IndianLawNotes.com

“सिर्फ दूसरी राज्य में रहने से जमानत नहीं रोकी जा सकती” (हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट)

“सिर्फ दूसरी राज्य में रहने से जमानत नहीं रोकी जा सकती” – NDPS मामलों में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

भारत में एनडीपीएस (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances) अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तारी व जमानत से संबंधित मामलों में न्यायालय अत्यधिक कठोर रुख अपनाते हैं, क्योंकि यह विधि नशे की तस्करी जैसी गंभीर सामाजिक समस्या से जुड़ी है। हालांकि, कई बार ऐसे मामलों में आरोपी के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा भी उतनी ही आवश्यक होती है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें कहा गया कि सिर्फ किसी अन्य राज्य में रहने के आधार पर आरोपी को जमानत से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि उपयुक्त शर्तें लगाकर आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित की जा सकती है और न्याय प्रक्रिया में बाधा की आशंका को रोका जा सकता है।

यह निर्णय न्यायिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है कि आरोपी की जमानत पर विचार करते समय केवल निवास स्थान को आधार बनाकर जमानत न देना संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा। जमानत एक साधारण अधिकार नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्याय के बीच संतुलन बनाए रखने का कानूनी साधन है।


भूमिका: जमानत का अधिकार और भारतीय न्याय व्यवस्था

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) तथा संविधान, दोनों ही अभियुक्त को उचित न्याय मिलने की गारंटी प्रदान करते हैं। अनुच्छेद 21, जो “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” की रक्षा करता है, बताता है कि किसी व्यक्ति को बिना विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के उसके जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।

हालाँकि NDPS कानून में धारा 37 के अंतर्गत जमानत के लिए कठोर शर्तें हैं, लेकिन इन शर्तों का प्रयोग न्यायिक विवेक के साथ किया जाता है, और व्यक्ति की स्वतंत्रता को गैर-आवश्यक रूप से बाधित नहीं किया जा सकता।


मामला: क्या दूसरी राज्य में रहना जमानत न देने का आधार है?

पेश मामले में आरोपी के खिलाफ NDPS अधिनियम के तहत मामला दर्ज था। अभियोजन पक्ष का तर्क था कि आरोपी दूसरे राज्य का निवासी है, इसलिए उसे जमानत देने पर उसके फरार होने की संभावना है और मुकदमे की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। दूसरी ओर, बचाव पक्ष ने कहा कि:

  • आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है,
  • जांच पूरी हो चुकी है,
  • ट्रायल शुरू हो चुका है,
  • इसलिए उसे जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है।

हाई कोर्ट ने भी इन तर्कों को स्वीकार करते हुए कहा कि जमानत का निर्णय तथ्यों और परिस्थितियों पर होना चाहिए, न कि केवल निवास स्थान के आधार पर।


न्यायालय का विश्लेषण और तर्क

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया:

1. निवास स्थान जमानत देने से इंकार करने का आधार नहीं

कोर्ट ने कहा कि भारत एक संघीय देश है; किसी भी भारतीय नागरिक को किसी भी राज्य में रहने व घूमने का अधिकार है। इसलिए यदि कोई आरोपी किसी दूसरे प्रदेश का निवासी है तो सिर्फ उसी आधार पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता।

2. साक्ष्य सुरक्षित हैं और जांच समाप्त

जब जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट दाखिल है, तब आरोपी को जेल में रखना दंड का पूर्वाभास (pre-trial punishment) माना जाएगा, जो संविधान के विरुद्ध है।

3. उपयुक्त शर्तें लगाई जा सकती हैं

कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए निम्न शर्तें लगाई जा सकती हैं, जैसे:

  • पासपोर्ट जमा करना
  • मोबाइल लोकेशन ऑन रखना
  • स्थानीय थाने में हाजिरी
  • गारंटी और श्योरिटी बांड
  • ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना राज्य नहीं छोड़ना

इस प्रकार की शर्तें अदालत को संतुष्ट करती हैं कि अभियुक्त भाग नहीं सकेगा।

4. जमानत का उद्देश्य दंड नहीं है

कोर्ट ने दोहराया कि जमानत का मुख्य उद्देश्य अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करना है, दंड देना नहीं।


संवैधानिक दृष्टिकोण

संविधान का अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 22 आरोपी के अधिकारों की रक्षा करते हैं। जमानत इन अधिकारों का अभिन्न हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका है कि:

“जेल अपवाद है, जमानत नियम।”

हालांकि NDPS मामलों में सख्ती है, परंतु न्यायालय ने कई बार कहा है कि कठोरता न्यायिक विवेक को समाप्त नहीं करती


संबंधित प्रमुख निर्णय

न्यायालय ने इस आदेश में पूर्ववर्ती महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला भी दिया, जैसे:

  • State of Rajasthan v. Balchand (1978)जेल अपवाद, जमानत नियम
  • Sanjay Chandra v. CBI (2012)अनुचित रूप से जेल में रखना अधिकारों का उल्लंघन
  • Tofan Singh v. State of Tamil Nadu (2020)NDPS मामलों में सख्त लेकिन न्यायसंगत जमानत सिद्धांत

इन फैसलों में भी कहा गया है कि आरोपी की स्वतंत्रता अनावश्यक रूप से नहीं छीनी जा सकती।


NDPS मामलों में जमानत के मानदंड

NDPS मामलों में अदालत को दो शर्तों पर विचार करना होता है:

  1. प्रथमदृष्टया (prima facie) आरोपी का अपराध में शामिल होना
  2. आरोपी के द्वारा अपराध न दोहराने और ट्रायल में उपस्थित रहने की संभावना

यदि दोनों शर्तें अदालत को संतुष्ट करती हैं, तो जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता।


निर्णय का महत्व

यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि:

  • यह अंतर्राज्यीय निवास संबंधी गलत धारणाओं को दूर करता है।
  • यह नागरिक स्वतंत्रता और न्यायिक संतुलन को मजबूत करता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि NDPS कानून की कठोरता का गलत उपयोग न हो

यह निर्णय आने वाले समय में कई ऐसे मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करेगा जहाँ अभियोजन केवल निवास स्थान का बहाना बनाकर जमानत विरोध करता है।


न्यायालय द्वारा आरोपित शर्तें (उदाहरण स्वरूप)

हाई कोर्ट ने जमानत देते समय निम्नलिखित शर्तें लगाईं:

  • आरोपी नियमित रूप से कोर्ट में उपस्थित रहेगा।
  • पुलिस स्टेशन में नियत तिथि पर हाजिरी देगा।
  • मोबाइल फोन चालू रखेगा व लोकेशन साझा करेगा।
  • किसी भी गवाह व साक्ष्य से छेड़छाड़ नहीं करेगा।
  • बिना अनुमति राज्य नहीं छोड़ेगा।

इस प्रकार की शर्तों का उद्देश्य न्याय प्रक्रिया की रक्षा करना है, स्वतंत्रता छीनना नहीं।


निष्कर्ष

इस निर्णय ने यह स्थापित कर दिया कि:

दूसरे राज्य में रहना जमानत अस्वीकृति का कारण नहीं

NDPS कानून कठोर है, लेकिन संविधान उससे ऊपर है

व्यक्तिगत स्वतंत्रता न्याय का केंद्रीकृत सिद्धांत है

जांच पूरी होने पर आरोपी को जेल में रखना अनुचित है

न्यायालय उपयुक्त शर्तों के साथ जमानत दे सकता है

यह आदेश भारतीय न्याय प्रणाली द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाजिक हित के बीच संतुलन बनाए रखने का उत्कृष्ट उदाहरण है।


अंतिम टिप्पणी

इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश जाता है कि भारत में हर व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार है, और राज्य केवल उचित, न्यायसंगत और कानूनन कारणों से ही उसे सीमित कर सकता है। कानून का उद्देश्य दमन नहीं, संरक्षण है।

इस आदेश के बाद अभियोजन पक्ष को यह समझना होगा कि निवास स्थान बहाना नहीं बन सकता, बल्कि ठोस साक्ष्यों व व्यवहारिक आधार पर ही जमानत का विरोध किया जाना चाहिए।