साइबर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम नफरत फैलाना: डिजिटल लोकतंत्र की दोधारी तलवार
भूमिका:
इंटरनेट और सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नई ऊंचाइयाँ प्रदान की हैं। आज हर व्यक्ति डिजिटल मंचों पर अपने विचार, अनुभव और मतों को स्वतंत्र रूप से साझा कर सकता है। लेकिन इस स्वतंत्रता के साथ एक बड़ी चुनौती भी खड़ी हुई है — नफरत फैलाना (Hate Speech), जो समाज की शांति, सौहार्द और एकता को नुकसान पहुँचाता है। यह लेख साइबर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नफरत फैलाने के बीच के संघर्ष, संतुलन और कानूनी जटिलताओं का समग्र विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: एक मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को “विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” की गारंटी देता है। यह अधिकार डिजिटल युग में भी उतना ही प्रासंगिक है, जहाँ व्यक्ति सोशल मीडिया, ब्लॉग, यूट्यूब, पॉडकास्ट, आदि माध्यमों से अपनी बात कह सकता है।
लेकिन यही अनुच्छेद 19(2) “यथोचित प्रतिबंधों” की बात करता है, जैसे:
- राज्य की सुरक्षा
- सार्वजनिक व्यवस्था
- शालीनता या नैतिकता
- मानहानि
- न्यायालय की अवमानना
- अन्य देशों के साथ संबंध
इसका अर्थ है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है — इसका प्रयोग दूसरों के अधिकारों या सार्वजनिक हित के विरुद्ध नहीं किया जा सकता।
नफरत फैलाने वाला भाषण (Hate Speech): परिभाषा और प्रभाव
नफरत फैलाना वह भाषण, लेखन, इमेज, वीडियो या पोस्ट है जो—
- किसी धर्म, जाति, समुदाय, लिंग या राष्ट्रीयता के खिलाफ हिंसा, घृणा या भेदभाव को उकसाए,
- समाज में विद्वेष पैदा करे,
- जनभावनाओं को भड़काए,
- और डिजिटल माध्यमों पर तीव्रता से फैल सके।
प्रभाव:
- सांप्रदायिक तनाव और दंगे
- ऑनलाइन ट्रोलिंग और बदनामी
- लोकतांत्रिक संवाद में गिरावट
- व्यक्तियों विशेष (विशेषकर अल्पसंख्यकों और महिलाओं) के विरुद्ध धमकियाँ या उत्पीड़न
डिजिटल माध्यमों पर नफरत फैलाने के प्रमुख स्रोत:
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (Facebook, X, Instagram)
जहां वायरल पोस्ट्स बिना किसी संपादकीय जांच के लाखों लोगों तक पहुँचती हैं। - व्हाट्सएप ग्रुप्स और टेलीग्राम चैनल्स
एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन के कारण अफवाहें तेजी से फैलती हैं। - फेक न्यूज़ वेबसाइट्स और यूट्यूब चैनल्स
जो भ्रामक जानकारी, षड्यंत्र और घृणित विचारधाराओं का प्रचार करते हैं। - बॉट्स और ट्रोल आर्मी
जो राजनीतिक, सांप्रदायिक या जातिगत घृणा को संगठित रूप से फैलाते हैं।
कानूनी ढांचा:
1. भारतीय संविधान:
- अनुच्छेद 19(1)(a) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 19(2) – उचित प्रतिबंध
2. दंड विधान:
- भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC):
- धारा 153A – विभिन्न समुदायों में शत्रुता फैलाना
- धारा 295A – धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना
- धारा 505 – अफवाह फैलाना जिससे सार्वजनिक शांति भंग हो
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS 2023) के तहत इन्हें और मजबूत किया गया है।
3. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:
- धारा 66A (अब रद्द हो चुकी) – आपत्तिजनक डिजिटल संदेशों से जुड़ी थी
- धारा 69A – सरकार को वेबसाइट्स/URLs ब्लॉक करने का अधिकार
- IT Rules 2021 – डिजिटल मंचों को सामग्री मॉडरेशन का उत्तरदायित्व
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
- Shreya Singhal v. Union of India (2015):
- सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A को असंवैधानिक घोषित किया क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुचित प्रतिबंध लगाती थी।
- लेकिन कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि “hate speech” और “free speech” के बीच फर्क जरूरी है।
- Pravasi Bhalai Sangathan v. Union of India (2014):
- कोर्ट ने नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ मौजूदा कानूनों के सख्त अनुप्रयोग की बात की।
चुनौतियाँ और दुविधाएँ:
- अभिव्यक्ति और दमन के बीच संतुलन:
क्या कोई विवादित या तीखा विचार स्वतः नफरत फैलाना बन जाता है? - कानून का दुरुपयोग:
कुछ मामलों में राजनीतिक या वैचारिक असहमति को दबाने के लिए “हेट स्पीच” के आरोप लगाए जाते हैं। - सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारी:
क्या Facebook, X आदि को सामग्री हटाने का अधिकार होना चाहिए? किस हद तक? - फ्री स्पीच के नाम पर ज़हर:
कुछ समूह “राष्ट्रवाद”, “धार्मिक अधिकार”, या “विचारों की स्वतंत्रता” की आड़ में नफरत फैलाते हैं।
संभावित समाधान:
- स्पष्ट परिभाषा:
हेट स्पीच की स्पष्ट और व्यावहारिक परिभाषा कानूनी दस्तावेजों में होनी चाहिए। - डिजिटल साक्षरता अभियान:
नागरिकों को यह समझाना आवश्यक है कि वे किस प्रकार गलत जानकारी, नफरत और उकसावे से बचें। - स्व-नियमन और प्लेटफ़ॉर्म निगरानी:
सोशल मीडिया कंपनियों को स्वचालित और मानव निगरानी के माध्यम से नफरत भरे कंटेंट को हटाना चाहिए। - न्यायिक निगरानी:
किसी पोस्ट या टिप्पणी को हेट स्पीच घोषित करने से पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जांच आवश्यक है। - सुधारित साइबर कानून:
ऐसे कानूनी प्रावधान जो एक ओर स्वतंत्रता की रक्षा करें, वहीं दूसरी ओर नफरत की रोकथाम करें।
निष्कर्ष:
“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है, पर घृणा उसका गला घोंट सकती है।”
डिजिटल युग ने आवाज़ को शक्ति दी है, लेकिन वही आवाज़ जब दूसरों के सम्मान, गरिमा और सुरक्षा को आहत करे, तो समाज और राज्य को संतुलन की भूमिका निभानी होगी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नफरत फैलाने के बीच रेखा स्पष्ट और न्यायपूर्ण होनी चाहिए — न तो स्वतंत्रता का गला घुटे, न ही समाज में विष फैले।