सहमति से बने रिश्ते में बाद में खटास आना आपराधिक मामला नहीं: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला

सहमति से बने रिश्ते में बाद में खटास आना आपराधिक मामला नहीं: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला


🔷 भूमिका:

भारतीय न्याय व्यवस्था में बलात्कार, धोखा और सहमति से बने संबंधों को लेकर कई बार जटिल कानूनी सवाल खड़े होते हैं। विशेष रूप से जब किसी स्त्री और पुरुष के बीच आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनते हैं, और बाद में किसी कारणवश वह संबंध टूट जाता है — तो यह विवाद उठता है कि क्या इस टूटे हुए रिश्ते को आपराधिक रूप से देखा जा सकता है, विशेषकर बलात्कार (Section 376 IPC) के संदर्भ में?

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हाल ही में इसी विषय पर एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि —

“यदि कोई संबंध आपसी सहमति से स्थापित हुआ हो, और बाद में उसमें खटास आ जाए, तो यह अपने आप में आपराधिक कार्रवाई का आधार नहीं बन सकता।”


🔷 मामले की पृष्ठभूमि:

  • एक महिला ने एक पुरुष पर आरोप लगाया कि उसने विवाह का झूठा वादा करके यौन संबंध बनाए और बाद में शादी से इनकार कर दिया।
  • महिला ने आरोप लगाया कि यह धोखा और मानसिक उत्पीड़न है, और मामला बलात्कार के अंतर्गत दर्ज होना चाहिए।
  • आरोपी पुरुष ने अदालत में कहा कि उनके संबंध आपसी सहमति से थे, और विवाह की कोई बाध्यता या धोखा नहीं था।
  • मामला अंततः छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय पहुँचा।

🔷 उच्च न्यायालय का निर्णय:

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पूरे मामले की समीक्षा के बाद यह निर्णय सुनाया कि:

  1. सहमति से बने संबंध को बाद में अपराध नहीं ठहराया जा सकता, जब तक यह सिद्ध न हो कि शुरू से ही आरोपी का इरादा धोखे का था।
  2. ✅ केवल इस आधार पर कि बाद में रिश्ते में दूरी या खटास आ गई, बलात्कार की धाराओं में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता
  3. ✅ अदालत ने यह भी कहा कि यदि महिला पूर्ण मानसिक और शारीरिक क्षमता में थी और उसने अपने निर्णय से संबंध बनाए, तो यह कानूनी रूप से सहमति मानी जाएगी।

⚖️ कोर्ट के शब्दों में:

“Every failed relationship cannot be turned into a criminal accusation. Consent once given with clarity and without coercion, stands as valid in law.”


🔷 विधिक आधार और धारा विश्लेषण:

📘 भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार की परिभाषा):

  • यदि सहमति धोखे या दबाव में ली गई हो, तब वह बलात्कार मानी जाती है।
  • लेकिन यदि संपूर्ण स्वेच्छा और स्वतंत्र इच्छा से सहमति दी गई हो, तो बाद में पश्चाताप अपराध नहीं बनता।

📘 महत्वपूर्ण तत्व:

  • सहमति और वचनभंग में अंतर: विवाह का वादा यदि ईमानदारी से किया गया और बाद में संबंध विफल हुआ, तो वह धोखा नहीं बल्कि संबंधों की असफलता है।
  • FIR रद्द करने का आधार: यदि पहली दृष्टि में यह स्पष्ट हो जाए कि मामला प्रेम संबंध का है जिसमें आपसी सहमति शामिल थी, तो FIR को रद्द किया जा सकता है।

🔷 समान प्रकृति के सुप्रीम कोर्ट के फैसले:

  1. Pramod Suryabhan Pawar v. State of Maharashtra (2019):
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह का आश्वासन केवल तभी आपराधिक होता है जब यह झूठे इरादे से दिया गया हो।
  2. Deepak Gulati v. State of Haryana (2013):
    • “सहमति के आधार पर बनाए गए शारीरिक संबंध, यदि आपसी समझ से हुए हों, तो उनके विफल होने पर बलात्कार का आरोप नहीं लगाया जा सकता।”

🔷 इस निर्णय का महत्व:

  1. 🔸 दुरुपयोग से न्याय की रक्षा:
    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों का उपयोग व्यक्तिगत झगड़े या असफल प्रेम प्रसंगों में नहीं किया जाना चाहिए।
  2. 🔸 पुरुषों के लिए संरक्षण की परत:
    यह फैसला उन मामलों में झूठे आरोपों के विरुद्ध पुरुषों को न्यायिक राहत प्रदान करता है।
  3. 🔸 सहमति की कानूनी परिभाषा को मजबूत किया:
    कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सहमति का मतलब है – जान-बूझकर, दबाव रहित, और पूरी समझ के साथ लिया गया निर्णय।

🔷 निष्कर्ष:

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में संवेदनशीलता और संतुलन की एक मिसाल है। जहां एक ओर यह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है, वहीं यह यह भी सुनिश्चित करता है कि कानून का दुरुपयोग निजी प्रतिशोध के लिए न हो।

इस निर्णय से स्पष्ट हो गया कि प्रेम, सहमति और रिश्तों की असफलता को आपराधिक जामा पहनाकर न्यायालय को गुमराह नहीं किया जा सकता।

यह फैसला उन सभी लोगों के लिए मार्गदर्शक बन सकता है जो संवेदनशील मामलों में न्याय के लिए अदालत की चौखट पर आते हैं।