सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र : संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक का विस्तृत विश्लेषण
प्रस्तावना
भारतीय संविधान ने न्यायपालिका को स्वतंत्र और प्रभावी संस्था के रूप में स्थापित किया है। न्यायपालिका का सर्वोच्च अंग सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) है, जो संविधान की रक्षा और नागरिकों के अधिकारों की गारंटी करने वाला सर्वोच्च संस्थान है। संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय की संरचना, शक्तियाँ, अधिकार क्षेत्र, न्यायाधीशों की नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यप्रणाली का विस्तृत प्रावधान किया गया है।
इन अनुच्छेदों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि वे न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं, बल्कि विधायिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण भी रखते हैं। आगे हम प्रत्येक अनुच्छेद और उससे संबंधित शक्तियों का गहन विश्लेषण करेंगे।
1. अनुच्छेद 124 – सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और संरचना
अनुच्छेद 124 के अनुसार भारत में एक सर्वोच्च न्यायालय होगा, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) और अन्य न्यायाधीश शामिल होंगे, जिनकी संख्या संसद समय-समय पर निर्धारित करती है।
- वर्तमान में कुल 34 न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश सहित) हो सकते हैं।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- नियुक्ति प्रक्रिया में सर्वोच्च न्यायालय के कोलेजियम (Collegium) प्रणाली का विशेष महत्व है।
- न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष है।
2. अनुच्छेद 125 – वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
- इन्हें “Consolidated Fund of India” से दिया जाता है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहती है।
- न्यायाधीशों की सेवा शर्तों को उनके कार्यकाल के दौरान प्रतिकूल रूप से बदला नहीं जा सकता।
3. अनुच्छेद 126 – कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश
यदि मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या वे अस्थायी रूप से कार्य करने में असमर्थ हों, तो राष्ट्रपति किसी अन्य न्यायाधीश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर सकते हैं।
4. अनुच्छेद 127 – अतरिक्त न्यायाधीश
जब कार्यभार बहुत अधिक हो जाए या न्यायाधीश अनुपस्थित हों, तो राष्ट्रपति किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त कर सकते हैं।
5. अनुच्छेद 128 – सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अनुमति से राष्ट्रपति सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को पुनः कार्य करने हेतु आमंत्रित कर सकते हैं।
6. अनुच्छेद 129 – सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना शक्ति
सर्वोच्च न्यायालय को न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) के मामलों में दंड देने की शक्ति प्राप्त है।
- यह न्यायपालिका की गरिमा और अधिकार बनाए रखने का साधन है।
7. अनुच्छेद 130 – न्यायालय की बैठक का स्थान
सर्वोच्च न्यायालय की बैठक दिल्ली में होगी, किंतु राष्ट्रपति की अनुमति से यह किसी अन्य स्थान पर भी बैठ सकती है।
8. अनुच्छेद 131 – मूल अधिकारिता (Original Jurisdiction)
सर्वोच्च न्यायालय को केंद्र और राज्यों के बीच, या राज्यों के बीच संवैधानिक विवादों को सुलझाने का अधिकार है।
- उदाहरण: केंद्र और किसी राज्य के बीच जल बंटवारे का विवाद।
9. अनुच्छेद 132 – अपीलीय अधिकारिता (Appellate Jurisdiction – संवैधानिक प्रश्न)
यदि किसी मामले में संविधान की व्याख्या का प्रश्न जुड़ा हो, तो उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
10. अनुच्छेद 133 – अपीलीय अधिकारिता (सिविल मामले)
उच्च न्यायालय के सिविल मामलों के निर्णय के विरुद्ध अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है।
11. अनुच्छेद 134 – अपीलीय अधिकारिता (दंड मामले)
उच्च न्यायालय के आपराधिक मामलों के निर्णय के विरुद्ध अपील का अधिकार।
12. अनुच्छेद 134A – प्रमाण पत्र प्रदान करना
उच्च न्यायालय यह प्रमाण पत्र जारी कर सकता है कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील योग्य है।
13. अनुच्छेद 135 – संघीय न्यायालय की अधिकारिता
संविधान लागू होने से पहले भारत के संघीय न्यायालय के पास जो अधिकार थे, वे सर्वोच्च न्यायालय को सौंप दिए गए।
14. अनुच्छेद 136 – विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition – SLP)
सर्वोच्च न्यायालय किसी भी न्यायालय या अधिकरण के निर्णय के विरुद्ध विशेष अनुमति से अपील सुन सकता है।
- यह सर्वोच्च न्यायालय की सबसे व्यापक शक्ति है।
15. अनुच्छेद 137 – पुनर्विचार (Review Jurisdiction)
सर्वोच्च न्यायालय अपने ही निर्णय की पुनर्विचार याचिका सुन सकता है।
16. अनुच्छेद 138 – अतिरिक्त अधिकारिता
संसद सर्वोच्च न्यायालय को उसके अधिकार क्षेत्र से अधिक मामलों की सुनवाई का अधिकार दे सकती है।
17. अनुच्छेद 139 – अन्य मामलों में रिट जारी करने का अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय न केवल मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु बल्कि संसद द्वारा प्रदत्त अन्य अधिकारों की रक्षा हेतु भी रिट जारी कर सकता है।
18. अनुच्छेद 140 – सहायक शक्तियाँ
संसद सर्वोच्च न्यायालय को उसके प्रभावी कामकाज हेतु अतिरिक्त सहायक शक्तियाँ दे सकती है।
19. अनुच्छेद 141 – भारत का कानून
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय संपूर्ण भारत में बाध्यकारी (Binding Precedent) होंगे।
- यह न्यायिक दृष्टांत (Judicial Precedent) की अवधारणा है।
20. अनुच्छेद 142 – पूर्ण न्याय करने की शक्ति
सर्वोच्च न्यायालय किसी मामले में “पूर्ण न्याय” करने हेतु आवश्यक आदेश पारित कर सकता है।
- यह अनुच्छेद न्यायालय को अत्यधिक व्यापक शक्ति प्रदान करता है।
- उदाहरण: पर्यावरणीय मामले, बड़े संवैधानिक मुद्दे।
21. अनुच्छेद 143 – राष्ट्रपति का परामर्श
राष्ट्रपति किसी महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श (Advisory Opinion) मांग सकते हैं।
- यह सलाह बाध्यकारी नहीं होती।
22. अनुच्छेद 144 – सभी प्राधिकरणों का पालन
भारत के सभी नागरिक प्राधिकरणों का कर्तव्य है कि वे सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करें।
23. अनुच्छेद 145 – कार्यविधि का निर्धारण
सर्वोच्च न्यायालय अपनी कार्यप्रणाली और नियमों को स्वयं निर्धारित कर सकता है।
24. अनुच्छेद 146 – अधिकारी और कर्मचारी
सर्वोच्च न्यायालय के कर्मचारियों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
25. अनुच्छेद 147 – व्याख्या संबंधी प्रावधान
सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित अनुच्छेदों की व्याख्या हेतु परिभाषाएँ दी गई हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की प्रमुख शक्तियों का समेकित विवरण
- संवैधानिक संरक्षक – संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखना।
- मौलिक अधिकारों का संरक्षक – अनुच्छेद 32 के तहत रिट जारी करना।
- न्यायिक पुनरावलोकन – असंवैधानिक कानून निरस्त करना।
- अपील सुनना – उच्च न्यायालयों और अधिकरणों से अपील।
- विशेष अनुमति याचिका (SLP) – पूरे देश में न्याय की अंतिम गारंटी।
- पूर्ण न्याय का आदेश – अनुच्छेद 142 के अंतर्गत न्यायिक सक्रियता।
- सलाहकार भूमिका – राष्ट्रपति के परामर्श पर विधिक राय देना।
निष्कर्ष
संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया गया है। ये प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को केवल न्यायिक संस्था ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र और संविधान की आत्मा बनाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय विधायिका और कार्यपालिका की सीमाओं की निगरानी करता है, नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और न्याय के सिद्धांतों को जीवित रखता है।
इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय भारतीय लोकतंत्र का संवैधानिक प्रहरी (Guardian of the Constitution) और न्याय का अंतिम स्तंभ (Final Arbiter of Justice) है।