सरोगेसी (किराए की कोख) अधिनियम, 2021 — मातृत्व की परिभाषा, नैतिकता और कानून का नया युग

शीर्षक: सरोगेसी (किराए की कोख) अधिनियम, 2021 — मातृत्व की परिभाषा, नैतिकता और कानून का नया युग


🔰 भूमिका:

“माँ बनने की इच्छा एक जैविक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक अधिकार भी है।”
किन्तु जब किसी महिला के लिए स्वाभाविक रूप से गर्भधारण संभव न हो, तब सरोगेसी (Surrogacy) — यानी किराए की कोख — उस अधूरी आशा को संपूर्णता देने का माध्यम बनती है।

लेकिन इस प्रक्रिया से जुड़े शोषण, अनियमितता और व्यावसायिक लाभ की प्रवृत्ति को देखते हुए भारत सरकार ने “सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021” लागू किया।
यह अधिनियम भारत में सरोगेसी को नियंत्रित, विनियमित और नैतिक सीमाओं में बांधने का प्रयास है।

यह लेख इसी अधिनियम की व्याख्या, प्रावधान, प्रभाव, आलोचना और भविष्य की दिशा पर विस्तार से प्रकाश डालता है।


📖 1. सरोगेसी क्या है?

सरोगेसी एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कोई महिला (सरोगेट) किसी अन्य दंपती या व्यक्ति के लिए गर्भधारण करती है, और जन्म के बाद बच्चे को सौंप देती है।

सरोगेसी के प्रकार:

प्रकार विवरण
जैविक (Traditional) सरोगेट महिला का अंडाणु और इच्छुक पिता का शुक्राणु प्रयोग
गर्भाशयिक (Gestational) सरोगेट महिला सिर्फ गर्भधारण करती है, भ्रूण IVF द्वारा तैयार होता है

⚖️ 2. सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के मुख्य उद्देश्य

  • सरोगेसी से जुड़े व्यावसायिक दुरुपयोग को रोकना
  • सरोगेट महिलाओं के शारीरिक और मानसिक अधिकारों की सुरक्षा
  • बच्चों के कानूनी दर्जे और अधिकारों की रक्षा
  • एक नैतिक, पारदर्शी और मानवीय प्रणाली का निर्माण

🧾 3. अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

📌 (A) केवल एल्ट्रुइस्टिक सरोगेसी की अनुमति

  • यानी बिना किसी व्यावसायिक लेन-देन के
  • सरोगेट महिला को केवल चिकित्सा खर्च और बीमा कवरेज मिलेगा

📌 (B) पात्र माता-पिता की शर्तें

  • भारतीय नागरिक
  • विवाहित दंपती, जिनकी कम से कम 5 साल से संतान नहीं है
  • महिला की उम्र: 23 से 50 वर्ष, पुरुष की: 26 से 55 वर्ष
  • संतानहीन होना आवश्यक (या शारीरिक-चिकित्सकीय प्रमाण)

📌 (C) सरोगेट माँ की शर्तें

  • केवल करीबी रिश्तेदार हो सकती है
  • विवाहित और कम से कम एक बच्चा पहले से होना चाहिए
  • उम्र: 25 से 35 वर्ष
  • एक महिला अपने जीवन में केवल एक बार सरोगेसी कर सकती है
  • मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए

📌 (D) सरोगेसी बोर्डों का गठन

  • राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड
  • राज्य सरोगेसी बोर्ड
  • लाइसेंसिंग, निगरानी और नियमों के अनुपालन हेतु

🚫 4. अधिनियम में क्या निषिद्ध है?

  • व्यावसायिक सरोगेसी पूर्ण रूप से प्रतिबंधित
  • विदेशी नागरिक, एनआरआई, समलैंगिक, लिव-इन जोड़े, सिंगल पुरुष पात्र नहीं
  • लिंग चयन या भ्रूण निर्धारण पूर्णतः अवैध
  • सरोगेट माँ को कोई अन्य आर्थिक लाभ नहीं दिया जा सकता

🌐 5. अधिनियम की आवश्यकता क्यों पड़ी?

बढ़ते व्यावसायिक सरोगेसी बाजार:

भारत को कभी “सरोगेसी हब” कहा गया, जहां निर्धन महिलाएं पैसों के लिए बार-बार गर्भधारण करती थीं।

कानूनी अस्पष्टता:

बच्चे की नागरिकता, अभिभावकत्व और पारिवारिक दर्जे को लेकर कानूनी विवाद बढ़ रहे थे।

विदेशी दुरुपयोग:

कई विदेशी नागरिक सरोगेसी के ज़रिए बच्चों को जन्म दिलवाकर उन्हें अनाथ छोड़ देते थे।

नैतिक प्रश्न:

क्या महिला का गर्भधारण और मातृत्व बिक्री का साधन हो सकता है?


🧭 6. अधिनियम की आलोचना और चुनौतियाँ

व्यावसायिक सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध से विवाद:

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि नियंत्रित व्यावसायिक सरोगेसी गरीब महिलाओं के लिए आर्थिक अवसर हो सकता था।

करीबी रिश्तेदार की अनिवार्यता अव्यावहारिक है

हर इच्छुक दंपती के पास ऐसा विकल्प नहीं होता।

समलैंगिकों और सिंगल लोगों का बहिष्कार

यह समानता के अधिकार और जीवन जीने की स्वतंत्रता का उल्लंघन माना जा रहा है।

प्रवर्तन तंत्र की धीमी प्रगति

राज्य बोर्डों और पंजीकरण प्रक्रियाओं में विलंब से जमीनी स्तर पर अमल कमजोर है।


📈 7. अधिनियम के सकारात्मक प्रभाव

सरोगेट महिलाओं की सुरक्षा बढ़ी
बच्चों के कानूनी अधिकार स्पष्ट हुए
राष्ट्रीय स्तर पर नैतिक और वैज्ञानिक नियंत्रण सुनिश्चित
सरोगेसी उद्योग में पारदर्शिता


🌍 8. अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति

देश नीति
🇺🇸 अमेरिका कुछ राज्यों में व्यावसायिक सरोगेसी वैध
🇬🇧 UK केवल एल्ट्रुइस्टिक सरोगेसी वैध
🇨🇳 चीन पूरी तरह प्रतिबंधित
🇫🇷 फ्रांस अवैध
🇮🇳 भारत केवल भारतीय दंपती के लिए एल्ट्रुइस्टिक सरोगेसी वैध, शेष सभी को निषेध

🔍 9. कानून की भविष्य दिशा: क्या होना चाहिए?

  • करीबी रिश्तेदार की शर्त हटाई जाए
  • व्यावसायिक सरोगेसी पर नियंत्रित अनुमति
  • समान लिंग और सिंगल पेरेंट को भी अधिकार
  • मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष प्रावधान
  • राज्य बोर्डों की शीघ्र सक्रियता

📝 निष्कर्ष:

सरोगेसी अधिनियम, 2021 भारत की नैतिकता, विज्ञान और संवैधानिक मूल्यों के संतुलन का प्रयास है। यह जहां सरोगेसी से जुड़े शोषण को रोकता है, वहीं माता-पिता बनने की मानवीय इच्छा को सम्मान देने का कानूनी प्रयास भी है।

लेकिन यह कानून तब और प्रभावी होगा जब वह समाज के बदलते स्वरूपों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और समावेशी दृष्टिकोण को अपनाएगा।


💬 अंतिम प्रश्न:

क्या मातृत्व केवल गर्भधारण से जुड़ा है या यह एक संवेदनशील अधिकार है, जो समाज के हर इच्छुक व्यक्ति को मिलना चाहिए?
क्या कानून एक जीवन देने वाली महिला को केवल ‘किराए की कोख’ मान सकता है?

उत्तर — हमें तय करना है, न सिर्फ कानून से — बल्कि करुणा और विवेक से।