“साधारण कृषि उपकरण की बरामदगी से अपराध सिद्ध नहीं होता” : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय — Nafe Singh बनाम State of Haryana (2025) में ‘रिकवरी एविडेंस’ की सीमाओं पर विस्तृत व्याख्या
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली का केंद्रबिंदु यह सिद्धांत है कि—
“अभियुक्त को अपराध सिद्ध होने तक निर्दोष माना जाता है।”
इस सिद्धांत को लागू करने के लिए अदालतें साक्ष्य (Evidence) की गुणवत्ता, प्रामाणिकता और विश्वसनीयता का गहन परीक्षण करती हैं।
इसी संदर्भ में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने Nafe Singh v. State of Haryana, CRA-D-469-DB-2005 (O&M), 2025 में एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि—
“सिर्फ एक फावड़ा (Spade) — जो एक सामान्य कृषि उपकरण है — की बरामदगी मात्र से अपराध सिद्ध नहीं किया जा सकता, जब तक कि उस उपकरण और अपराध के बीच वैज्ञानिक रूप से ठोस संबंध स्थापित न हो।”
- मामले की पृष्ठभूमि
- बरामदगी (Recovery) से जुड़े सामान्य कानूनी सिद्धांत
- हाईकोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ
- FSL रिपोर्ट और उसके सीमित प्रभाव
- DNA लिंक न होने के कारण बरामदगी क्यों असंगत मानी गई
- निर्णय के कानून और न्यायशास्त्र पर प्रभाव
1. मामले की पृष्ठभूमि : क्या था पूरा विवाद?
अभियुक्त नफ़े सिंह के खिलाफ हत्या के आरोप लगाए गए थे। जांच के दौरान पुलिस ने एक ‘फावड़ा’ (Spade) बरामद किया, जो अभियुक्त के घर से मिला। यह बरामदगी एक खुलासा बयान (Disclosure Statement) के आधार पर हुई। पुलिस ने दावा किया कि—
- यह फावड़ा अपराध में उपयोग हुआ
- इसी से मृतक पर वार किए गए
- FSL रिपोर्ट में फावड़े पर मानव रक्त पाया गया
इसी आधार पर आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया।
लेकिन बचाव पक्ष का तर्क था कि—
- फावड़ा एक सामान्य कृषि उपकरण है
- हर किसान के घर में सामान्यतः उपलब्ध होता है
- उस पर मिला खून का ‘DNA लिंक’ मृतक से नहीं जोड़ा गया
- इसलिए इसे अपराध में उपयोग हुआ कहना असंगत और अवैज्ञानिक है
अदालत के समक्ष प्रश्न था—
क्या केवल फावड़े की बरामदगी और उस पर मानव रक्त की उपस्थिति ‘अपराध’ से आरोपी को जोड़ने के लिए पर्याप्त है?
2. बरामदगी (Recovery) का कानून : कब मान्य और कब नगण्य?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अनुसार—
- अभियुक्त की सूचना से प्राप्त वस्तु
- यदि अपराध से जुड़ी हो
- और उसकी पुष्टि बाहरी साक्ष्य से हो
तो वह साक्ष्य मान्य माना जाता है।
लेकिन अदालतों ने लगातार कहा है कि—
“Recovery is a weak piece of evidence.”
बरामदगी अकेले किसी आरोपी को दोषी सिद्ध नहीं कर सकती, जब तक कि—
- वस्तु का अपराध से सीधा संबंध सिद्ध न हो
- वस्तु विशिष्ट न हो
- वैज्ञानिक परीक्षण से ठोस निष्कर्ष न मिले
साधारण वस्तु (Common Object) होने पर बरामदगी और भी कमजोर हो जाती है।
जैसे—
- फावड़ा
- रस्सी
- लाठी
- चाकू (यदि सामान्य प्रकार का हो)
क्योंकि ये वस्तुएँ घरों में प्रायः उपलब्ध होती हैं।
3. हाईकोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ : “फावड़ा कोई असामान्य वस्तु नहीं”
अदालत ने अपने विस्तृत निर्णय में कहा:
1. फावड़ा एक सामान्य कृषि उपकरण है
यह लगभग हर ग्रामीण घर में मौजूद रहता है।
अतः इसकी बरामदगी असाधारण या संदेहास्पद परिस्थिति पैदा नहीं करती।
2. फावड़े पर मानव रक्त मिला, लेकिन…
सिर्फ मानव रक्त की उपस्थिति यह नहीं बताती कि—
- यह रक्त मृतक का ही है
- यह उसी अपराध से जुड़ा है
- और यह उपकरण हत्या में उपयोग हुआ
3. DNA रिपोर्ट न होना बरामदगी को कमजोर बनाता है
जब उपकरण और मृतक के बीच वैज्ञानिक लिंक न मिले, तो—
✔ बरामदगी अपराध से जोड़ने में असमर्थ मानी जाती है
✔ शक–सुबूत का लाभ आरोपी को दिया जाता है
4. अभियोजन को ‘दो बिंदुओं’ को जोड़ना होगा
अपराध + हथियार → वैज्ञानिक रूप से सिद्ध संबंध
यह संबंध न हो तो अपराध सिद्ध नहीं होता।
4. क्यों FSL रिपोर्ट निर्णायक नहीं बनी?
FSL (Forensic Science Laboratory) रिपोर्ट में केवल यह बताया गया था कि—
- फावड़े पर ‘मानव रक्त’ पाया गया
लेकिन FSL रिपोर्ट में—
- रक्त की ग्रुपिंग नहीं की गई
- DNA प्रोफाइलिंग नहीं हुई
- मृतक के रक्त से ‘मैचिंग’ नहीं कराई गई
हाईकोर्ट ने कहा:
“मानव रक्त मिलना सामान्य बात है। दुर्घटना, खेती, चोट या किसी अन्य कारण से भी ऐसा हो सकता है। जब तक DNA से मृतक से संबंध न जोड़ा जाए, यह साक्ष्य खोखला है।”
5. अदालत का निष्कर्ष : “बरामदगी असंगत, अभियोजन असफल”
अदालत ने कहा कि—
- न कोई प्रत्यक्षदर्शी (Eyewitness)
- न कोई मजबूत परिस्थिति साक्ष्य
- न कोई वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हथियार
इससे अभियोजन संदेह से परे अपराध सिद्ध नहीं कर पाया।
अत: अदालत ने यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया:
“फावड़े की बरामदगी मात्र एक कमजोर साक्ष्य है। DNA लिंक के अभाव में यह आरोपी को अपराध से नहीं जोड़ती।”
अतः अभियुक्त को संदेह का लाभ (Benefit of Doubt) देते हुए बरी किया गया।
6. भारतीय न्यायशास्त्र में इस निर्णय का महत्व
1. Recovery Evidence की सीमाएँ पुनः स्पष्ट हुईं
अदालत ने दिखाया कि—
- बरामद वस्तु → साधारण
- वैज्ञानिक लिंक → अनुपस्थित
- अपराध से जोड़ → असंभव
तो बरामदगी महत्व खो देती है।
2. न्यायिक मानक उच्च हुए
अब अदालतें बिना DNA या ठोस वैज्ञानिक साक्ष्य के ‘हथियार की बरामदगी’ पर भरोसा नहीं करेंगी।
3. पुलिस जांच में सुधार की आवश्यकता उजागर हुई
जांच एजेंसियों को—
- DNA विश्लेषण
- Blood Matching
- Crime Tool Linkage
को अनिवार्य रूप से करवाना चाहिए।
4. अभियुक्त के अधिकारों की पुनः पुष्टि
अदालत ने एक बार फिर कहा कि—
“संदेह का लाभ हमेशा आरोपी को मिलेगा।”
7. कानूनी सिद्धांत जो इस निर्णय में उभरे
अदालत ने निम्न सिद्धांतों को मजबूत किया—
(1) Recovery is not conclusive, unless scientifically linked.
(2) Common objects cannot be assumed to be crime weapons.
(3) FSL report must include DNA linkage to be reliable.
(4) Suspicion, however strong, cannot take the place of proof.
(5) Prosecution must stand on its own legs.
8. निष्कर्ष : एक संतुलित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला निर्णय
इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश जाता है कि—
✔ मात्र साधारण वस्तु की बरामदगी
✔ बिना DNA/Scientific evidence
✔ बिना प्रत्यक्ष या मजबूत परिस्थितिजन्य साक्ष्य
किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अदालत ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा :
“अपराध साबित होने के लिए साक्ष्य ठोस, वैज्ञानिक और संदेह से परे होना चाहिए। साधारण वस्तु की बरामदगी और मानव रक्त पर्याप्त नहीं।”
यह निर्णय भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में वैज्ञानिक जाँच और साक्ष्यों की गुणवत्ता पर अधिक जोर देता है। यह यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को केवल संदेह या अनुमान के आधार पर दंडित न किया जाए।