मिश्रण से संचालित होती है।


सारांश (Summary in Brief)

बिंदु विवरण
मामले का नाम Satish Ragde v. State of Maharashtra (2021)
मुख्य मुद्दा क्या ‘स्किन-टू-स्किन’ संपर्क आवश्यक है Sexual Assault सिद्ध करने के लिए?
सुप्रीम कोर्ट की राय नहीं, ‘इरादा और कृत्य की प्रकृति’ ही पर्याप्त है
POCSO Act की धारा धारा 7 और 8
न्यायमूर्ति U.U. Lalit, S. Ravindra Bhat, Bela M. Trivedi
परिणाम अभियुक्त को POCSO Act के तहत दोषी ठहराया गया
महत्व बाल अधिकारों और लैंगिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक निर्णय

अंततः, यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका का यह संदेश दोहराता है कि—

“न्याय का अर्थ केवल कानून के शब्दों का पालन नहीं,
बल्कि उसकी आत्मा को जीवित रखना है।”