शीर्षक: “सिर्फ डराने की बात काफी नहीं: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने धारा 506 IPC के तहत दर्ज FIR को किया रद्द”
🔷 मामला: Vishav Bhooshan Sood v. State of Punjab & Anr.
संदर्भ: CRM-M-54158-2024
निर्णय वर्ष: 2025
अदालत: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
प्रमुख धारा: धारा 506 – भारतीय दंड संहिता (IPC) – आपराधिक धमकी (Criminal Intimidation)
🔶 प्रस्तावना:
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि केवल धमकी देने का आरोप पर्याप्त नहीं है जब तक यह साबित न हो कि शिकायतकर्ता को वास्तव में भय या चिंता (alarm) हुई हो।
इस संदर्भ में अदालत ने धारा 506 IPC के अंतर्गत दर्ज FIR को रद्द (Quash) कर दिया।
🔷 कानूनी प्रश्न:
क्या प्राथमिकी (FIR) में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया धारा 506 IPC के अपराध को स्थापित करते हैं?
🔷 अदालत का अवलोकन:
न्यायालय ने गहन परीक्षण के बाद यह स्पष्ट किया:
“रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जो दर्शाए कि आरोपी द्वारा दी गई कथित धमकियों से शिकायतकर्ता को कोई वास्तविक भय उत्पन्न हुआ हो, अथवा आरोपी का उद्देश्य वास्तव में भय उत्पन्न करना था।”
इस प्रकार, अदालत ने माना कि:
- FIR में की गई धमकी की बात सामान्य प्रकृति की है।
- कोई भी ऐसा तत्व मौजूद नहीं, जिससे यह लगे कि शिकायतकर्ता को वास्तव में डर या भय उत्पन्न हुआ।
- धारा 506 IPC के लिए आवश्यक मनोवैज्ञानिक ‘Alarm’ का पहलू अनुपस्थित है।
🔷 भारतीय दंड संहिता की धारा 506 का सार:
“जो कोई किसी व्यक्ति को मृत्यु, गंभीर चोट, संपत्ति को क्षति, या उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने की धमकी देता है और ऐसा इरादतन भय उत्पन्न करने के उद्देश्य से करता है, वह धारा 506 के अंतर्गत दंडनीय है।”
इस धारा के लिए आवश्यक तत्व:
- धमकी का स्पष्ट उच्चारण
- इरादा (Intent) भय उत्पन्न करने का
- शिकायतकर्ता के मन में वास्तव में भय उत्पन्न होना (Alarm)
🔷 निर्णय का सार:
- अदालत ने यह कहा कि जब उपरोक्त आवश्यक तत्व स्पष्ट रूप से अनुपस्थित हैं, तो ऐसी FIR सिर्फ आरोपों की पुनरावृत्ति मात्र है, जिसका कोई कानूनी आधार नहीं बनता।
- अतः FIR में जो कुछ कहा गया है वह धारा 506 के अपराध की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।
- इसलिए FIR को न्याय की रक्षा के लिए रद्द किया जाना उचित है।
🔶 निर्णय का महत्व:
✅ यह निर्णय स्पष्ट करता है कि केवल आरोप लगाना पर्याप्त नहीं है — उन आरोपों को कानूनन साबित करने योग्य तथ्यात्मक आधार पर टिकना चाहिए।
✅ यह उन मामलों में दोषरहित व्यक्तियों के उत्पीड़न को रोकने में सहायक है जहाँ आपराधिक कानून का दुरुपयोग किया जाता है।
✅ यह एक न्यायिक चेतावनी है कि आपराधिक न्याय प्रणाली को अनावश्यक या दुर्भावनापूर्ण मुकदमों से बोझिल नहीं किया जाना चाहिए।
🔷 निष्कर्ष:
Vishav Bhooshan Sood बनाम State of Punjab मामले में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का निर्णय यह संदेश देता है कि:
“धारा 506 IPC केवल तभी लागू होती है जब कथित धमकी से वास्तविक भय या ‘alarm’ उत्पन्न हुआ हो। बिना इस मूल तत्व के, केवल धमकी के आरोप पर किसी व्यक्ति को अभियोजन का सामना नहीं करना चाहिए।”
यह फैसला न्याय और विवेक के बीच संतुलन बनाए रखने का बेहतरीन उदाहरण है, जहां अदालत ने कानून की आत्मा को समझते हुए दोषरहित व्यक्ति को राहत दी और न्याय की रक्षा की।