सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘बालिका संरक्षण’ पर राष्ट्रीय हितधारक परामर्श: 11-12 अक्टूबर 2025
भारत का सर्वोच्च न्यायालय 11 और 12 अक्टूबर 2025 को ‘बालिका संरक्षण: भारत में सुरक्षित और सक्षम वातावरण की ओर’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय वार्षिक हितधारक परामर्श का आयोजन कर रहा है। यह आयोजन सर्वोच्च न्यायालय की बाल न्याय समिति द्वारा किया जा रहा है, जिसमें यूनिसेफ इंडिया भी साझेदार है।
उद्देश्य और महत्त्व
यह परामर्श बालिकाओं के अधिकारों की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए न्यायपालिका, सरकार और नागरिक समाज के बीच समन्वय को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका उद्देश्य बालिकाओं के खिलाफ हिंसा, शोषण और भेदभाव को समाप्त करना और उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुरक्षा तक समान पहुंच प्रदान करना है।
उद्घाटन सत्र
इस कार्यक्रम का उद्घाटन माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री भुशन रामकृष्ण गवई करेंगे। साथ ही, महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती अन्नपूर्णा देवी, सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति श्रीमती बी.वी. नागरथना (बाल न्याय समिति की अध्यक्ष), और यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि श्रीमती सिंथिया मैककैफ्री भी उद्घाटन सत्र में भाग लेंगी। इस अवसर पर ‘बाल अधिकार और कानून पर हैंडबुक’ का विमोचन न्यायमूर्ति श्री जे.बी. पारदीवाला द्वारा किया जाएगा।
सत्रों की रूपरेखा
इस दो दिवसीय परामर्श में विभिन्न विषयों पर चर्चा की जाएगी:
- जन्म, पालन-पोषण और शिक्षा का अधिकार: बालिकाओं के जीवन के पहले चरण में उनके अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- साइबर अपराधों से बालिका संरक्षण: डिजिटल दुनिया में बालिकाओं की सुरक्षा और साइबर अपराधों से बचाव के उपायों पर विचार-विमर्श होगा।
- बालिका शोषण, उत्पीड़न और हिंसा से सुरक्षा: राज्यों से सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान, बालिका तस्करी, बाल विवाह और हिंसा के मामलों पर चर्चा की जाएगी।
- POCSO अधिनियम की प्रभावी कार्यान्वयन: बाल यौन अपराधों से संरक्षण (POCSO) अधिनियम की चुनौतियों और इसके प्रभावी कार्यान्वयन के उपायों पर विचार किया जाएगा।
राज्य-स्तरीय परामर्शों का समापन
यह राष्ट्रीय परामर्श देशभर में आयोजित विभिन्न राज्य-स्तरीय परामर्शों का समापन है। उदाहरण के लिए, तेलंगाना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री अपरेश कुमार सिंह ने हैदराबाद में आयोजित एक राज्य-स्तरीय परामर्श में बालिका सुरक्षा को सामूहिक जिम्मेदारी बताया और ग्राम स्तर पर बाल संरक्षण समितियों के गठन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि “बालिका की सुरक्षा केवल अधिकारियों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज के हर सदस्य की जिम्मेदारी है” ।
इसी प्रकार, उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री अरुण भंसाली ने लखनऊ में आयोजित परामर्श में बालिका संरक्षण को न्यायपूर्ण समाज की नींव बताया और बाल अधिकारों की प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “बालिका की सुरक्षा ही न्यायपूर्ण समाज की स्थापना का एकमात्र मार्ग है” ।
समापन और भविष्य की दिशा
12 अक्टूबर को समापन सत्र में परामर्श से प्राप्त निष्कर्षों पर चर्चा की जाएगी और भविष्य की दिशा निर्धारित की जाएगी। इसमें न्यायिक, प्रशासनिक और सामाजिक दृष्टिकोण से बालिका संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने पर विचार किया जाएगा।
यह परामर्श न केवल बालिका संरक्षण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि हर बालिका सुरक्षित, स्वस्थ, शिक्षित और सशक्त हो।
इस आयोजन का आयोजन सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों पर लाइव स्ट्रीम किया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोग इस महत्वपूर्ण चर्चा का हिस्सा बन सकें।
इस पहल के माध्यम से भारत यह संदेश देता है कि बालिका संरक्षण केवल एक कानूनी आवश्यकता नहीं, बल्कि यह समाज की नैतिक जिम्मेदारी है, जिसे सभी को मिलकर निभाना होगा।
इस परामर्श के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि हर बालिका को एक सुरक्षित और सक्षम वातावरण मिले, जिसमें वह अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग कर सके और समाज में समान अवसरों का लाभ उठा सके।
यह आयोजन बालिका संरक्षण के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा और भविष्य में इसी प्रकार के प्रयासों को प्रेरित करेगा।
सर्वोच्च न्यायालय और यूनिसेफ इंडिया की साझेदारी इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है, जो बालिका संरक्षण के लिए एक मजबूत नींव रखता है।
इस परामर्श के माध्यम से यह भी स्पष्ट होगा कि बालिका सुरक्षा केवल एक सरकारी दायित्व नहीं, बल्कि यह समाज के हर वर्ग की जिम्मेदारी है।
आखिरकार, यह परामर्श यह सिद्ध करेगा कि जब समाज, सरकार और न्यायपालिका मिलकर कार्य करते हैं, तो बालिका संरक्षण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय का यह आयोजन बालिका संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भविष्य में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होगा।
इस परामर्श से प्राप्त निष्कर्षों और सिफारिशों को लागू करके हम एक ऐसे समाज की स्थापना कर सकते हैं, जिसमें हर बालिका को समान अवसर और सुरक्षा मिले।
यह आयोजन न केवल बालिका संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं, जिसमें हर बालिका को अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने का अवसर मिले।
इस परामर्श के माध्यम से हम यह संदेश देते हैं कि बालिका संरक्षण केवल एक कानूनी आवश्यकता नहीं, बल्कि यह समाज की नैतिक जिम्मेदारी है, जिसे सभी को मिलकर निभाना होगा।
अंततः, यह आयोजन बालिका संरक्षण के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा और भविष्य में इसी प्रकार के प्रयासों को प्रेरित करेगा।
इस परामर्श के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि हर बालिका को एक सुरक्षित और सक्षम वातावरण मिले, जिसमें वह अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग कर सके और समाज में समान अवसरों का लाभ उठा सके।
इस आयोजन का आयोजन सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों पर लाइव स्ट्रीम किया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोग इस महत्वपूर्ण चर्चा का हिस्सा बन सकें।
इस पहल के माध्यम से भारत यह संदेश देता है कि बालिका संरक्षण केवल एक कानूनी आवश्यकता नहीं, बल्कि यह समाज की नैतिक जिम्मेदारी है, जिसे सभी को मिलकर निभाना होगा।
इस परामर्श के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि हर बालिका को एक सुरक्षित और सक्षम वातावरण मिले, जिसमें वह अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग कर सके और समाज में समान अवसरों का लाभ उठा सके।
यह आयोजन बालिका संरक्षण के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा और भविष्य में इसी प्रकार के प्रयासों को प्रेरित करेगा।
इस परामर्श के माध्यम से यह भी स्पष्ट होगा कि बालिका सुरक्षा केवल एक सरकारी दायित्व नहीं, बल्कि यह समाज के हर वर्ग की जिम्मेदारी है।
आखिरकार, यह परामर्श यह सिद्ध करेगा कि जब समाज, सरकार और न्यायपालिका मिलकर कार्य करते हैं, तो बालिका संरक्षण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय का यह आयोजन बालिका संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भविष्य में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होगा।
इस परामर्श से प्राप्त निष्कर्षों और सिफारिशों को लागू करके हम एक ऐसे समाज की स्थापना कर सकते हैं, जिसमें हर बालिका को समान अवसर और सुरक्षा मिले।
यह आयोजन न केवल बालिका संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं, जिसमें हर बालिका को अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने का अवसर मिले।
इस परामर्श के माध्यम से हम यह संदेश देते हैं कि बालिका संरक्षण केवल एक कानूनी आवश्यकता नहीं, बल्कि यह समाज की नैतिक जिम्मेदारी है, जिसे सभी को मिलकर निभाना होगा।
अंततः, यह आयोजन बालिका संरक्षण के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा और भविष्य में इसी प्रकार के प्रयासों को प्रेरित करेगा।
इस परामर्श के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि हर बालिका को एक सुरक्षित और सक्षम वातावरण मिले, जिसमें वह अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग कर सके और समाज में समान अवसरों का लाभ उठा सके।
इस आयोजन का आयोजन सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट और अन्य डिजिटल